Friday, December 20, 2024
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ओपी चौटाला का कभी हरियाणा की राजनीति में रहा दबदबा, पढ़िए इस राजनीतिक परिवार की पूरी साइड स्टोरी

दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने शुक्रवार को 89 साल की उम्र में अंतिम ली। डॉक्टरों ने उनकी मौत की वजह कार्डियक अरेस्ट बताई है। हरियाणा की राजनीति में चौटाला परिवार सबसे बड़ा कुनबा माना जाता है। इसकी शुरुआत चौधरी देवीलाल से होती है, यह वो नाम जिसके बिना हरियाणा की राजनीति पर चर्चा
अधूरी है।

सिरसा के गांव तेजा खेड़ा में 25 सितंबर 1914 को जन्मे चौधरी देवीलाल का हरियाणा की सियासत में ऊंचा स्थान रहा है। देवीलाल के विचारों की बदौलत ही उनकी चौथी पीढ़ी राजनीति के मैदान में पैर जमाए है। 1989 में जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो हरियाणा का ताऊ बनने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी तक छोड़ दी और उप प्रधानमंत्री का पद लिया था।

आजादी के बाद 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में चौधरी देवीलाल संयुक्त पंजाब विधानसभा में विधायक बनकर गए। विधानसभा पहुंचकर उन्होंने भाषा के आधार पर अलग हरियाणा राज्य की मांग उठाई। 1957 और 1962 में भी वह विधायक बन कर पंजाब विधानसभा पहुंचे। हरियाणा बनने के बाद उनकी मुख्यमंत्री बंसीलाल से खटपट हो गई।

मतभेद इतने गहरे हो गए कि 1968 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने देवीलाल को टिकट ही नहीं दिया। देवीलाल का कांग्रेस से मोह भंग हो गया और 1971 में उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। 1972 के विधानसभा चुनाव में वह बंसीलाल के खिलाफ तोशाम और भजन लाल के खिलाफ आदमपुर हलके से चुनाव मैदान में उतरे, मगर दोनों ही जगह उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

इस हार के बाद देवीलाल कुछ दिनों के लिए राजनीति से दूर हो गए, मगर 1974 में गेहूं की जबरन खरीद के खिलाफ किसान आंदोलन की कमान संभाल कर वह दोबारा राजनीति में सक्रिय हुए। 1975 में आपातकाल के दौर में वह आंदोलन में सक्रिय रहे और 1977 में जनता पार्टी के हरियाणा में सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे। 1977-79 और फिर 1987 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। 1989 से 1991 तक वीपी सिंह और चंद्र शेखर की सरकारों में
उप-प्रधानमंत्री रहे।

1989 में देवीलाल ने हरियाणा की रोहतक और राजस्थान की सीकर लोकसभा सीट से चुनाव जीता। सीकर में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता बलराम जाखड़ को हराया था। देवीलाल ने रोहतक सीट छोड़ दी। इसके बाद वे कभी रोहतक से चुनाव जीत नहीं पाए। 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में भूपिंदर सिंह हुड्डा ने उनको लगातार हराया। देवीलाल के चार बेटे हुए। ओम प्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह, प्रताप सिंह और जगदीश सिंह।

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ओम प्रकाश चौटाला
देवीलाल के सबसे बड़े बेटे और पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला की राजनीतिक यात्रा व व्याक्तिगत जीवन काफी सुर्खियों में रहा है। 89 साल की उम्र में भी इंडियन नेशनल लोकदल को राज्य में दोबारा खड़ा करने में ओमप्रकाश चौटाला लगे रहे। देवीलाल ने अपनी राजनीतिक विरासत ओमप्रकाश चौटाला को ही सौंपी।

1968 में उन्होंने राजनीतिक सफर की शुरुआत की, मगर पहले ही विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। एक साल बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर ओपी चौटाला विधायक बनने में सफल रहे। 2 दिसंबर 1989 को वह हरियाणा के सातवें मुख्यमंत्री बने, लेकिन पांच महीने बाद ही महम उपचुनाव में धांधली के आरोपी लगने पर उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा। 12 जुलाई 1990 को वह दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने, लेकिन महम उपचुनाव में बूथ कैप्चरिंग के आरोपों के चलते पांच दिन बाद फिर से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि 22 मार्च 1991 को वह तीसरी बार राज्य के सीएम बने।

