Wednesday, April 30, 2025
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जानलेवा निपाह का मंडराता खतरा

Samvad 51


YOGESH KUMAR GOYALएक ओर जहां विभिन्न राज्यों में डेंगू के प्रकोप के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर में केरल में निपाह वायरस के बढ़ते मामलों से लोगों के माथे पर चिंता की नई लकीर उभर रही है। दरअसल इस वायरस के बारे में कहा जा रहा है कि इस संक्रमण के कारण मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। इसी कारण केरल में निपाह के बढ़ते खतरे को देखते हुए अन्य राज्यों को भी अलर्ट किया गया है। राज्य में सामने आए छह निपाह मरीजों में से दो की मौत चुकी है और केरल की स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक फिलहाल संक्रमित व्यक्तियों की सम्पर्क सूची में 327 स्वास्थ्यकर्मियों सहित एक हजार से भी अधिक लोग हैं, जिनमें सैंकड़ों उच्च जोखिम वाली श्रेणी में हैं। निपाह संक्रमण के बारे में आईसीएमआर का कहना है कि कोविड में जहां मृत्युदर महज दो-तीन प्रतिशत थी, वहीं निपाह में संक्रमित लोगों की मृत्यु दर 40-70 प्रतिशत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भी निपाह वायरस संक्रमण की मृत्यु दर 40 से 75 प्रतिशत के बीच ही अनुमानित है। 2018 में केरल में यह बीमारी जो कहर बरपा चुकी है, वह खौफनाक मंजर एक बार फिर लोगों की आंखों के सामने आने लगा है। उस समय 23 संक्रमितों में से 21 की मौत हो गई थी लेकिन उसके बावजूद इन पांच वर्षों में 2019 और 2021 में भी इस संक्रमण का प्रकोप झेलने के बाद भी निपाह के उपचार के विकल्पों के मामलों में परिस्थितियां जस की तस हैं। आज भी इस बीमारी का कोई कारगर इलाज मौजूद नहीं है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि 2018, 2019 तथा 2021 में निपाह का प्रकोप का सामना करने के बाद जो अनुभव मिले, उसके मद्देनजर प्रोटोकॉल (प्रबंधन, आइसोलेशन, रोकथाम और उपचार) का एक टूलकिट तो अवश्य तैयार कर लिया गया लेकिन कोरोना महामारी जैसे वैश्विक प्रकोप से जो बड़ा सबक सीखा जाना चाहिए था, वह शायद नहीं सीखा गया।

निपाह ऐसा वायरस है, जो चमगादड़, सुअर, कुत्तों, घोड़ों इत्यादि से फैलता है। ‘फ्रूट बैट्स’ अर्थात फलाहारी चमगादड़ इस वायरस के वाहक होते हैं। यह बहुत तेजी से फैलने वाला खतरनाक संक्रमण है, जिसे तुरंत रोक पाना बहुत कठिन होता है। पर्यावरणविदों का कहना है कि जून 2018 में केरल को निपाह मुक्त घोषित करने के बाद इतने कम अंतराल में इस वायरस के बार-बार सिर उठाने के पीछे सबसे प्रमुख कारक शहरीकरण है क्योंकि अंधाधुंध शहरीकरण के चलते मनुष्यों ने जंगलों को भी नहीं छोड़ा है और निपाह के लिए जिम्मेदार चमगादड़ों के रहने के लिए अब जंगल सीमित रह गए हैं।

चमगादड़ों के निवास स्थान नष्ट होने से चमगादड़ तनावग्रस्त हो जाते हैं और भूखे रहते हैं, जिससे उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है और उनके भीतर वायरस का भार बढ़ जाता है, जो मूत्र और लार के जरिये बाहर आता है। इन्हीं के जरिये यह वायरस जानवरों तथा मनुष्यों में फैलता है। यह वायरस मुख्य रूप से टेरोपस जींस नामक नस्ल के चमगादड़ों (फ्रूट बैट) के संक्रमण द्वारा फैलता है और बाद में महामारी का रूप धारण कर लेता है।

ये चमगादड़ जिस पेड़ पर रहते हैं, वहां मूत्र और लार के जरिये इस वायरस को फैला देते हैं और फिर जो भी मनुष्य या जानवर जाने-अनजाने में उस पेड़ के फल खाता है, वह निपाह से संक्रमित हो जाता है। निपाह वायरस की खोज करने वाले मलेशिया के प्रोफेसर चुआ का बिंग तथा स्टीफन तुंबी का कहना है कि यह वायरस दक्षिण एशिया में पाए जाने वाले एक बड़े आकार के चमगादड़ के कारण फैलता है, जिसे ‘इंडियन फ्रूट बैट’ यानी ‘फलभक्षी चमगादड़’ भी कहा जाता है।

भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर केरल में तो यह चमगादड़ बहुतायत में हैं, जो श्रीलंका तक फैले हैं। सबसे पहले निपाह वायरस का पता 1998 में मलेशिया में सुअर पालने वाले किसानों के बीच फैली महामारी के दौरान चला था। तब निपाह वायरस का पहला मामला मलेशिया के एक गांव कम्पुंग सुंगई निपाह में सामने आया था, जिसके बाद इसी गांव के नाम पर इस वायरस का नाम ‘निपाह’ रखा गया। उस समय इस बीमारी के वाहक सूअर बनते थे लेकिन उसके बाद जहां-जहां भी निपाह के मामले सामने आए, सुअरों के बजाय ‘फ्रूट बैट’ निपाह के सबसे बड़े वाहक बनकर सामने आए।

पहली बार मलेशिया में इस बीमारी का पता चलने और सिंगापुर के भी इससे प्रभावित होने के दौरान पाया गया था कि निपाह वारयस से संक्रमित अधिकांश व्यक्ति बीमार सुअरों या उनके दूषित उत्तकों के सीधे संपर्क में आए थे लेकिन उसके बाद बांग्ला देश तथा भारत में निपाह के कारण महामारी फैलने का सबसे संभावित स्रोत चमगादड़ों के मूत्र व लार से संक्रमित फल अथवा इन संक्रमित फलों से निर्मित उत्पाद या ताड़ी का सेवन रहा।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार निपाह वायरस इंसेफलाइटिस संक्रमण है, जो छूने मात्र से फैलता है और संक्रमण बड़ी तेजी से पूरे शरीर में फैलता है। इसकी चपेट में आने वाला व्यक्ति 24 से 48 घंटे के भीतर ही कोमा में जा सकता है और ऐसी स्थिति होने पर रोगी के बचने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है। निपाह वायरस बच्चों को सबसे पहले और आसानी से अपनी गिरफ्त में लेता है।

पशुजनित यह बीमारी चमगादड़ों या सुअरों के जरिये मनुष्यों में फैलती है और यह दूषित भोजन तथा मनुष्य से मनुष्य के संपर्क से भी फैल सकती है। निपाह संक्रमण से बचने का एक उपाय स्वच्छता है। निपाह से प्रभावित व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती है और फिर दिमाग में जलन महसूस होती है तथा सही समय पर इलाज नहीं मिलने पर मौत हो जाती है। बचाव व रोकथाम ही निपाह संक्रमण का एकमात्र उपचार है।


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