Thursday, September 19, 2024
- Advertisement -

अदालत की नई परंपरा

Samvad 50

02 11अरविन्द केजरीवाल को जमानत मिल गई। मिल ही जानी चाहिए थी। क्योंकि, पिछले दिनों मनीष सिसोदिया को जमानत देते हुए, एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि जमानत ही नियम है, जेल भेजना या हिरासत में रखना अपवाद है, अपवाद होना चाहिए। कोर्ट का यह आॅब्जरवेशन काफी महत्वपूर्ण था, क्योंकि धन-शोधन (मनी लॉन्डरिंग) नियमों को जिस तरह से सख्त बनाया गया था, उसको लेकर विशेषज्ञों ने एकमत से यह बताया था कि सख्त नियमों के कारण अब किसी को भी जेल में लंबे समय तक रखना आसान होगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अपने आॅब्जरवेशन और फैसलों (जमानत जैसे) से साबित कर दिया कि इस देश में नेचुरल जस्टिस थ्योरी अभी भी सशक्त है। हमारे देश के कानून की मूल भावना भी यही है कि सौ अपराधी बच जाएं तो भले बचें, लेकिन एक भी निरपराध को सजा नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत को न्याय की आवश्यक शर्त बताते हुए ही, केजरीवाल को जमानत दी है।

बहरहाल, केजरीवाल ने अदालत में दो याचिकाएं लगाई थीं। एक जमानत के लिए और दूसरा सीबीआई द्वारा गिरफतारी को अवैध ठहराने के लिए। अदालत ने जमानत तो दे दी, लेकिन सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी को अवैध नहीं माना। हालांकि, दो जजों में से एक ने यह जरूर अपने फैसले में यह लिखा कि सीबीआई को क्या जरूरत थी गिरफ्तार करने की या सीबीआई को दुबारा ऐसा काम नहीं करना चाहिए कि उसे पिंजरे का तोता कहा जाए। जस्टिस भुइया और जस्टिस सूर्यकांत ने इस मसले पर एक राय से जमानत दी, लेकिन गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर दोनों ने राय अलग-अलग दी और फिर भी केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। इसमें जस्टिस भुइया ने कहा कि गिरफ्तारी की जरूरत नहीं थी, फिर भी गिरफ्तारी को सही ठहराया। अगर, दोनों जजों ने एक साथ इस गिरफ्तारी को सही नहीं ठहराया (सीबीआई द्वारा) होता, तो यह केस फिर दो से अधिक जजों वाली बेंच के पास जाता और शायद संभव है कि आगे जाए भी। यानी सवाल है कि जब जज ने सीबीआई की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, तो गिरफ्तारी को खारिज करने की जगह सही कैसे साबित कर दिया, अपने फैसले से। यह हालांकि न्यायिक व्याख्या का मामला है और पूरे फैसले की व्याख्या कानूनी जानकार ही करेंगे, लेकिन प्रथम द्रष्टया देखने पर यह सवाल तो बनता ही है।

केजरीवाल के रिहा होने से उनके समर्थकों में जोश है और उनके जेल से बाहर आने पर जमकर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं-समर्थकों ने पटाखे भी छोड़े। यह भी हालांकि देखने की बात है कि केजरीवाल सरकार ने कुछ दिनों पहले ही पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री की रिहाई पर उसी की तामील न हुई। वैसे भी, केजरीवाल को अदालत ने सशर्त रिहाई दी है। केजरीवाल अपने कार्यालय नहीं जा सकते, उन सरकारी फाइलों के अतिरिक्त किसी पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते, जो उपराज्यपाल के पास जानी हैं। जो फाइलें अन्य लोगों के पास हैं, उन पर उनके मंत्री हस्ताक्षर करते हैं। वैसे, केजरीवाल के जेल से बाहर आने पर उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने यह भी कहा है कि ये गलत बात फैलाई जा रही है कि केजरीवाल को फाइलों पर हस्ताक्षर करने से रोका गया है। उन्होंने कहा, दिल्ली सीएम पर कोई नई शर्त नहीं लगाई गई है। यह कहना बेबुनियाद है कि वह मुख्यमंत्री के रूप में काम नहीं कर सकते। वह शराब नीति मामले से संबंधित फाइलों को छोड़कर सभी फाइलों से निपटने और उन पर हस्ताक्षर करने के हकदार हैं।