इस बार भी सरकार सिर्फ 14 दिन चली। विधानसभा में वह बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए और उनकी सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 1999 को वह चौथी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। इस बार उन्होंने भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई। साल 2000 के विधानसभा चुनाव में उन्हें स्पष्ट बहुमत मिला और वह पांचवीं बार सीएम बने। 2005 के चुनाव में उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी। जूनियर बेसिक टीचर्स घोटाले में 2013 में ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला को दस साल की सजा हुई।

रणजीत सिंह चौटाला
देवीलाल के दूसरे बेटे रणजीत सिंह चौटाला ने ओमप्रकाश चौटाला से दूरी बनाकर रखी। कभी उन्हें देवीलाल की विरासत का सियासी उत्तराधिकारी माना जाता था, मगर देवीलाल ने ओम प्रकाश चौटाला को चुना। इसके बाद रणजीत चौटाला ने लोकदल से किनारा कर लिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। सिरसा का रनिया विधानसभा क्षेत्र उनकी कर्मभूमि बनी। वह दो बार यहां से चुनाव भी हारे। 2019 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा। जीत हासिल करने के बाद मनोहर सरकार को समर्थन देकर मंत्री पद हासिल किया। रणजीत सिंह के दो बेटे गगनदीप और दिवंगत संदीप सिंह हुए। गगनदीप फिलहाल राजनीति में नहीं हैं।

अजय सिंह चौटाला
ओम प्रकाश चौटाला के बड़े बेटे हैं अजय चौटाला। वर्तमान में वह जनता जननायक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के पिता। वह राजस्थान की दातारामगढ़ और नोहर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे हैं। 1999 में भिवानी लोकसभा से सांसद बने। इसके बाद वे 2004 में हरियाणा से राज्यसभा के सांसद बने। इसके बाद वे 2009 में डबवाली से विधायक बने। जेबीटी घोटाले में ओमप्रकाश चौटाला के साथ उन्हें भी 10 साल की कैद हुई थी। अजय चौटाला की खेल प्रबंधक के तौर पर भी गिनती होती है। वह भारतीय टेबल टेनिस फेडरेशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। अजय चौटाला 10 साल की सजा पूरी कर जेल से बाहर आ चुके हैं।

नैना चौटाला
अजय चौटाला के जेल में जाने के बाद उनकी पत्नी नैना चौटाला ने राजनीतिक में कदम रखा। राजनीति के अखाड़े में आने वाली वह चौटाला परिवार की पहली महिला हैं। 2014 में नैना ने डबवाली सीट से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक चुनी गईं। चौटाला परिवार में फूट पड़ने के बाद जजपा के टिकट पर भिवानी की बाढ़ड़ा सीट से चुनाव जीता और बेटे दुष्यंत के साथ हरियाणा विधानसभा में पहुंचीं।

दुष्यंत चौटाला
अजय चौटाला के जेल जाने के बाद उनके बड़े बेटे दुष्यंत पिता की विरासत संभाली। 2014 में उन्होंने हिसार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और पीएम मोदी के लहर के बावजूद सबसे कम उम्र के सांसद बने। 2018 में इनेलो से अलग होकर उन्होंने जनता जननायक पार्टी बनाई और 2019 में चुनी गई सरकार के किंग मेकर बने। मात्र 31 साल की उम्र में वह हरियाणा के डिप्टी सीएम बने।

दिग्विजय चौटाला
दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय चौटाला भी राजनीति में सक्रिय हैं। इनेलो से निकल जाने से पहले वह पार्टी की युवा विंग के अध्यक्ष थे। दिग्विजय वर्तमान में जननायक जनता पार्टी के महासचिव हैं। इसके अलावा वह छात्र संगठन इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।

