Saturday, June 21, 2025
- Advertisement -

वर्षा जल का सहेजने की जरूरत

Samvad 1


RITUPARN DAVEY 1यूं तो समूची पृथ्वी पर 97 प्रतिशत पानी ही पानी है। लेकिन 3 प्रतिशत ही उपयोग के लायक है। उसमें भी 2.4 प्रतिशत ग्लेशियरों और उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में जमा हुआ है और केवल 0.6 प्रतिशत पानी बचता है जो नदियों, झीलों, तालाबों और कुओं में है, जिसे हम उपयोग करते हैं। यकीनन आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला है, लेकिन हकीकत यही है। बीते कुछ वर्ष पूर्व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक याचिका दाखिल हुई थी। उसके आंकड़े बेहद सचेत करते हैं, जिसमें कहा गया था कि भारत में रोजाना 4,84,20,000 क्यूबिक मीटर से ज्यादा पीने का पानी केवल बर्बाद होता है। लोकसभा में प्रश्न संख्या 2488 के जवाब में दो वर्ष पूर्व पता चला था कि 23 प्रतिशत ग्रामीण आबादी जो 21 करोड़ के लगभग है, को पीने के लिए जहां साफ पानी तक मुहैया नहीं है, वहीं सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 71 करोड़ ग्रामीणों को रोजाना 40 लीटर तो 18 करोड़ को उससे भी काम पानी मिल पाता है। वाकई में केवल भारत में स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद यह मौजूदा स्थिति बेहद चिंतनीय है। लेकिन ढाई बरस बाद यानी 2025 तक हमारी पानी की मांग 40 बिलियन क्यूबिक मीटर से बढ़कर 220 बिलियन क्यूबिक मीटर होगी तब चिंता और भी ज्यादा होगी।

लगभग समूचे भारत में पीने के पानी का संकट बारिश के दो-चार महीने बाद ही शुरू हो जाता है। दूसरी बड़ी सच्चाई यह कि आज कोई भी महानगर हर घर चौबीसों घंटे जल आपूर्ति बनाए रखने की स्थिति में नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि अभी दुनिया में करीब पौने दो अरब लोगों को शुद्ध पानी नहीं मिलता है। वहीं संयुक्त राष्ट्र की मौसम विज्ञान एजेंसी (डब्ल्यूएमओ) की ‘द स्टेट आॅफ क्लाइमेट सर्विसेज 2021 वॉटर’ नाम की नई रिपोर्ट बताती है कि 2018 में दुनिया भर में 3.6 अरब लोगों के पास पूरे साल में करीब एक से दो महीने पानी की जबरदस्त कमी थी। यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो यह 2050 तक 5 अरब लोग कमी से जूझेंगे। सबको पता है कि 0.05 प्रतिशत पानी ही उपयोगी और ताजा है। जबकि अभी दुनिया की आबादी करीब 7.9 अरब है।

जलवायु परिवर्तन का सीधा असर बारिश के पूर्वानुमानों और कृषि चक्र की सदियों से बनीं ऋतुओं पर भी पड़ा है। कभी लगता है कि मानसून जल्दी आ गया, कभी लगता है कि आकर भटक गया। कभी बादल उमड़-घुमड़ कर भी बिना बरसे निकल जाते हैं। कभी बरसते हैं तो ऐसा कि शहर के शहर पानी-पानी हो जाते हैं। कुल मिलाकर एक अनिश्चितता बनी रहती है। प्रकृति के इसी बदलाव या असंतुलन के चलते बारिश को लेकर पल-पल बदलती स्थितियों से लगता नहीं कि मौसम का मिजाज बेकाबू हो गया है और बेहद गुस्से में है? यह बेहद खतरनाक स्थिति है। बावजूद इसके हम गंभीर नहीं हैं, न बारिश के पानी को सहेजने और न प्रकृति के साथ बेरहमी को लेकर।

क्या होगा तब जब बकौल विश्व बैंक की उस रिपोर्ट, जिसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन और जबरदस्त पानी के दोहन के चलते देश भर के 60 फीसद वर्तमान जल स्रोत, सूख जाएंगे। खेती तो दूर की कौड़ी रही, प्यास बुझाने की खातिर पानी होना नसीब की बात होगी। उधर ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ की वह रिपोर्ट भी डराती है, जिसने पानी संकट को दस अहम खतरों में ऊपर रखा गया है। यह दसवीं ‘ग्लोबल रिस्क’ रिपोर्ट है। पहली बार हुआ कि जल संकट को बड़ा और संवेदनशील मुद्दा माना गया, वरना दशक भर पहले तक वित्तीय चिंताएं, देशों की तरक्की, ग्लोबल बिजनेस, स्टॉक मार्केट का पल-पल बदलाव, तेल बाजार का उतार-चढ़ाव ही अहम होते थे।

