क्रूरता की जब कभी बात होती है तो लोग ‘जानवरों’ जैसे व्यवहार की मिसाल देते हैं। परंतु इंसान जैसे ‘बुद्धिमान’ समझे जाने वाली ‘प्राणी’ के हवाले से कुछ ऐसी घटनाएं सामने आने लगी हैं, गोया अब इंसानों की क्रूरतम ‘कारगुजारी’ के लिए ‘पशुओं जैसी क्रूरता’ या ‘हैवानियत’ की बात करने जैसी उपमाएं भी छोटी मालूम होने लगी हैं। किसी पशु या उसके द्वारा की जा रही हैवानियत की मिसाल देना इसलिए भी बेमानी है, क्योंकि किसी पशु द्वारा अपने स्वभावानुसार पशुता दिखाना या किसी जानवर द्वारा अपना पाशविक स्वभाव या पशुवृत्ति दर्शाना उसकी मनोवृति में शामिल है। इंसान को तो प्रकृति का ‘सर्वश्रेष्ठ प्राणी’ माना जाता है। अपनी बुद्धि के सदुपयोग से यही ‘अशरफ-उल-मखलूकात’ आज चांद और मंगल के रास्ते नाप रहा है। इस संसार में समाज के गरीब व पिछड़े लोगों की सहायता के लिए अनेक बड़े से बड़े संगठन बनाकर मानव ने अपने कोमल ह्रदयी होने का सुबूत दिया है। पूरा विश्व समाज किसी न किसी रूप में एक दूसरे पर निर्भर है। गोया इसी मानवीय सदबुद्धि, विश्वास और सहयोग की बदौलत ही दुनिया आगे बढ़ रही है।
आज के दौर में जब तथाकथित धर्म का बोलबाला है, प्रवचन कर्ताओं की पूरी फौज दिन रात समाज को ज्ञान और नैतिकता का पाठ पढ़ाती रहती है। धार्मिक समागमों में भीड़ पहले से कई गुना बढ़ती जा रही है। देश में एक से बढ़कर एक लोकप्रिय प्रेरक, लोगों को जीने की कला और सफल जीवन जीने के गुण सिखाते रहते हैं। दूसरी और इंसान है कि अपने आचरण, कृत्यों व विचारों के लिहाज से बद से भी बदतर होता जा रहा है।
दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म और इन सब के साथ ऐसी वहशियाना हरकतें करना कि पीड़िता तड़प तड़प कर जान दे दे? ऐसे कुकृत्य और जुल्म तो जानवरों को भी करते नहीं देखा गया? इंसानों को जिंदा जला देना, किसी व्यक्ति को वाहन में बांध कर उसे सड़कों पर घसीट कर मार डालना इतनी बेरहमी आखिर कोई इंसान कैसे कर सकता है?
अब तो इन्सान, इंसान को मारकर उसकी लाशों के टुकड़े करने में भी पीछे नहीं रहा। राजधानी दिल्ली में एक व्यक्ति ने लिव-इन रिलेशन शिप में रह रही अपनी एक महिला मित्र की न केवल हत्या करदी बल्कि उसके शरीर को 35 टुकड़ों में काट कर उन अंगों को 18 दिनों तक हत्यारा दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में नालों व तालाबों में फेंकता रहा। दिल्ली का ही तंदूर कांड तो देश कभी भूल ही नहीं सकता जबकि एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को मार कर उसकी लाश के टुकड़े कर उन्हें तंदूर में जला दिया था।
कोई बाप ने अपनी ही जवान बेटी की गोली मार कर हत्या कर उसकी लाश बड़ी बेरहमी से एक सूटकेस में ठूंस कर यमुना एक्सप्रेस वे पर सड़क किनारे लाश से भरा सूटकेस फेंक गया। बंगाल में एक नेवी अधिकारी को उसकी पत्नी और बेटे ने मिलकर पहले तो जान से मारा फिर बाथरूम में उसकी लाश रखकर आरी से उसके शरीर के छ: टुकड़े किए और उन्हें इलाके के विभिन्न हिस्सों में फेंक दिया। पति-पत्नी और लिव इन रिलेशन शिप में होने वाली हत्याओं का तो सीधा अर्थ है भरोसे और विश्वास की हत्या।
पिता-पुत्र-मां-बहन-भाई-बहनोई-साले आदि संबंधों के मध्य होने वाली हत्याओं का अर्थ है रिश्तों का कत्ल। रिश्तों और भरोसों का कत्ल गोया सामान्य घटना बनती जा रही है। कभी-कभी तो विचार आता है कि ऐसी घटनाओं में प्राय: एक दो चार सिर फिरे व क्रूर प्रवृति के लोग ऐसे कारनामे अंजाम दे डालते हैं। यदि यहां अधिक लोग होते तो शायद ऐसी घटना न घटती। परंतु ऐसे विचार भी तब बेमानी नजर आने लगते हैं जब हम दंगाइयों की सामूहिक भीड़ की क्रूरता पर नजर डालते हैं। याद कीजिए 1984 में एक धर्म विशेष के लोगों को किस बेरहमी से कत्ल किया गया था।
भीड़ जिंदा लोगों को टांगें पकड़ कर मारते हुए खींचते हुए जगह-जगह इंसानों की जलती चिताओं में फेंक रही थी। गले में जलते हुये टायर डाल कर हत्याएं हो रही थीं। लोगों को उनके घरों में आग लगाकर जिंदा जलाया जा रहा था। आम लोग तो क्या पुलिसकर्मी भी इन्हें बचाने नहीं आ रहे थे। 2002 का गुजरात याद कीजिए। कैसे ट्रेन के डिब्बे में आग लगाकर दंगाइयों ने 59 लोगों को जिंदा जला दिया था।
उसके बाद गुजरात के बड़े क्षेत्र में दंगाइयों द्वारा महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म, महिलाओं का स्तन काटा जाना, उनके पेट फाड़ कर बच्चा बाहर निकालना,शरीर के टुकड़े-टुकड़े करना, धर्म विशेष की पूरी की पूरी बस्ती आग के हवाले कर देना और इस तरह के न जाने कितने जुल्म धर्म के नाम पर धर्मांध भीड़ द्वारा दिल्ली गुजरात जैसी कई जगहों पर किए जाते रहे हैं। कुछ अति शरारती तत्व हमारे ही समाज में ऐसे भी हैं जो केवल अपने राजनैतिक लाभ के लिए अपने आकाओं के इशारे पर ऐसी क्रूरतम घटनाओं में अपराधी की धर्म-जाति देखकर ही प्रतिक्रिया करते हैं।
यह चलन और भी बेहद खतरनाक है। यदि हत्यारा या जघन्य अपराधी उनकी अपनी बिरादरी या धर्म का है तो वे खामोश रहेंगे। केवल खामोश ही नहीं, बल्कि प्राय: अपराधी यहां तक कि हत्यारे, दुष्कर्मी व सामूहिक दुष्कर्म के दोषी का खुलकर पक्ष भी लेने लगेंगे। और यदि अपराधी दूसरे धर्म-जाति का है फिर तो समाज में आग लगाने की पूरी कोशिश करेंगे।
ऐसे लोगों की भी गिनती क्रूर अपराधी मानसिकता रखने वालों में ही की जानी चाहिए। समाज को ऐसे लोगों व उनके इरादों के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। विशेषकर हमारे समाज को ही इस बात पर चिंतन मंथन करने की जरूरत है कि आखिर क्या वजह है और उसके संस्कारों में क्या कमी रह गई है कि आज इंसान हैवानियत की सारी हदें पार करता जा रहा है।