अभय सिंह चौटाला
ओम प्रकाश चौटाला ने अपनी राजनीतिक विरासत छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला को सौंपी है। वह इनेलो के राष्ट्रीय महासचिव हैं। उन्होंने अपनी सियासी करियर की शुरुआत चौटाला गांव से की और उप सरपंच का चुनाव जीता। 2000 में वह सिरसा की रोड़ी सीट से विधायक चुने गए। 2005 में सिरसा जिला पंचायत के अध्यक्ष रहे। 2009, 2014 और 2021 में विधायक चुने गए। अभय हरियाणा ओलंपिक एसोसिएशन, स्टेट वॉलीबॉल और मुक्केबाजी संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं।

कांता चौटाला
अभय चौटाला की पत्नी कांता चौटाला भी राजनीति में उतर आई हैं। अपने पति के साथ कदम से कदम मिलाकर वह पार्टी की नीतियों का प्रचार करती हैं। 2016 में वह जिला पंचायत चुनाव में उतरीं, लेकिन उन्हें अभय के चचेरे भाई आदित्य चौटाला ने हरा दिया। हालांकि पार्टी की महिला मोर्चा की कमान उन्होंने ही संभाल रखी है। इनेलो की रैलियों वह अक्सर देखी जाती हैं और मंच से पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह भी बढ़ती रही हैं।

कर्ण चौटाला
अभय और कांता चौटाला के बड़े बेटे हैं कर्ण चौटाला। वह इनेलो पार्टी में युवा चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं। पिता की पदयात्रा में उनकी भूमिका काफी सक्रिय रही थी। 2016 के जिला पंचायत चुनाव में कर्ण ने सिरसा से जीत हासिल की। 2022 में सिरसा जिला परिषद के वह चेयरमैन बने।

अर्जुन चौटाला
अभय के छोटे बेटे अर्जुन चौटाला भी बड़े भाई की तरह पार्टी संगठन में सक्रिय हैं। वह इनेलो की यूथ विंग के अध्यक्ष हैं। कुरुक्षेत्र से 2019 के लोकसभा चुनाव में अर्जुन चौटाला उतरे, मगर वह तीसरे नंबर पर रहे। वे रानियां से विधायक हैं।

आदित्य चौटाला
देवीलाल के बेटे जगदीश चौटाला फिलहाल राजनीति से दूर रहे। मगर उनके बेटे आदित्य भाजपा से जुड़े हैं। 2016 में उन्होंने अभय की पत्नी कांता चौटाला को जिला परिषद चुनाव में हराया था। 2019 में डबवाली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार मिली। भाजपा के प्रति उनकी सेवा को देखते हुए मनोहर सरकार ने उन्हें हरियाणा स्टेट एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड की चेयरमैन नियुक्त किया। बाद में उन्हें नेशनल काउंसिल ऑफ स्टेट मार्केटिंग बोर्ड का राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। इस बार वे डबवाली से विधानसभा चुनाव जीते हैं।

सड़क पर आई परिवार की सियासी लड़ाई

2018 में चौटाला परिवार में फूट पड़ गई। जींद में रैली के दौरान दुष्यंत को प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री बनाने के नारे लगने पर अभय और दुष्यंत-दिग्विजय के बीच दरार पड़ गई। परिवार की सियासी लड़ाई सड़क पर आ गई। दुष्यंत-दिग्विजय ने इनेलो से अलग होकर जननायक जनता पार्टी का गठन किया। 2019 के विधानसभा चुनाव में जजपा ने दुष्यंत के नेतृत्व में 10 सीटों पर जीत हासिल की थी और भाजपा के साथ गठबंधन कर राज्य की सत्ता में शामिल हुई थी।

पढ़िए ओम प्रकाश चौटाला के 5 बार CM बनने की कहानी…

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पहला चुनाव हारे थे ओपी चौटाला, उपचुनाव में जीते

ओम प्रकाश चौटाला की चुनावी राजनीति की शुरुआत 1968 में शुरू हुई। उन्होंने पहला चुनाव देवीलाल की परंपरागत सीट ऐलनाबाद से लड़ा। उनके मुकाबले पूर्व सीएम राव बीरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी से लालचंद खोड़ ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में चौटाला हार गए।

हालांकि हार के बाद भी चौटाला शांत नहीं बैठे। उन्होंने चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगाया और हाईकोर्ट पहुंच गए। एक साल चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने लालचंद की सदस्यता रद्द कर दी। 1970 में उपचुनाव हुए तो चौटाला ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने।

केंद्र सरकार में गए पिता तो चौटाला को बनाया मुख्यमंत्री

साल 1987 के विधानसभा चुनाव में लोकदल को 90 सीटों में से 60 पर जीत मिली। ओम प्रकाश चौटाला के पिता देवीलाल दूसरी बार CM बने। दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में केंद्र में जनता दल की सरकार बन गई। जिसमें वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। देवीलाल भी इस सरकार का हिस्सा बने और उन्हें उपप्रधानमंत्री बनाया गया। अगले दिन दिल्ली में लोकदल के विधायकों की बैठक हुई। जिसमें ओम प्रकाश को सीएम के लिए चुन लिया गया।

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पहली बार CM बन पिता की सीट पर लड़े, 2 बार हिंसा हुई

2 दिसंबर 1989 को ओम प्रकाश चौटाला पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। तब वे राज्यसभा सांसद थे। CM बने रहने के लिए उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना जरूरी था। देवीलाल ने उन्हें अपनी पारंपरिक सीट महम से चुनाव लड़वाया, लेकिन खाप पंचायत ने इसका विरोध शुरू कर दिया।

27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई, जो हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की भेंट चढ़ गई। चुनाव आयोग ने 8 बूथों पर दोबारा वोटिंग कराने के आदेश दिए। जब दोबारा वोटिंग हुई तो फिर से हिंसा भड़क उठी। चुनाव आयोग ने फिर से चुनाव रद्द कर दिया। लंबे सियासी घटनाक्रम के बाद 27 मई को फिर से चुनाव की तारीखें तय की गईं, लेकिन वोटिंग से कुछ दिन पहले निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या हो गई।

चौटाला ने दांगी के वोट काटने के लिए अमीर सिंह को डमी कैंडिडेट बनाया था। अमीर सिंह और दांगी एक ही गांव मदीना के थे। हत्या का आरोप भी दांगी पर लगा। जब पुलिस दांगी को गिरफ्तार करने उनके घर पहुंची तो उनके समर्थक भड़क गए। पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चली दीं। इसमें 10 लोगों की मौत हुई।

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पहली बार में सीएम बनने के साढ़े 5 महीने बाद इस्तीफा देना पड़ा

महम में हुई इस हिंसा का शोर संसद में भी गूंजने लगा। प्रधानमंत्री वीपी सिंह और गठबंधन के दबाव में तत्कालीन उपप्रधानमंत्री देवीलाल को झुकना पड़ा। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के साढ़े 5 महीने बाद ही ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को CM बनाया गया।

दूसरी बार 5 दिन में ही मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा

कुछ दिन बाद चौटाला दड़बा सीट से उपचुनाव जीत गए। बनारसी दास को 51 दिन बाद ही पद से हटाकर चौटाला दूसरी बार CM बन गए। मगर, महम में हुई हिंसा का मामला ठंडा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी चाहते थे कि चौटाला पर जब तक केस चल रहा है वे CM न बनें। मजबूरन 5 दिन बाद ही चौटाला को फिर से पद छोड़ना पड़ा। अब की बार उन्होंने मास्टर हुकुम सिंह फोगाट को CM बनाया।

केंद्र की मदद से तीसरी बार सिर्फ 15 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने

साल 1990 के बाद प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही भाजपा ने राम मंदिर बनाने के लिए रथयात्रा निकालने का फैसला किया। वीपी सिंह ने आडवाणी से रथयात्रा न निकालने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने। इसके बाद आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर से गिरफ्तार कर लिया गया।

गिरफ्तारी से नाराज भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस से लिया। 7 नवंबर 1990 को वीपी सिंह की सरकार गिर गई। इसके बाद जनता दल से चंद्रशेखर पीएम बन गए और देवीलाल को उपप्रधानमंत्री बना दिया। इसके चार महीने बाद यानी मार्च 1991 में देवीलाल ने हुकुम सिंह को हटाकर ओमप्रकाश चौटाला को तीसरी बार हरियाणा का मुख्यमंत्री बनवा दिया।

