रूस द्वारा यूक्रन के विरुद्ध छेड़े गए सैन्य अभियान के बाद भारत सरकार ने यूक्रेन से भारतीय नागरिकों को भारत वापस बुलाने के लिए जो कथित ‘बचाव अभियान’ छेड़ा उसे ‘आॅपरेरशन गंगा’ का नाम दिया गया है। परंतु यह बचाव अभियान यूक्रेन में नहीं चलाया जा रहा बल्कि भारत अपने नागरिकों को यूक्रेन के सीमावर्ती देशों रोमानिया, पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया और मॉल्डोवा आदि देशों से वायुसेना के विमानों से भारत वापस ला रहा है। इसलिए कुछ लोग कह रहे हैं कि इसे ‘बचाव अभियान’ कहने के बजाये ‘मुफ़्त वापसी हवाई यात्रा अभियान’ कहना ज्यादा मुनासिब होगा। क्योंकि यूक्रेन में बसे भारतीय विशेषकर वहां भारतीय बच्चे किन अभूतपूर्व संकटकालीन परिस्थितियों में भारत सरकार तथा भारतीय दूतावास की किसी भी सहायता के बिना भूखे प्यासे, बीमार अवस्था में ट्रेन, बसों अथवा पैदल मार्ग से भीषण बंबारी व धमाकों के बीच चलते हुए पड़ोसी रोमानिया, पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया व मॉल्डोवा देशों में पहुंच रहे हैं|
यह सोशल मीडिया पर उनके द्वारा भेजे जा रहे वीडियो क्लिप से पता चलता है। जबकि हमारे देश का अधिकांश मीडिया यूक्रेन में फंसे भारतीयों के दु:ख दर्द बयान करने वाले ऐसे वीडियो को दिखाकर सत्ता के प्रति अपनी वफादारी पर ‘दाग’ नहीं लगाना चाहता।
बहरहाल, खबरों के मुताबिक इस स्वदेश वापसी अथवा आॅपरेशन गंगा के तहत गत 8 मार्च तक भारतीय वायुसेना व अन्य भारतीय एयरलाइंस के द्वारा 76 विमानों से 16,000 से अधिक नागरिकों को भारत वापस लाया जा चुका है। जबकि संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने सुरक्षा परिषद को मंगलवार (8 मार्च) को बताया कि भारत अब तक यूक्रेन से 20 हजार भारतीयों को सुरक्षित तरीके से बाहर निकालने में कामयाब रहा। गौरतलब है कि युद्धग्रस्त यूक्रेन में फंसे भारतीयों को स्वदेश वापस लाने वाली पहली उड़ान 26 फरवरी को बुखारेस्ट से भारत पहुंची थी।
‘आॅपरेशन गंगा’ के दौरान सरकारी प्रतिनिधि के रूप में अनेक मंत्रियों द्वारा अपने सहयोगी ‘गोदी मीडिया’ की जुगलबंदी के साथ फिर वही शर्मनाक हरकतें की जा रही हैं, जिन्हें मानवीय व नैतिकता के दृष्टिकोण से हरगिज सही नहीं ठहराया जा सकता। गोदी मीडिया की इतनी हिम्मत नहीं कि वह सत्ता से यह सवाल करे कि बावजूद इसके कि रूस व यूक्रेन दोनों ही देशों में भारतीय दूतावास होने के बावजूद क्यों और किन परिस्थितियों में भारतीय दूतावास को समय रहते इस बात की जानकारी नहीं हो सकी कि रूस यूक्रेन पर आक्रमण करेगा?
और इस आक्रमण से पहले भारत समय रहते अपने नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने की एडवाइजरी क्यों नहीं जारी कर सका? बजाय इसके मीडिया यह जरूर दिखाता फिर रहा है कि कैसे मोदी सरकार के मंत्री हवाई जहाज में घुसकर वापस आए भारतीयों का स्वागत करते हैं और प्रधानमंत्री मोदी का गुणगान करते हैं और उनसे हवाई जहाज में मोदी के जिंदाबाद के नारे भी लगवाये जाते हैं।
परंतु यही घटनाक्रम आप सोशल मीडिया पर देखे, जिन्हें स्वयं यूक्रेन के भुक्तभोगी भारतीय छात्रों व अन्य भारतीय नागरिकों ने रिकॉर्ड व अपलोड किया है तो आॅपरेशन गंगा के लिए सरकार व मीडिया के जुगलबंदी से सत्ता की पीठ थपथपाने के सभी प्रयास खोखले नजर आते हैं। उदाहरण के तौर पर एक भारतीय छात्रा ने बताया कि जब वे भारतीय छात्रों के एक दल के साथ किसी तरह रोमानिया पहुंची तो रोमानिया के लोगों ने उनकी पूरी सहायता की।
उन्हें ठहरने की जगह दी और नाश्ता भोजन व पानी जैसी सभी बुनियादी सहूलियतें मुहैय्या कराईं। जबकि ठीक इसके विपरीत रोमानिया में स्थित भारतीय दूतावास के लोगों ने उन भारतीय बच्चों के साथ अत्यंत आपत्तिजनक व गंदा व्यवहार किया। भारतीय छात्रों के अनुसार भारतीय दूतावास के लोगों ने उनसे कहा कि जो छात्र दूतावास के बाथरूम साफ करेंगे पहले उन्हीं छात्रों को भारत ले जाया जाएगा, शेष लोगों को बाद में भेजा जाएगा।
इसी रोमानिया का एक वीडीयो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया व रोमानिया के मेयर के बीच नोक झोंक होती देखी गई। प्राप्त समाचारों अनुसार केंद्रिय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सरकार के प्रतिनधि मंत्री के रूप में रोमानिया में ठहराए गए भारतीय बच्चों से मिलने पहुंचे और बच्चों को संबोधित करते हुए भारत सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का बखान करने लगे। तभी वहां मौजूद शहर के मेयर ने सख़्त लहजे में सिंधिया को टोक दिया और तीखी बहस करने लगा।
मेयर ने ऊंची आवाज में पूरे गुस्से में सिंधिया से कहा कि ‘आप अपनी बात कीजिए, हम इन बच्चों के रहने और खाने का प्रबंध कर रहे हैं, आप नहीं कर रहे। आप इन्हें ये बतायें कि इन्हें घर कब ले जा रहे हैं?’ कई वीडियो ऐसे देखने को मिले जिसमें सरकारी प्रतिनधि यूक्रेन से वापस आने वाले नागरिकों को विमान से उतारते समय फूल भेंट करना चाहते हैं परंतु कई गुस्साए लोग इस फूल को स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
यूक्रेन के पड़ोसी देशों में सैकड़ों मील का सफर बसों, ट्रेन्स अथवा पैदल तय कर स्वदेश पहुंचे भारतीय नागरिकों लोगों को भारत सरकार द्वारा अपनी सामर्थ्य और विदेश नीति के तहत, वापस लेन का जो काम किया है उसकी सराहना जरूर की जानी चाहिए, परंतु इसकी आड़ में उनकी परेशानियों पर पर्दा डालने की कोशिश करना और उसी समय अपने प्रयासों की वाहवाही लूटने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाना, अपनी पीठ थपथपाना और इसका राजनैतिक लाभ उठाना, यह नैतिकता के बिल्कुल विपरीत है।
निर्मल रानी