भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे ही दिया। वो अलग बात है कि जेल में पांच महीने रहने के बावजूद उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया और बड़ी निर्लज्जता से जेल से दिल्ली की सरकार चलाते रहे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत के समय कठोर शर्तें और प्रतिबंध लगाने से मजबूर हुए केजरीवाल को इस्तीफा देना पड़ा। उनके पास इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी शेष नहीं था। अब आम आदमी पार्टी (आप) में आतिशी को नया मुख्यमंत्री चुना गया है। उन्हें विधायक दल ने सर्वसम्मति से नेता चुना, क्योंकि वह केजरीवाल की पसंद थीं। आतिशी ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 21 सितंबर को आतिशी मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकती हैं। भाजपा की सुषमा स्वराज और कांग्रेस की शीला दीक्षित के बाद आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री होंगी।
सही मायनों में देखा जाए तो आतिशी की ताजपोशी भी अल्पकालिक व्यवस्था है। यदि ‘आप’ लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव में विजयी रही, तो उसके बाद केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बनेंगे। क्या तब उन पर सर्वोच्च अदालत की शर्तें लागू नहीं होंगी? क्या नए जनादेश के साथ न्यायिक आदेश के दायरे भी बदल जाते हैं? बहरहाल आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने का समझौता मानसिक तौर पर किया गया है, लिहाजा विधायक दल का नेता चुने जाने के बावजूद आतिशी ने साफ तौर पर बयान दिया है कि दिल्ली का एक ही मुख्यमंत्री है-केजरीवाल। वह मेरे राजनीतिक गुरु और बड़े भाई हैं। हमें पूरी ताकत और एकजुटता से प्रयास करना है कि नया जनादेश भी ‘आप’ को ही मिले और केजरीवाल एक बार फिर मुख्यमंत्री बन सकें। बहरहाल, केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सोची-समझी रणनीति के तहत ही दिया है, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव को अपनी ईमानदारी के जनमत संग्रह के रूप में दर्शा सकें। उनका मकसद भाजपा सरकार द्वारा दर्ज भ्रष्टाचार के आरोपों का मुकाबला करने तथा खुद को राजनीतिक प्रतिशोध के शिकार के रूप में दिखा जनता की सहानुभूति अर्जित करना भी है। निस्संदेह, जनता से ईमानदारी का प्रमाण पत्र हासिल करने की योजना उनकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा जान पड़ती है। वहीं तय समय से तीन माह पहले दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराने की मांग करके उन्होंने जता दिया है कि आप चुनाव अभियान के लिये तैयार है।
दरअसल, केजरीवाल वर्ष 2014 के इस्तीफे के दांव को दोहराना चाहते हैं, जिसके बाद 2015 में आम आदमी पार्टी को भारी जीत मिली थी। लेकिन इस बार की स्थितियां खासी चुनौतीपूर्ण व जोखिमभरी हैं। निस्संदेह, यह जुआ मुश्किल भी पैदा कर सकता है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी। जिसे विपक्ष ने पार्टी की घटती लोकप्रियता के रूप में दशार्या था। दरअसल,बुनियादी प्रशासनिक ढांचे की खामियां व भाजपा के लगातार हमलों ने आप को बचाव की मुद्रा में ला खड़ा कर दिया था। वहीं दूसरी ओर आप सरकार की कल्याणकारी योजनाएं अभी भी मतदाताओं को पसंद आ रही हैं। अब आने वाला वक्त बताएगा कि इस्तीफे का पैंतरा आप को राजनीतिक रूप से कितना रास आता है।
वहीं दूसरी ओर कयास लगाए जा रहे हैं कि केजरीवाल के इस पैंतरे से तेज हुई राजनीतिक सरगर्मियों का असर पड़ोसी राज्य हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी दिख सकता है। चुनाव में इंडिया गठबंधन से मुक्त आप राज्य की सभी सीटों पर ताल ठोक रही है। जिसका कुछ लाभ भाजपा को भी हो सकता है। ये आने वाला वक्त बताएगा कि चुनौतियों से जूझती पार्टी अपना जनाधार किस हद तक मजबूत कर पाती है। वहीं दूसरी ओर जनता की अदालत में दिल्ली सरकार की फ्री पानी-बिजली व सरकारी बसों में महिलाओं की मुफ्त यात्रा कराने की नीति की भी परीक्षा होनी है। केजरीवाल और अन्य नेताओं ने जांचा-परखा होगा! शराब घोटाले के मद्देनजर और बड़े नेताओं को जेल भेजने के खिलाफ भाजपा और केंद्र सरकार की वह मुखर विरोधी रही हैं। बहरहाल अब उन्हें चुनौतीपूर्ण दायित्व दिया गया है। सबसे पहली चुनौती चुनाव और महिला सम्मान राशि के तौर पर 1000 रुपए प्रति महिला की योजना को लागू करना है। इसके अलावा, कुछ और योजनाएं भी महत्वपूर्ण हैं, जो केजरीवाल के जेल जाने के कारण लटकी-अटकी पड़ी हैं।
अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा आप पार्टी को एक नई दिशा और ऊर्जा दे सकता है। उनके द्वारा केंद्र सरकार पर लगाए गए आरोपों से बीजेपी पर दबाव बढ़ सकता है। यह स्थिति राजनीतिक माहौल को और गरमाएगी। सीबीआई और अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियों को कोर्ट भी पिंजरे का तोता कह चुकी है। जनता की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण होगी, इसका कयास लगाना मुश्किल है कि वह इसे किस रूप में लेती है। दिल्ली की राजनीति का असर आप पार्टी प्रभावित अन्य राज्यों पर भी पड़ सकता है।
केजरीवाल ने जेल से बाहर आते ही अपने तरकश से जो तीर चले हैं, वे कुल मिलाकर निशाने पर लगते नजर आए हैं। हरियाणा व जम्मू कश्मीर चुनाव समेत अन्य राष्ट्रीय मुद्दों में उलझी भाजपा व कांग्रेस पर केजरीवाल ने मनोवैज्ञानिक दबाव तो बना दिया है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव निर्धारित समय से कुछ महीने पहले महाराष्ट्र के साथ कराने की मांग करके आप ने दिल्ली में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। लेकिन यदि केजरीवाल शराब घोटाले में नाम आने व गिरफ्तारी के बाद तुरंत इस्तीफा दे देते तो शायद उन्हें इसका ज्यादा लाभ मिलता।