Monday, May 12, 2025
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निगम में एक के बाद कई बड़े भ्रष्टाचार के खुलासे, कार्रवाई सिफर

  • मामले में दोषी के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर कर दी जाती है खानापूर्ति

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही प्रदेश के विभिन्न विभागों को भ्रष्टाचार मुक्त बनाकर जीरो टारलेंस नीति के सफल होने के मंच से कसीदे पढ़ते दिखाई देते हैं, लेकिन उनके यह कसीदे नगर निगम के अधिकारियों के लिये कोई मायने नहीं रखते। महानगर में भले ही निवर्तमान मेयर बसपा की रही हों, लेकिन नगरायुक्त एवं तमाम आलाधिकारी तो सरकार एवं शासन के आधीन काम करते हैं।

उसके बावजूद नगर निगम में भ्रष्टाचार के आरोप प्रत्यारोप आये दिन लगते हुये देखे जा सकते हैं। जिन आरोपों को वर्जन के रूप में बेबुनियाद बनाते तक का समय अधिकारियों के पास नहीं होता। वह किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में वर्जन देने से कतराते हैं, आखिर वजह क्या है? बताते भी नहीं। वर्जन देने को लेकर एक-दूसरे के पाले में गेंद डालते नजर आते हैं। यदि किसी छोटे अधिकारी या कर्मचारी से वर्जन लेने का प्रयास किया जाये तो वह कह देता है कि वह वर्जन देने के लिये अधीकृत नहीं है।

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वहीं यदि नगरायुक्त से वर्जन के बारे में पूछा जाये तो वह यह कहकर मामले से पल्ला झाड़ लेते हैं कि नगर निगम का बड़ा क्षेत्र है, संबंधित विभाग के अधिकारी से बात करें। वर्जन को लेकर एक-दूसरे के पाले में गेंद डालते अधिकारी नजर आते हैं। कुछ ऐसे ही मामले हैं, जिनमें भ्रष्टाचार के आरोप लगे, लेकिन वह फाइलों में ही दबकर रह गये।

23 कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति के मामले का सच जनता के बीच में अब तक नहीं आ सका, फाइलों में हो रहा दफन

  • नगर निगम में 23 कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति का मामला कई वर्षों से चल रहा है। शिकायतकर्ता कोई आम व्यक्ति नहीं बल्कि नगर निगम में कार्यरत पूर्व मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डा. प्रेम सिंह के द्वारा तमाम तथ्यों के आधार पर शासन एवं प्रशासन से शिकायत की गई। मामला सीबीसीआईडी के पास जाने की बात तक कही गई, लेकिन अपर नगरायुक्त ने बिना किसी सीबीसीआईडी की जांच पत्र संलग्न किये ही प्रेस नोट जारी कर सभी कर्मचारियों को खुद की जांच में निर्दोष बता दिया गया। वहीं जो जांच पत्र उन्होंने डीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री पोर्टल के लिये भेजा उस पर निगम के तत्कालीन स्वास्थ्य अधिकारी डा. प्रेम सिंह ने गलत पत्रांक संख्या पर जांच टीम गठित होने एवं गलत पत्रांक संख्या पर जांच रिपोर्ट भेजने का गंभीर आरोप लगाया। फिलहाल मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। इन फर्जी नियुक्ति के आरोप प्रत्यारोप में सही गलत क्या है? जनता के बीच आज तक सच सामने नहीं आ सका।

निगम में कार्यरत एक कर्मचारी के दो पिता के नामदर्ज होने का प्रकरण भी फाइलों में दबा

  • हापुड़ निवासी दिनेश त्यागी नाम के एक व्यक्ति ने बताया कि उसने महानगर में एक मकान महिला से खरीदा था। जिसमें निगम में कार्यरत कर्मचारी ने जब निगम में नौकरी मृत आश्रित कोटे से प्राप्त की तो वह अपने ताऊ का दत्तक पुत्र बन गया। जब मकान का मामला आया तो वह अपने वास्तविक पिता के नाम से हाउस टेक्स की फाइलों में नाम चढ़वा लिया। निगम में कार्यरत एक कर्मचारी के दो पिता दर्ज होने का मामला भी जांच के नाम पर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

भाजपा सांसद के शिकायती पत्र पर भी जांच का कोई परिणाम नहीं निकला

  • भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवल के द्वारा वार्ड-35 में सड़क निर्माण में बडेÞ घोटाले का आरोप लगाया कि जिसकी शिकायत मुख्यमंत्री तक को शिकायती पत्र भेजकर की। जांच में कई अधिकारी एवं कर्मचारी दोषी पाये गये, लेकिन कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर दी गई। जबकि फाइलों में दोषी कर्मचारी एवं अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की गई, वह आदेश फाइलों में दबकर रह गया।

गाड़ी चालक गफ्फार के वेतन का मामला भी निगम की फाइलों में दबा

  • नगर निगम में कार्यरत एक गाड़ी चालक गफ्फार के 15 वर्षों में एक बार वेतन मिलने की शिकायत जन सुनवाई के दौरान की गई, लेकिन उसके मामले में जांच का निष्कर्ष क्या निकला? वह सच अब तक सामने नहीं आया। गफ्फार ने जो आरोप अपने शिकायती पत्र में लगाये थे क्या वह सही थे या गलत उस पर भी तक जांच लंबित है।

नौचंदी मेले में घटिया निर्माण सामग्री लगाने वाले ठेकेदार पर कोई कार्रवाई नहीं

  • नौचंदी मेले में घटिया सामग्री निर्माण को लेकर तमाम आरोप-प्रत्यारोप लगे हैं। ठेकेदार को निगम के अधिकारियों के द्वारा नोटिस जारी करने की बात कही गई। उसके बावजूद घटिया निर्माण सामंग्री से कार्य जारी रहा। घटिया निर्माण सामग्री लगाने वाले ठेकेदार के खिलाफ भी कोई कार्रवाई होती दिखाई नहीं दी, वह भी फाइलों में दबकर रह गई।

30 मीटर की सड़क 54.2 मीटर दिखाने के मामले में निगम के अधिकारी मौन

  • वार्ड-85 जाकिर कॉलोनी में 30 मीटर सड़क निर्माण के कार्य को निगम के जांच अधिकारियों ने 54.2 मीटर माप बुक में दर्शाकर ठेकेदार का भुगतान तक करा दिया। जब वर्जन लिया गया तो कभी 30 मीटर की गली निर्माण के बराबर में दूसरी गली का निर्माण बता तो कभी इसी वार्ड में अन्य जगहों पर पुलिया निर्माण की बात बताई गई। 30 मीटर की सड़क निगम की माप बुक में 54 मीटर कैसे दर्शा दी गई। दोषी ठेकेदार एवं निगम के कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती दिखाई दी।

दोषी लिपिक को बचाने में जुटे निगम अधिकारी

  • एक लिपिक की गलत से एक कर्मचारी का 23 दिन बाद रिटायमेंट हुआ। उस लिपिक के खिलाफ नोटिस जारी तो कर दिया गया, लेकिन उस नोटिस का जवाब अभी तक नहीं दिया गया है। ये मामले तो हाल फिलहाल के बानिगी भर हैं, न जाने कितने मामले फाइलों में दबे हैं।
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