अंतत: महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और पांडवों की जीत हुई। अपने राज्याभिषेक के दिन युधिष्ठिर ने जिज्ञासावश वश उडुपी नरेश से पूछ ही लिया, हे महाराज! समस्त देशों के राजा हमारी प्रशंसा कर रहे हैं कि किस प्रकार हमने कम सेना होते हुए भी उस सेना को परास्त कर दिया। किंतु मुझे लगता है कि हम सब से अधिक प्रशंसा के पात्र आप हैं, जिन्होंने ना केवल इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध किया अपितु ऐसा प्रबंधन किया कि एक दाना भी अन्न का व्यर्थ ना हो पाया।
मैं आपसे इस कुशलता का रहस्य जानना चाहता हूं। इस पर उडुपी नरेश ने कहा, सम्राट! आपने जो इस युद्ध में विजय पायी है उसका श्रेय आप किसे देंगे? युधिष्ठिर ने कहा, श्रीकृष्ण के अतिरिक्त इसका श्रेय और किसे जा सकता है? अगर वे ना होते तो कौरव सेना को परास्त करना असंभव था। तब उडुपी नरेश ने कहा, हे महाराज! आप जिसे मेरा चमत्कार कह रहे हैं वो भी श्रीकृष्ण का ही प्रताप है।
ऐसा सुन कर वहां उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। तब उडुपी नरेश ने इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और कहा,हे महाराज! श्रीकृष्ण प्रतिदिन रात्रि में मूंगफली खाते थे। मैं प्रतिदिन उनके शिविर में गिन कर मूंगफली रखता था और उनके खाने के पश्चात गिन कर देखता था कि उन्होंने कितनी मूंगफली खायी है। वे जितनी मूंगफली खाते थे, उससे ठीक 1000 गुणा सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे।
अर्थात अगर वे 50 मूंगफली खाते थे तो मैं समझ जाता था कि अगले दिन 50000 योद्धा युद्ध में मारे जाएंगे। उसी अनुपात में मैं अगले दिन भोजन कम बनाता था। यही कारण था कि कभी भी भोजन व्यर्थ नहीं हुआ। श्रीकृष्ण के इस चमत्कार को सुनकर सभी उनके आगे नतमस्तक हो गए।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा