एक छोटे से गांव में एक गायक रहता था। लोग उसकी आवाज के दीवाने थे। गायक का नाम गोपाल था और उसके पास एक छोटा सा संगीत शिक्षक भी था, जिसका नाम रामदास था। एक दिन, गोपाल को गांव में एक बड़े महोत्सव में गाने के लिए निमंत्रित किया गया। महोत्सव के दिन, गोपाल ने अपने सबसे पसंदीदा गाने का प्रस्तुतीकरण किया, और वह लोगों के सामने अपनी आवाज की मधुरता और सुंदरता के साथ गीत गा रहे थे। लोग वाह-वाह कर रहे थे और गोपाल के गायन को बहुत ही प्रशंसा मिल रही थी। इसी बीच, महोत्सव में एक पुराने और संतुलित व्यक्ति ने गोपाल गायक के पास आकर कहा, बहुत अच्छा गाया, बेहद मधुर आवाज है आपकी। लेकिन आप अपनी आवाज को और भी बेहतर बना सकते हैं। गोपाल गायक ने उसे नकार दिया और कहा, मुझे किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है, मैं बेहद प्रतिष्ठित गायक हूं। यह सुनकर, व्यक्ति ने हंसते हुए कहा, ठीक है, आपको गुरु की आवश्यकता नहीं है, लेकिन मुझे आपकी आवाज में एक और संभावना दिखाई देती है। गोपाल गायक ने उससे कहा, आपको मेरे गुरु बनने के लिए मुझे एक सवाल का जवाब देना होगा। आप गाने के दौरान आपकी आवाज किसे समर्पित होती है झ्र आपको या आपके शिक्षक को? व्यक्ति ने गोपाल गायक के सवाल का उत्तर दिया, मेरे गुरु को, क्योंकि वे ही मेरे संगीत शिक्षक हैं और मेरे संगीत संगीत कला की नीव भी। गोपाल गायक ने मुस्कराते हुए कहा, तब ठीक है, आप मेरे गुरु बन सकते हैं। इसके बाद, गोपाल गायक ने अपने नए गुरु से संगीत की शिक्षा लेना शुरू किया। उन्होंने अपने आदर्श गुरु के मार्गदर्शन में गाने का अधिक तरीकों से अभ्यास किया और सीखा कि संगीत केवल आवाज की मधुरता से ही नहीं, बल्कि भावनाओं से भी जुड़ा होता है। सीखने की प्रक्रिया कभी भी समाप्त नहीं होती।