जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: आज बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की (breast touch) छाती पकड़ना और पायजामा का नाड़ा खींचना दुष्कर्म के प्रयास का अपराध नहीं है टिप्पणी पर रोक लगा दी है। दरअसल, इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे कृत्य को भी दुष्कर्म के प्रयास के तहत माना जा सकता है।
ऐसे अपराधों को हल्के में नहीं लिया जा सकता
यह महत्वपूर्ण निर्णय इसलिए है क्योंकि यह महिलाओं के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा और उत्पीड़न के मामलों में कानून की सख्ती को स्पष्ट करता है और यह संदेश देता है कि ऐसे अपराधों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। इस विवादास्पद टिप्पणी पर की गई कार्यवाही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया है।
हमें ये कहते हुए दुख हो रहा है…: सुप्रीम कोर्ट
दरअसल, न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह फैसले को लिखते हुए अपनाई गई असंवेदनशीलता को दर्शाता है।’
पीठ, जिसमें जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं, ने कहा, ‘यह फैसला अचानक नहीं सुनाया गया। इसे सुरक्षित रखा गया और चार महीने बाद सुनाया गया। यानी कि इसमें दिमाग का इस्तेमाल किया गया था।’
पहले सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के नाबालिग लड़की के निजी अंगों को पकड़ने, उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ने को दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास नहीं मानने वाले फैसले पर स्वत:संज्ञान लिया था।
इससे एक दिन पहले जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने हाईकोर्ट के विवादित फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था।
दुष्कर्म का प्रयास माने जाने के योग्य नहीं
इससे पहले हाईकोर्ट ने दो आरोपियों पवन व आकाश के मामले में यह विवादित फैसला दिया था। शुरुआत में, दोनों पर दुष्कर्म और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (posco) अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे।
लेकिन, हाईकोर्ट (High Court) ने फैसले में कहा था, उनका कृत्य दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास माने जाने के योग्य नहीं था, बल्कि यह गंभीर यौन हमले के कम गंभीर आरोप के अंतर्गत आता है।