
मैं मर जाऊं तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना/ हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे हम अपने घर में कई आफताब रखते हैं, जैसी न जाने कितनी कालजयी पंक्तियों, फिल्मी गीतो व शेर-ओ-शायरी के माध्यम से पूरी दुनिया के करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाले मशहूर शायर राहत इंदौरी आज हमारे बीच नहीं हैं, परंतु अपनी शायरी तथा उसे अपने खास अंदाज में कही गई उनकी आवाज फिजाओं में गूंजती रहेगी। उन्होंने जिस विद्रोही अंदाज में शायरी की और जिस आक्रामक अंदाज मे उसे प्रस्तुत किया, आज उनके जन्मदिवस पर वे बहुत याद आते हैं। अगर वे आज होते तो किसान आंदोलन पर जरूर कुछ कहते पर वे लिख कर रख भी गए, अभी गनीमत है सब्र मेरा अभी लबालब भरा नहीं हूं/वो मुझको मुर्दा समझ रहा है उसे कहो मैं मरा नहीं हूं।
एक जनवरी 1950 को मध्य प्रदेश के इंदौर में एक गरीब परिवार में जन्मे राहत ने इंदौर शहर को ही अपना सरनेम बना लिया था। उनके पिता ने गांव से इंदौर आने पर पहले टैंपो चलाया फिर कपड़ा मिल में कर्मचारी की नौकरी की। अपने माता-पिता की चौथी संतान राहत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर से पूरी कर वहीं से ग्रेजुएशन किया। उर्दू साहित्य से पोस्ट ग्रेजुएशन उन्होंने गोल्ड मेडल लेकर किया। इसके बाद उन्होने उर्दू में मुशायरा विषय पर पीएचडी पूरी की और उर्दू के प्रोफेसर बन गए। उन्होंने उर्दू को आम जबान की भाषा बनाकर जन-जन तक पहुंचा दिया। जब वे कहते हैं, सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े है तो सभी बरबस उनकी ओर खिंचे चले आते हैं। उन्होंने लगभग दो दर्जन फिल्मों में अपने गीतों से लोगों को झूमने पर मजबूर किया। उनके गीतों से सजी कुछ फिल्में खुद्दार, मिशन कश्मीर, मुन्ना भाई एमबीबीएस, जानम, नाराज, याराना, मर्डर, करीब, इश्क, बेगम जान, घातक हैं। इन गीतों में से कुछ आज तक लोगों की जबान पर हैं। फिल्म सर का आज हमने दिल का हर किस्सा तमाम कर दिया या फिल्म खुद्दार का तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है सुनते वक्त राहत जी सामने खड़े हो जाते हैं और कहते से लगते हैं कि ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आए/वो हम नहीं हैं, जिन्हे रास्ता चलाता है। फिल्म मर्डर का दिल को हजार बार रोका रोका रोका तथा फिल्म मुन्ना भाई के गाने देखले आंखों में आंखें डाल देख ले को सुनते समय रोमांटिक गुदगुदी की जो सरगोशी होती है, उसकी मिसाल आसानी से नहीं मिलती।
उनके हरफनमौला व्यक्तित्व का पता इसी से लगता है कि शायरी के साथ उन्होंने चित्रकारी में भी हाथ आजमाया था। उन्होने वर्षों फिल्मों के बैनरों और पोस्टरों को डिजाइन किया। इसके साथ बाद तक वे अपनी लिखी पुस्तकों के कवर पेज को खुद ही डिजाइन किया करते थे।
उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था, इसकी बानगी जो बहुत कम लोगों को पता होगी कि वे अपने कालेज के दिनों में हॉकी व फुटबाल टीम के कप्तान हुआ करते थे। इसी खिलाड़ीपन का असर था शायद कि उन्होंने निडरता और बेबाकी से अपनी बात रखी। चाहे वो सरकार के खिलाफ होÑ चाहे समाज के। उन्होंने कहा, अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है बस्तियां छोड़ के जाने को कहा जाता है, पत्तियां रोज गिरा जाती हैं जहरीली हवा और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है। इन पंक्तियों से उनके मन की पीड़ा को समझा जा सकता है। वे 70 की उम्र में भी मुशायरों की जान थे। जिंदगी के बारे में उन्होंने कहा, हमीं बुनियाद के पत्थर हैं/लेकिन हमें ही घर से निकाला जा रहा है/जनाजे पर मेरे लिख देना यारो मोहब्बत करने वाला जा रहा है। उनकी शेरों और गीतों को पेश करने का अंदाज इतना इतर था कि यदि उनके गीतों को कोई और पढ़ता था तो कमी सी लगती थी। एनआरसी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जब विरोध प्रदर्शन हुए तो फिजाओं में उनके शेर जैसे विरोध की आवाज ही बन गए। शायर कभी सीधी लड़ाई नहीं। लड़ता वास्तव में उसका काम भी केवल समाज में जागृति पैदा करना है। वो केवल इशारों मे अपनी बात कहता है। इसमें राहत साहब को महारथ हासिल थी। उन्होंने कई मौकों पर इशारों में सरकार को चुनौती भी दी, लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में/यहां पर सिर्फ हमारा मकान थोड़े है /जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे/किरायेदार हैं जाती मकान थोड़ी है।
अपनी आलोचना करने वालोें को उन्होंने जवाब दिया, मैं जानता हूं मेरे दुश्मन भी कम नहीं/लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है। सामने वाले को चेताते हुए वे कहते हैं, शाखों से टूट जाएं वो पत्ते नहीं हैं हम/आंधी से कोई कह दे औकात में रहे। युवाओं से उन्होंने कहा, लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं/इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यों हैं/जवानी होती है संभलने के लिए पर यहीं आके सब फिसलते क्यों हैं। कपिल शर्मा के शो मे अभी हाल ही में उनसे पूछा गया कि इतने उम्रदराज होने पर भी वे इतनी रोमांटिक शायरी कैसे कर लेते हैं? उनका जवाब सभी लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उन्होंने कहा, आदमी शरीर से बूढ़ा होता है दिल से नही। प्यार मोहब्बत राजनीति या समाज से जुड़ी बात हर मौके का शेर उन्होंने कहा है और ऐसा कहा और पढ़ा कि वो ब्रांड बन गया। ऐसा शायर कभी सदियों में पैदा होता है। पर वे हमेशा अपने गीतो गजलों के रूप में हमारे दिलों मे रहेंगे। 10 अगस्त को उन्हें कोरोना से पीड़ित पाया गया। 11 अगस्त की शाम को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई।
अंत में उन्हे याद करते हुए उन्ही की पंक्तियां उन्हें समर्पित हैं-ये बूढ़ी कब्रें तुम्हें कुछ नही बताएंगी/मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूं मैं, यहीं हूं मैं।