राजाओं के राज में राजा का बेटा ही राजा बनता था। वहां कोई किंग मेकर नहीं होता था। जंगल में शेर सबसे शक्तिशाली होता है, इसलिए वह जंगल का राजा कहलाता है। वहां भी कोई किंग मेकर वाली बात नहीं होती। अब हमारे यहां लोकतंत्र शासन व्यवस्था बनी हुई है, इसलिए यहां राजा विधायिका में बहुमत वाली पार्टी का नेता बनता है। लेकिन कभी ऐसी बाजी फंस जाती है कि किसी पार्टी के स्पष्ट बहुत मिलने से किसी मिली-जुली पार्टी के सहयोग से सरकार के मुखिय का चयन होता है। और कभी ऐसा भी होता है कि चुनाव में दो प्रमुख पार्टियों को स्पष्ट बहुत नहीं मिले तो तीसरी पार्टी का नेता अपनी पार्टी के सहयोग से किंग मेकर बनकर सामने आता है। यह उसकी इच्छा यानी स्वार्थ सिद्धि पर निर्भर करता है कि वह किसका समर्थन करे, किसका ना करे। लाभ के गणित के हिसाब से जिस पार्टी में उसे सुविधा, लाभ अधिक मिलेगा तो फिर वह उसे ही राजा बना देगा।
ऐसी स्थिति पश्चिमी बंगाल में आने वाले चुनाव में बनने की संभावना, वह व्यक्ति व्यक्त कर रहा है, जिसे सत्ता पक्ष की पार्टी ने अनुशासनहीनता के चलते निकाल कर बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब वही अपने जन आधार के चलते यही बात कहता जा रहा है कि मेरी पार्टी के बिना सरकार नहीं बन सकती। अब वह समय गया जब एक समुदाय विशेष के लोग एक पार्टी को वोट दिया करते थे। अब इस वोट बैंक में सेंध लगने जा रही है। इसलिए इसमें पिछले वर्षों से चली आ रही सरकार की चूलें हिलने की पूरी संभावना है। इसके चलते तीसरी पार्टी के नेता जो एक समुदाय विशेष का नेतृत्व करता है, वह अपने जन आधार पर तरह-तरह की घोषणा कर अपना महत्व बता रहा है। वैसे तो चुनाव के समय ही कौन किस ओर करवट लेगा, इसका पता तो नहीं चल पाएगा, सिर्फ अंदाजा ही लगा कर सकते हैं। तीसरी बड़ी पार्टी के नेता ऐसा वक्तव्य दे रहा है जैसे वह भविष्य के परिणामों का परिदृश्य प्रस्तुत कर रहा हो।
जब कभी कोई नेता अपनी भाषण कला से लोगों को अपने विचारों से प्रभावित करने लगता है तो उसे लगने लगता है कि उसका जनाधार बढ़ रहा है तथा उसकी लोकप्रियता लोगों के बीच बढ़ रही है। वह पार्टी में अपने को बहुत महत्वपूर्ण मान बैठता है। फिर अपनी कमान को साध कर तीर चलाने लगता है। पार्टी उसके बढ़ते व्यवहार से चिंतित हो उसे अनुशासन बनाए रखने के लिए कहती है, पर वह तो राजनीति में अपना भावी स्थान, रबड़ की गेंद के ऊंचे उठे ठप्पे की तरह मानता है। इसलिए वह पार्टी सरकार के अनुशासन को न मान अपनी अलग ही तान छेड़ने लगता है। उसे अपने नए जन आधार पर भरोसा हो जाता है कि वह जहां नई पार्टी बनाकर सत्ता की चौखट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायेगा वहीं सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। वह जिधर समर्थन करेगा, उधर ही बहुमत का पलड़ा झुका मिलेगा। तीसरी पार्टी वाला नेता को तो पूरा भरोसा है कि बहुमत नहीं मिलने पर दोनों प्रमुख पार्टियां मेरी और ललचाई नजरों से देखेंगी। आखिर किंग मेकर जो रहूंगा

