समाचार पत्रों में प्रमुखता से नकली दवाइयों के जब्ती की खबर छपी है। खबर के अनुसार महाराष्ट्र के ठाणें में जिले में छापेमारी के बाद 1.85 करोड़ रुपये की नकली दवाएं जब्त की गर्इं हैं। बताया कि पिछले कुछ महीनों में भिवंडी के एक गोदाम और मीरा रोड इलाके में एक अन्य प्रतिष्ठान पर छापे मारे गए और ये नकली दवाइयां पकड़ी गर्इं। जांच में पता चला कि आरोपी नकली दवाओं का निर्माण और बिक्री कर रहे थे, और वो निर्माता होने का झूठा दावा कर रहे थे। दवाओं को कई राज्यों में भेजा जा रहा था। यह तो केवल एक छापा था उसके आलावा महाराष्ट्र के नागपुर, वर्धा, भिवंडी व अंबाजोगाई सहित राज्य के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में नकली दवाईयों के आपूर्ति के मामले सामने आ रहे है और दवा आपूर्ति में होने वाले बोगसगिरी का भंडाफोड हुआ है। जिसके पीछे कोई बडा अंतरराज्यिय रैकेट रहने की संभावना है। विशेष उल्लेखनीय यह है कि, विगत 15 माह से किसी न किसी सरकारी अस्पताल में नकली दवाईयों का स्टॉक मिल रहा है और मामले की जांच भी चल रही है। लेकिन इसके बावजूद अब तक प्रशासन के हाथ पूरी तरह से खाली है।
बता दें कि, नागपुर, वर्धा व भिवंडी सहित अब अंबाजोगाई के स्वामी रामानंदा तीर्थ वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में नकली दवाईयों की आपूर्ति होने का मामला सामने आया है। अंबाजोगाई के अस्पताल में एक मरीज का नकली दवा की वजह से रिएक्शन हुई। जिसे लेकर अस्पताल प्रशासन ने अन्न व औषधी प्रशासन के पास शिकायत दर्ज कराई। जांच के दौरान पता चला कि, नागपुर में भी एजीथ्रोमायसिन की नकली गोलियों की आपूर्ति हुई है। ऐसे में अन्न व औधषी प्रशासन ने इस दवाई के प्रयोग को रुकवाते हुए हॉस्पिटल के स्टॉक की जांच की, तो पता चला कि, अंबाजोगाई के अस्पताल में 25 हजार गोलियों का स्टॉक मिला। साथ ही पता चला कि, एजीथ्रोमायसिन टैबलेट की आपूर्ति का ठेका कोल्हापुर की विशाल इंटरप्राइजेस नामक कंपनी को मिला था और इसी कंपनी ने अंबाजोगाई के स्वामी रामानंदा तीर्थ अस्पताल को दवाईयों की आपूर्ति की थी। साथ ही साथ इसी कंपनी ने नागपुर के सरकारी अस्पताल में भी इस दवा की आपूर्ति की थी और इस कंपनी के खिलाफ नागपुर के अजनी पुलिस थाने में अपराध भी दर्ज है। ऐसे में अब पूरे मामले की सघन जांच की जा रही है। लेकिन आश्चर्य इस बात को लेकर जताया जा रहा है कि, विगत 15 माह से राज्य के अलग-अलग सरकारी अस्पतालों में उजागर हो रहे इन मामलों के बावजूद अब तक पुलिस तथा अन्न व औषधि प्रशासन विभाग के हाथ पूरी तरह से खाली है। पिछले सप्ताह दिल्ली पुलिस ने नकली दवाओं के एक बड़े गिरोह को पकड़ा। पुलिस ने आरोपितों के पास से कैंसर की अलग-अलग ब्रांड की नकली दवाएं बरामद कीं। इनमें सात दवाएं विदेशी और दो भारतीय ब्रांड की हैं। आरोपी कीमोथैरेपी के इंजेक्शन में पचास से सौ रुपये की एंटी फंगल दवा भरकर एक से सवा लाख रुपये में बेच रहे थे। कुछ दिन पहले ही तेलंगाना में औषधि नियंत्रक प्रशासक ने चाक पाउडर से भरी डमी गोलियां बरामद कीं। इसी तरह गाजियाबाद में नकली दवा बनाने वाली एक फैक्ट्री पकड़ी गई थी। देश के अलग-अलग हिस्से से आए दिन गुणवत्ताविहीन और मिलावटी दवाओं के कारोबार से जुड़े मामले प्रकाश में आते रहते हैं।