उनकी शर्तों का और मुख्यमंत्री के तौर पर आॅफिस जाने का मसला तो एक अलग मसला है, वैसे भी केजरीवाल बिना विभाग के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन वे चुनावी मैदान में तो जा सकेंगे। और वे जाएंगे भी। खास कर हरियाणा में, जहां आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। सुनीता केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पहले से मोर्चा संभाले हुए थे और अब उनकी पार्टी के ‘नायक’ केजरीवाल हरियाणा (अपने गृह राज्य) में जा कर दहाड़ेंगे। इस बीच, कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी का गठबंधन भी नहीं हो सका, जहां पहले इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने की वकालत राहुल गांधी कर रहे थे, वहीं अब दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी। इसके लिए कांग्रेस की लोकल यूनिट को दोषी ठहराया जाने लगा है।

अभी कुछ रोज पहले तक कांग्रेस हरियाणा चुनाव को ले कर काफी उत्साहित थी। रणदीप सुरजेवाला भी काफी उत्साह से बता रहे थे कि हरियाणा के किसान और नौजवान इस बार भाजपा से बदला लेने के मूड में है। यह बहुत हद तक सही दिख भी रहा था, क्योंकि चुनाव से कुछ महीने पहले ही वहां भाजपा ने अपना सीएम बदल दिया था। अभी कुछ रोज पहले तक कई भाजपा नेता चुनाव लड़ने या अपनी सीट को ले कर काफी उत्साहित नहीं दिख रहे थे। हालांकि, अब, आज की तारीख में ऐसा लग रहा है, जो भाजपा बैकफुट पर थी, अब फ्रंट फुट पर आ कर खेलने लगी है। वजह, कांग्रेस के सुरजेवाला बनाम कुमारी शैलजा का अपना-अपना गुट, दुष्यंत चौटाला के साथ आजाद समाज पार्टी (चंद्रशेखर रावण) का मिलना और अब आम आदमी पार्टी का सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला। हरियाणा में पिछले लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने एकाध सीटों पर विधानसभा के हिसाब से भाजपा के मुकाबले बढ़त ली थी। इससे वह उत्साहित भी है। बहरहाल, इस चतुष्कोणीय मुकाबले में आम आदमी पार्टी किसका वोट काटेगी, यह समझना मुश्किल नहीं है और फिर यह भी कि इस कटे हुए वोट का फायदा किसे होगा, यह भी समझना मुश्किल नहीं है।

एक स्टेट का सीएम अपने दफ्तर नहीं जा सकता, फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता, लेकिन वह चुनाव प्रचार कर सकता है। जमानत देते समय ऐसी शर्तों का एक लोककल्याणकारी प्रजातंत्र में क्या मायने है? अगर फाइल पर हस्ताक्षर से केस प्रभावित हो सकता है, तो फिर उस व्यक्ति के जेल से बाहर रहने पर भी केस प्रभावित हो सकता है। बहुत सरल सा तर्क है यह। एक मुख्यमंत्री जनता के काम नहीं करेगा, लेकिन जनता से वोट मांगेगा, ऐसी सहूलियत देने की यह नई अदालती परंपरा, आने वाले दिनों में भारतीय प्रजातंत्र और चुनावी राजनीति को कौन सी नई दिशा और दशा प्रदान करेगी, देखने वाली बात होगी।

janwani address 7

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

जो एसडीओ दोषी, उसी से करा दी खुद की जांच

एक्सईएन ने बिना मौके पर जाये ही लगा...

पारा धड़ाम, दूसरी बार सक्रिय हुआ मानसून

अगले 24 घंटे में अभी बने रहेंगे झमाझम...

बारिश से छलनी हो गई महानगर की सड़कें

एक डेढ़ फीट तक के गड्ढे बने मुसीबत,...

दारोगा के वायरल वीडियो पर एसएसपी के जांच के आदेश

एसपी सिटी पहुंचे तेजगढ़ी चौकी, कई लोगों के...

कारोबारियों का सोना देकर उतार रहा था कर्जा

उत्तम पाटिल भी मिला और नौ सौ ग्राम...
spot_imgspot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here