- इस बार चैत्र नवरात्र का समापन 21 अप्रैल को
- 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र में होगा जो है अति शुभ
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि धार्मिक दृष्टि से नवरात्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों का पूजन किया जाता है। पौराणिक काल से मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन के तमाम असामान्य संकट दूर होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी होती हैं। इस बार चैत्र नवरात्र 13 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं। जोकि 21 अप्रैल को समाप्त होंगे।
हमारे शास्त्रों में नवरात्र के दिनों को बेहद शुभ दिन माना जाता है। इस दौरान तमाम शुभ काम करने का चलन है। नवरात्र पर माता के भक्त घर पर घट स्थापना करके नौ दिन तक माता का विधि-विधान से पूजन करते हैं एवं अखंड दीपक जलाते हैं और ज्वारे बोते हैं।
इस बार चैत्र नवरात्र काल में अति शुभ मुहूर्त
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस बार की चैत्र नवरात्र का पर्व नवीन कार्यों को आरम्भ करने के लिए अति शुभ दिन 14 अप्रैल से लेकर 21 अप्रैल राम नवमी तक रहेंगे, क्योंकि काफी वर्षों बाद ऐसा संयोग पड़ा है जब चैत्र की नवरात्र खर मास युक्त नहीं है क्योंकि 14 अप्रैल को खर मास समाप्त हो जाएगा और इस बार की चैत्र नवरात्र की अष्टमी और नवमी तिथि 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र युक्त होगी क्योंकि 20 अप्रैल को पुष्य नक्षत्र सुबह 6 बजकर 52 मिनट से आरम्भ हो जाएगा जो कि 21 अप्रैल को सुबह 7 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि 20 अप्रैल का दिन किसी भी नवीन कार्य को आरम्भ करने के लिए अति शुभ मुहूर्त है इस बार की चैत्र नवरात्र में।
घट स्थापना का मुहूर्त और विधि
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया इस बार चैत्र नवरात्र में हिन्दू पंचांग के अनुसार 13 अप्रैल के दिन घट स्थापना होगी। शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 28 मिनट से सुबह 10 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। घट स्थापना के लिए सबसे पहले मां दुर्गा के सामने उनके नाम की अखंड ज्योति जलाएं। इसके बाद मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें और उसमें जौ के बीज डालें।
अब एक मिट्टी के कलश या घर के लोटे को अच्छे से साफ करके उस पर कलावा बांधें और स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद कलश में गंगाजल और थोड़ा सामान्य जल डालकर भरें। जल में दक्षिणा, अक्षत, साबुत सुपारी और दूब डालें। इसके बाद कलश के मुख पर आम या अशोक के 5 या 7 पत्ते लगाएं और कलश को ढक्कन से बंद कर दें। इस ढक्कन पर अनाज भरें और जटा वाले नारियल को लाल रंग के कपड़े से लपेट कर इसके ऊपर रखें। कलश को जौ वाले पात्र के बीच में रखें और सभी देवी-देवताओं का आह्वान करके कलश पूजन करें। और नवरात्र के दिनों में दुर्गा के नवार्ण मन्त्र का प्रतिदिन कम से कम एक माला या 11 मालाओं का जाप 9 दिनों तक करें एवम इसी मन्त्र से अष्टमी या नवमी तिथि को 108 आहुतियों के साथ हवन करें।
नवरात्र के व्रत का महत्व
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि नवरात्र का व्रत सिर्फ धार्मिक लिहाज से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी काफी लाभकारी है। नौ दिनों के दौरान भक्त मां का व्रत श्रद्धानुसार करते हैं। इस दौरान किसी का अहित, किसी की निंदा या गलत कार्यों को करने से बचते हैं।
ऐसे में देखा जाए तो धार्मिक रूप से ये व्रत व्यक्ति के तन, मन और उसकी आत्मा की शुद्धि करता है। वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें तो नवरात्र के दौरान ऋतु परिवर्तन होता है। इस मौसम में संक्रामक रोग फैलते हैं। गलत खानपान से लोगों के बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में नवरात्र का व्रत उनके खानपान को संतुलित करता है। व्रत के दौरान सात्विक आहार लेने और फल का सेवन करने से शरीर के विषैले तत्व बाहर निकलते हैं और व्यक्ति का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।