ओल्ड पेंशन स्कीम यानी पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) भले ही देश की सेहत के लिए घातक साबित हो सकता है मगर हिमाचल प्रदेश की जीत ने कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नया सियासी हथियार दे दिया है। हिमाचल प्रदेश की जीत कांग्रेस को पुरानी पेंशन योजना के रूप में 2024 के लोकसभा चुनावों में पिचिंग के लिए एक अखिल भारतीय मुद्दा दे सकती है। इतना ही नहीं, हिमाचल में प्रियंका गांधी के इस प्रयोग से कांग्रेस 2024 के लिए सीख ले सकती है। अगर हम पिछले दो सालों के राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखें तो विपक्ष में जो पार्टियां हैं उनको यह लग रहा है कि ओल्ड पेंशन स्कीम खास करके सरकारी कर्मचारियों के बीच एक लोकप्रिय स्कीम है और थी। उनको आकर्षित करने के लिए वो एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकती है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने कई राज्यों में खासकर छत्तीसगढ़, राजस्थान में ये वादा किया। मध्यप्रदेश में भी वादा किया था पर वहां की सरकार नहीं चल पाई। इन दो राज्यों में उसको लागू किया है। साथ ही साथ आम आदमी पार्टी ने भी इसको पकड़ा है और हमको याद है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भी ये वादा किया था।
इसका अर्थ ये है कि कहीं ना कहीं जमीन पर ऐसी हलचल है, और उसका एक उदाहरण ये है कि पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न राज्यों में राज्य सरकारों के कर्मचारी भी आंदोलन कर रहे हैं कि उनकी जो ओल्ड पेंशन स्कीम है, उसको बहाल किया जाए। यह मांग धीरे-धीरे जोर पकड़ रही है और इसकी वजह से ही राजनीतिक पार्टियां भी इसको पकड़कर के और राजनीतिक रूप से भुनाने की कोशिश कर रही हैं।
नागरिकों के लिए और खासकर के वरिष्ठ नागरिकों के लिए जो रिटायरमेंट के बाद में, चाहे वो सरकारी नौकरी में हों या गैर सरकारी नौकरी में हों या प्राइवेट सेक्टर में काम किया हों, उनके लिए बहुत मुश्किलें हैं। जैसे आप देखिये छोटे-छोटे उदाहरण हैं लेकिन ये महत्वपूर्ण उदाहरण हैं इस मायने में कि हम इस पर ध्यान नहीं देते। जैसे भारत में ही उम्र अब लोगों की औसत आयु बढ़ रही है। भारत में ही ये एक बहुत बड़ा सवाल है कि 70 साल से अगर आपकी उम्र ज्यादा हो गई तो कोई भी प्राइवेट कंपनी या सरकारी कंपनी आपको मेडिकल इंश्योरेंस नहीं देती।
आपको ईएमआई पर लोन नहीं मिलता, आपको दूसरी सुविधाएं जो बाकी लोगों को मिल सकती है वो नहीं मिलती हैं। वैसी स्थिति में आप पूरी तरह से अपने परिवारों पर आश्रित होते हैं और ये एक बड़ा सवाल है कि किसी ना किसी तरह की पेंशन होनी चाहिए। भारत जैसे देश में जहां सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान नहीं हैं, वरिष्ठ नागरिकों के लिए या उनके लिए कोई उपाय नहीं है राज्य की तरफ से या बाकी और संस्थाओं की तरफ से, उनके पास पेंशन के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। वैसी स्थिति में जो ओल्ड पेंशन स्कीम है, वो बहुत ही आकर्षक हो जाती है।