एक ही मर्ज की बाजार में मिलने वाली अलग-अलग ब्रांड की दवाओं की दक्षता में अंतर होना चिंताजनक है। नकली और मिलावटी दवाएं जहां बीमारी से लड़ने में असरदार नहीं होती हैं, वहीं वे दूसरे रोगों का कारक बनती हैं। इनका सेवन गुर्दे, यकृत, हृदय और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। गुणवत्ताविहीन दवाएं निर्यात के मोर्चे पर देश की साख भी कमजोर करती हैं। लोगों की सेहत से खिलवाड़ करने वाली ये गतिविधियां अब संगठित अपराध की शक्ल ले चुकी हैं। देश में नकली और मिलावटी दवाओं पर रोक लगाने के लिए औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 में दंड और जुमार्ने का प्रविधान है। इसके अंतर्गत नकली दवाओं से रोगी की मौत या गंभीर चोट पर आजीवन कारावास की सजा है। मिलावटी या बिना लाइसेंस दवा बनाने पर पांच साल की सजा का प्रविधान है।
देश के अलग-अलग राज्यों में 29 दवा परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं। इसके अलावा आठ केंद्रीय लैब भी स्थापित हैं। मिलावटी दवाओं पर रोक लगाने के लिए संसाधनों की कमी नहीं है। ऐसे मामलों में राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर नियामक एजेंसियों द्वारा कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है। एक साधारण व्यक्ति के लिए यह समझ पाना आसान नहीं कि किसी दवा का रासायनिक संयोजन क्या है। मरीजों को दवाओं के बारे में जरूरी और स्पष्ट जानकारी भी नहीं दी जाती।
पिछले साल दवाओं में क्यूआर कोड लगाए जाने की पहल शुरू हुई है। यह सभी दवाओं में अनिवार्य किया जाना चाहिए। इससे दवाओं की कालाबाजारी थमेगी। दवाओं की गुणवत्ता तय करने में फामार्कोविजिलेंस कार्यक्रम काफी मददगार साबित हो सकता है। इसमें दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों का अध्ययन कर उन्हें गुणवत्तापूर्ण बनाया जाता है। घटिया दवाओं से जुड़े मामलों की जितनी अधिक शिकायतें होंगी, कानूनी शिकंजा उतना ही सख्त होगा। दवा उद्योग में संदिग्ध गतिविधियों को रोकने के लिए केंद्र सरकार शिकायत प्रणाली को मजबूत कर रही है। कुछ दिन पहले दवा कंपनियों के लिए यूनिफार्म कोड फार फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस (यूसीएमपी), 2024 लागू किया गया है। इसके तहत अब दवा कंपनियों को अपनी वेबसाइट पर शिकायत करने की व्यवस्था देनी होगी। कंपनियां चिकित्सकों को प्रचार के नाम पर उपहार नहीं दे सकेंगी। आयोजन में विशेषज्ञ के तौर पर आमंत्रित किए जाने वाले चिकित्सकों को ही आने-जाने एवं ठहरने की सुविधा दी जा सकती है। ऐसे आयोजनों के खर्च का ब्योरा भी यूसीएमपी के पोर्टल पर साझा करना होगा।
अब यह समझने में विशेष कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था पर घटिया एवं नकली दवाओं का बड़ा असर क्यों होता है। ये दवाएं बीमारियां ठीक करने में कारगर नहीं होतीं और अक्सर लोगों को अधिक समय तक बीमार रखती हैं। कभी-कभी ये जानलेवा भी साबित होती हैं। इससे इलाज का खर्च बढ़ जाता है और कामकाज का नुकसान भी होता है। इससे नौकरी जा सकती है और इलाज के लिए कर्ज भी लेना पड़ जाता है। जिस देश में इलाज के लिए एक बार अस्पताल में भर्ती होने पर ही देश की बड़ी आबादी की माली हालत खस्ता हो जाती है वहां ऐसी दवाओं की वजह से भारी संख्या में लोग गरीबी के जंजाल में फंस जाते हैं। घटिया और नकली दवाएं किसी भी उम्र के लोगों की जान ले सकती हैं मगर नवजात शिशुओं और बुजुर्गों के लिए ये ज्यादा खतरनाक होती हैं। इनसे लोगों की सेहत को दीर्घकालिक खतरे भी बढ़ जाते हैं जैसे बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर होना या दवाओं का रोगाणुओं पर बेअसर होना।