इस फैसले से राज्य में पार्टी के कई विधायक नाराज हो गए। कुछ विधायकों ने पार्टी भी छोड़ दी। नतीजा ये हुआ कि 15 दिनों के भीतर ही सरकार गिर गई। राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। 15 महीने के भीतर तीसरी बार चौटाला को CM पद से इस्तीफा देना पड़ा।

भाजपा-बंसीलाल का गठबंधन नहीं चला, चौटाला चौथी बार सीएम बने

1996 में चुनाव के बाद बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी ने भाजपा के साथ सरकार बनाई। बंसीलाल CM बने, लेकिन आपसी मतभेदों के चलते 1999 में भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया।

इसके बाद कांग्रेस ने बंसीलाल सरकार को समर्थन दिया। विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हुई तो कांग्रेस की मदद से सरकार बच गई। सरकार बचाने के एवज में तय हुआ था कि बंसीलाल अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करेंगे और विधानसभा भंग करके चुनाव कराए जाएंगे।

इसी सिलसिले में बंसीलाल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे। इस दौरान चुनाव में टिकट के लिए अपने उम्मीदवारों की लिस्ट भी उन्हें सौंपी। जिसे देख सोनिया गांधी ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया और बंसीलाल नाराज होकर लौट आए। इसके बाद कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और बंसीलाल की सरकार गिर गई।

तब तक ओपी चौटाला के पिता देवीलाल ने 1996 में इंडियन नेशनल लोकदल यानी इनेलो नाम से नई पार्टी बना ली थी। 1999 में बंसीलाल की सरकार गिरते ही ओमप्रकाश चौटाला एक्टिव हो गए। उन्होंने बंसीलाल की पार्टी के कुछ विधायकों को तोड़कर सरकार बना ली। 24 जुलाई को ओमप्रकाश चौटाला चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

5वीं बार जिस वादे से CM बने, उसी को लेकर गोलियां चलीं

साल 2000 में ओपी चौटाला ने किसानों से वादा किया कि उनकी सरकार सत्ता में आती है तो बिजली फ्री कर देंगे। साथ ही जिन किसानों ने बिजली बिल भरने के लिए कर्ज लिया है, उनका कर्ज भी हम माफ कर देंगे। ओमप्रकाश का ये वादा काम कर गया। 4 साल पहले बनी उनकी पार्टी इनेलो ने 47 सीटें जीत लीं।

ओमप्रकाश चौटाला पांचवीं बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। सत्ता की कमान संभालने के बाद चौटाला ने गांव-गांव तक बिजली तो पहुंचाई, लेकिन नया मीटर लगने से बिजली बिल अचानक से बढ़ गया। साल 2002, बिजली बिल बढ़ने से किसान ठगा महसूस करने लगे। उन्होंने बिजली बिल भरने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि सरकार ने मुफ्त बिजली का वादा किया था।

इधर, सरकार ने कई गांवों की बिजली काट दी। नतीजा किसान सड़कों पर आ गए। सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे। जींद हाईवे जाम कर दिया। उसी दौरान जींद के एक गांव कंडेला में किसानों की उग्र भीड़ पर पुलिस ने गोलियां चला दीं। 9 किसानों की मौत हो गई।

2005 के बाद से कभी सत्ता में नहीं पहुंची इनेलो

तीन साल बाद यानी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में चौटाला की पार्टी महज 9 सीटों पर सिमट गई। चौटाला 2 सीटों से चुनाव लड़े थे। एक सीट से हार गए। उनके 10 मंत्री भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। तब से इनेलो कभी सत्ता में नहीं पहुंची। 2018 में पार्टी टूट गई और 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में एक सीट पर सिमट गई।

2024 में इनेलो को सिर्फ 2 ही सीटों पर जीत मिली। ओपी चौटाला के बेटे अभय चौटाला भी चुनाव हार गए। हालांकि उनके पोते अर्जुन चौटाला और भतीजे आदित्य देवीलाल चुनाव जीत गए।

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