- एक दशक से ज्यादा पुरानी बसें, महानगर की बस सेवा का हाल बेहाल
- अधिकांश बसों में चालक की सीट तक बैठने के लायक तक नहीं
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: सीएनजी से चलने वाली सिटी बसों का बेड़ा एक दशक से भी ज्यादा पुराना है। ऊपर से आलम यह है कि इनके मेंटीनेंस के नाम पर खानापूर्ति कर ली जाती है। ऐसे में आम यात्रियों की सुविधा तो दूर, कई बसों में चालक की सीट तक बैठने के लायक नहीं रह गई है।
मेरठ महानगर की बस सेवा की अगर बात की जाए, तो इसके लिए सीएनजी से चलने वाली 80 बसें दो वर्ष पूर्व उपलब्ध कराई गई थीं। बताया गया है कि 2009-10 मॉडल की इन बसों का संचालन इससे पूर्व कानपुर महानगर में किया जाता रहा है। सीएनजी बसों को 15 वर्ष तक चलाया जाता है। ऐसे में कानपुर से मेरठ के लिए भेजी गई बसों की स्थिति 10-11 साल चल जाने के कारण काफी खराब हो चली है।
संयोगवश जनवाणी संवाददाता ने सीएनजी वाली एक बस की चालक सीट देखी, तो वह बैठने और सही ढंग से बस को चलाने के लायक भी नजर नहीं आ रही थी। वहीं इस बारे में पूछने पर बस के स्टाफ का कहना था कि इस बस की स्थिति तो फिर भी दूसरी बसों की तुलना में काफी बेहतर है। इन मार्गों पर अकसर सफर करने वाले यात्रियों का कहना है कि कई बसों की सीटें अपने फाउंडेशन से हिल चुकी हैं।
जिसके कारण उन पर पीठ लगाकर बैठने की दशा में यात्री पीछे की सीट पर बैठे सहयात्रियों के ऊपर गिरने की स्थिति में पहुंच जाते हैं। कई सीटों की गद्दियां ही उखड़ चुकी हैं, या गायब हो चुकी हैं। सिटी बस सेवा का कार्य देखने वाले एआरएम सचिन सक्सेना का कहना है कि सीएनजी की बसों में से 72 संचालित की जाती हैं, जबकि आठ को रिजर्व में रखा जाता है।
ये बसें निगम की संपत्ति जरूर हैं, लेकिन इनको चलाने के लिए चालक और रखरखाव करने का जिम्मा एक निजी कंपनी को दिया गया है। निगम की ओर से बसों पर परिचालक भेजने, आय-व्यय का ब्यौरा रखने और रूट का निर्धारण करने का काम है। बसों के रखरखाव पर नजर रखने के सवाल पर उनका कहना है कि यह कार्य निगम के फोरमैन के जिम्मे होता है।
जिनकी ओर से अक्सर बसों का निरीक्षण करते हुए अपनी रिपोर्ट दी जाती है। जिसमें बस के मेंटीनेंस में कमी मिलने पर संबंधित कंपनी के प्रतिनिधियों का ध्यान आकर्षित कराया जाता है। फोरमैन का कहना है कि बसें काफी पुरानी होने के कारण कुछ मामलों में सीटों का टूट जाना, फर्श का जंग खाकर बेकार हो जाना आम शिकायतें हैं। जिनको कंपनी के जरिये ठीक कराने का प्रयास किया जाता है।
एआरएम और फोरमैन दोनों का ही कहना था कि संबंधित कंपनी को महीने में दो-तीन पत्र इस बारे में लिखे जा रहे हैं। लेकिन बात घूम फिर कर बसों के एक दशक से अधिक पुरानी होने के कारण उनकी जर्जर अवस्था होना स्वाभाविक मान लिया गया है।