एक व्यक्ति जिसे मृत्यु से बड़ा भय लगता था, ने बड़ी चतुराई से काल को ही अपना मित्र बना लिया। उसने अपने मित्र काल से कहा, मित्र, तुम किसी को भी नहीं छोड़ते हो, किसी दिन मुझे भी अपने साथ ले जाओगे।
काल ने कहा, ये मृत्यु लोक है। जो आया है उसे मरना ही है। व्यक्ति ने कहा, मित्र मैं इतना ही चाहता हूं कि आप मुझे ले जाने से कुछ दिन पूर्व सूचना जरूर देना। ताकि मैं सब प्रबंध कर, भजन बंदगी शुरू कर दूं।
आखिर मृत्यु की घड़ी आ पहुंची। काल बोला, मित्र समय पूरा हुआ मेरे साथ चलिए। उस व्यक्ति के माथे पर बल पड़ गए, कहने लगा, धिक्कार है तुम्हारे जैसे मित्रों पर! तुमने मुझे वचन दिया था कि आने से पूर्व सूचना दोगे।
परंतु तुम तो बिना किसी सूचना के अचानक लेने आ गए। काल हंसा और बोला, मित्र इतना झूठ तो न बोलो। मैंने आपको एक नहीं चार संदेश भेजे। मेरे चारों संदेश इस समय आपके पास मौजूद हैं।
आपके काले से सफेद हुए बाल, आपके नेत्रों की मंद ज्योति। दो मिनट भी संसार की ओर से आंखें बंद करके, ज्योतिस्वरूप प्रभु का ध्यान नहीं किया। मेरा तीसरा संदेश, तुम्हारे गिरे हुए दांतों के रूप में आया।
अपने अंतिम संदेश के रूप में मैंने रोग और पीड़ाओं को भेजा, परंतु तुमने उनको भी नजर अंदाज कर दिया। उसने स्वीकार किया कि मैंने माया के मोह में इन चेतावनी भरे संदेशों पर गौर ही नही किया।
मैं सदा यही सोचता रहा कि कल से भगवान का भजन करूंगा, अपनी कमाई अच्छे शुभ कार्यों में लगाऊंगा, पर वह कल ही नहीं आया। काल ने कहा, तुम्हारे ये सारी धन-संपत्ति , जमीन-जायदाद, सब यहीं छूट जाएगा। मेरे साथ तुम भी उसी प्रकार निर्वस्त्र जाओगे जैसे कोई भिखारी की आत्मा जाती है। क्योंकि ये सब साथ नहीं जा सकेगा।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा
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