आंकड़े, नतीजे और कोशिशें बताती हैं कि 20-21 बरस पहले मध्या प्रदेश के उज्जैन के बलोदा लाखा गांव में किसानों के द्वारा खेतों में बनाए गए छोटे-छोटे तालाब और सूखे कुओं का पुर्नभरण, महाराष्ट्र में वनराई नामक गैर सरकारी संगठन के द्वारा रेत की बोरियों से बनाए गए बंधार, 1964 में पुणे के पास पंचगनी में मोरल रियरमामेंट सेंटर बनाते समय नक्शे में बारिश पानी को सहेजने की डिजाइन और तीन अलग व सफल तालाब बनाना, जिसके पानी का पूरे साल किए जाने जैसे कई उदाहरण हैं। देश में ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं, जो भूजल को लेकर काफी पहले से हो रही चिंताओं को जताते हैं। दशकों पुराने ऐसे न जाने कितने उदाहरण मिल जाएंगे, जिनमें बारिश के पानी को सहेजने की ललक थी, चिंता थी। लेकिन अब जबकि तेजी से औद्योगिकीकरण हुआ, न जाने कितने लाख हेक्टेयर में जंगल साफ हुए और करोड़ों पेड़ कट गए, बड़े-बड़े स्थानीय पहाड़ या टीले गिट्टी की खातिर विस्फोट या बड़ी-बड़ी मशीनों से समतल हो गए। कंक्रीट के जंगल, नदियों का सीना छलनी कर निकाली गई रेत से सूखी नदियां, हर गांव से लेकर महानगरों तक असंख्य बोरवेल ने धरती की कोख रात-दिन चूसकर सूखी कर दी और हम हैं कि बारिश के पानी को सहेज वापस धरती को लौटाने के लिए सिवाए औपचारिकता पूरी करने, चिंतातुर नहीं दिखते!

अभी पानी है तो उसे सहेजने को लेकर हम जरा भी फिक्रमंद नहीं। वर्षाजल को सहेजने के लिए कागजों में तो हमारे पास बड़ी-बड़ी योजनाएं हैं। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के एक से एक मॉडल हैं। घर की छत हो या शहर, कस्बे की सड़कें या फिर खेतों की मेड़ या समतल मैदान हर जगह मामूली से खर्चे पर बरसाती पानी को वापस धरती में, घर के कुएं या बोरवेल, बावड़ी या तालाब में पहुंचाने के आसान डिजाइन हैं। लेकिन कहां-कहां इस पर लोग, जनप्रतिनिधि, स्थानीय प्रशासन, सरकारें और ब्यूरोक्रेट्स संजीदा हैं?

लगता नहीं कि जिस तरह साफ-सफाई, खुले में शौच रोकने, देश भर में सड़कों का नेटवर्क, हर गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने की मुहिम, स्मार्ट सिटी, स्मार्ट क्लास, डिजटलीकरण की अनिवार्यता यानी हमारे जीवन को सुलभ, आसान बना जरूरतों को पूरी करने की कवायदें दिखती तो हैं, लेकिन पानी के सहेजने को लेकर यही गंभीरता क्यों नहीं दिखती? वर्षा जल संग्रहण हरेक घर, दफ्तर, प्रतिष्ठानों, खेत, कुआं, तालाब, बावड़ियों के लिए न केवल अनिवार्य हो, बल्कि हर साल और खासकर बारिश के दौरान इस बात का नियमित आॅडिट भी हो कि कहां-कहां कितना जल संचय हो सका। इसके लिए उन्नत तकनीकें विकसित की जाएं जो अब बेहद आसान हैं। ड्रोन, सैटेलाइट मैपिंग, सर्वेक्षण से जानकारी संकलित की जाए कि हर उस जगह से जहां, पूरे साल जल का दोहन किया जाता है, वापस कितना बारिश का पानी उस स्रोत को लौटाया गया। जब मनुष्य से लेकर पशुओं तक का सर्वेक्षण हो सकता है तो बारिश जल संग्रहण का क्यों नहीं? इसके लिए चाहे पीपीपी मॉडल विकसित हो या कानून की समझाइश या फिर डंडा का इस्तेमाल किया जाए। हां, भावी पीढ़ी के सुरक्षित जीवन के लिए बिना देर किए यह करना ही होगा वरना इतनी देर हो चुकी होगी कि जहां हिरोशिमा और नागासाकी से भी बड़ी त्रासदी जैसा कुछ हो जाए तो हैरानी नहीं होगी।


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Yogini Ekadashi 2025: योगिनी एकादशी आज, दीपदान और विष्णु मंत्रों से होगा पापों का नाश

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Saharanpur News: एसएसपी ने रिजर्व पुलिस लाइन का किया निरीक्षण, परेड की ली सलामी

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रोहित सिंह सजवाण...

Saharanpur News: अंतरराष्ट्रीय तनावों के बीच डगमगाया सहारनपुर का लकड़ी हस्तशिल्प उद्योग

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: जनपद की नक्काशीदार लकड़ी से बनी...

Share Market Today: तीन दिनों की गिरावट के बाद Share Bazar में जबरदस्त तेजी, Sunsex 790 और Nifty 230 अंक उछला

नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और...
spot_imgspot_img