कई राज्यों में, जैसे कम से कम दो बड़े राज्यों में देखिए, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने ये मुद्दा बनाया लेकिन केवल एक मुद्दे पर आप चुनाव नहीं जीत सकते। बड़े राज्यों में जहां सरकारी कर्मचारियों की संख्या उतनी ज्यादा नहीं है कुल जनसंख्या में, लेकिन छोटे राज्यों में जैसे राजस्थान में, छत्तीसगढ़ में, ये महत्वपूर्ण हो सकता है, जहां सरकारी कर्मचारियों की संख्या पूरी जनसंख्या में एक काफी महत्वपूर्ण है। दूसरी बात ये है कि सरकारी कर्मचारी जनता का मूड भी बनाते हैं, क्योंकि वो स्कूल के शिक्षक हैं, बाकी और जगहों पर काम करते हैं तो वो किसी सरकार के बारे में जनता का मूड भी बनाते हैं। और तीसरा उनका बड़ा रोल है कि वो चुनाव के दौरान चुनाव ड्यूटी भी करते हैं और चुनाव ड्यूटी के कारण भी वो लोगों को बहुत प्रभावित कर सकते हैं।
इन सब कारणों से सरकारी कर्मचारियों की ये जो मांग है वो विपक्ष में एक तरह से उत्साहित कर रही है, क्योंकि वो नीचे से भी दबाव है। वो आंदोलन भी कर रहे हैं कई राज्यों में, हरियाणा में, बाकी और दूसरे राज्यों में कर रहे हैं। लगता है कि भाजपा के लिए जैसे अभी गुजरात में ही आप देखें तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ने वादा किया। लेकिन भाजपा तो वहां भारी बहुमत से जीती। तो भाजपा के लिए ये राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव में अकेले कोई विपक्ष की पार्टियां या विपक्षी गठबंधन ये सोचे कि वो केवल ये वादा करके चुनाव जीत सकते हैं तो यह संभव नहीं है। ये इतना बड़ा मुद्दा नहीं बन सकता। बहुत सारे मुद्दों में एक मुद्दा ये बन सकता है।
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि कैग यानी भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक गिरीश चंद्र मुर्मू ने भी हाल ही में ओपीएस पर वापस लौटने पर राज्यों के लिए राजकोषीय जोखिमों की चेतावनी दी है। कांग्रेस के सीनियर नेता ने कहा, ह्ययहां तक कि एनडीए द्वारा कोविड-19 महामारी के दौरान लगभग तीन वर्षों तक चलाई गई मुफ्त राशन योजना ने भी एक बड़ा वित्तीय बोझ डाला है, मगर इसकी वजह से ही उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा की जीत हुई है। महंगाई की चिंताओं के बीच कांग्रेस को लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर ओपीएस का वादा पार्टी को सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों के वोट बैंक के पास ला सकती है।
इधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी दलों की ‘रेवड़ी पॉलिटिक्स’ की आलोचना करते रहे हैं। आम आदमी पार्टी की सरकार ने पंजाब में भी ओपीएस लागू करने का फैसला किया है। ओपीएस के तहत सरकारी कर्मचारियों को पेंशन मूल वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित किया गया था। 2004 से एनपीएस (न्यू पेंशन स्कीम) ने इसे बदल दिया, जहां सरकार ने सेवानिवृत्त कर्मचारी को मिलने वाली पेंशन में अपना योगदान कम कर दिया। एनपीएस को 2004 से केंद्र सरकार की सेवा (सशस्त्र बलों को छोड़कर) में सभी नई भर्तियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया था। इसका मतलब रिटायर्ड कर्मचारियों के हाथों में कम पैसा हो गया।
हिमाचल प्रदेश की जीत ने भाजपा के सामने एक नया चिंतन खड़ा कर दिया है। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तेलंगाना में चुनाव होने हैं। भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनाव में जीतने के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम पर अपनी नीति स्पष्ट करनी होगी। इसके लिए उसे एक राष्ट्रीय नीति बनानी होगी जो राज्यवर नहीं देश के हार राज्य में सामान रूप से लागू हो वरना हर राज्य में लाखों ओल्ड पेंशन स्कीम के लाभार्थी अगले चुनाओं में गेम चेंजर बन सकते हैं।