Friday, May 9, 2025
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… या देवी सर्वभूतेषु


अनादि काल से मां भगवती की शक्ति के अवतार के रूप में पूजा की जाती है। उनके 108 नाम हैं। अनादि, अविचल, अविनाशी, अनंत, अगोचर के साथ मां दुर्गे को आद्या (मूल) और चिता (अंत) भी कहते हैं। तीनों लोकों की माता के रूप में वे सृष्टि का पालन करती हैं तथा पापियों का संहार भी करती हैं। नवरात्र के नौ दिनों तक भक्त अपने कष्टों से निवारण के लिए मां भगवती के विभिन्न अवतारों की आराधना करते हैं।

  शैलपुत्री : प्रथम दिवस

यह मां भगवती के नौ सुंदर रूपों में प्रथम स्वरुप माना जाता है। मां दुर्गा अपने पूर्व जन्म में दक्ष की पुत्री थीं। वह सती कहलाती थीं और भगवान शिव की अर्द्धांगिनी थीं। मां भगवती के इस स्वरुप की पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

ब्रह्मचारिणी : द्वितीय दिवस

नवरात्र के दूसरे दिन मां भगवती की जिस स्वरुप की पूजा होती है, उन्हें ब्रह्माचारिणी कहते हैं। ब्रह्मा का अर्थ तप है। मां भगवती ने भोले शंकर को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। यही कारण है कि मां भगवती के इस स्वरुप को तपश्चारिणी भी कहते हैं।

चंद्र घंटा : तृतीय दिवस

मां के अवतार का यह तीसरा स्वरूप होता है। मां के ललाट पर घंटे के आकार का अर्थात अर्द्धचंद्र विराजमान होता है। मां भगवती के इस स्वरूप की भक्ति-भाव से पूजा करने वालों के मन में छुपे अहम एवं घमंड का नाश हो जाता है तथा आजीवन वह शोक तथा रोग से मुक्त रहता है।

कुष्मांडा : चतुर्थ दिवस 

मां भगवती का यह चौथा स्वरूप है। माना जाता है कि मां भगवती अपने उदर से ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करती हैं और इसी कारण से मां भगवती को कुष्मांडा भी कहते हैं। मां कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।

श्री स्कन्द माता : पंचम दिवस    

दुर्गा मां का पांचवां नाम श्री स्कंदमाता है। मां भगवती हिमालय की पुत्री के रूप में भोले शंकर से शादी की थी, और इसी कारण से उनके दो पुत्र श्री गणेश एवं श्री कार्तिकेय हुए। भगवान कार्तिकेय को श्री स्कन्द भी कहा जाता है। इस प्रकार श्री कार्तिकेय की जननी होने के कारण मां भगवती को श्री स्कन्द माता भी कहते हैं।

श्री कात्यायनी : षष्ठम दिवस

यह मां दुर्गा का छठा स्वरूप है। महर्षि कात्यायन ने मां पार्वती को अपनी पुत्री के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी, और इसी भक्ति से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने महर्षि कात्यायन के यहां उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। यही कारण है कि मां दुर्गे को मां कात्यायनी भी कहा जाता है।

कालरात्रि : सप्तम दिवस

यह मां दुर्गे का सप्तम स्वरूप है जो काल का नाश करने वाली होती है। सभी बाधाओं को हरने वाली होती है तथा सबसे बढ़कर भक्तों के ऊपर आई विपत्तियों को दूर भगाती है। मां भगवती के इस रूप की पूजा से मानव जीवन के समस्त संकट अपने आप नष्ट हो जाते हैं।

श्री महागौरी : अष्टम दिवस

इस आठवें स्वरूप में मां भगवती शंख के समान श्वेत एवं स्वच्छ होती हैं। अत्यंत गौर वर्ण के होने के कारण ही मां दुर्गे के इस स्वरूप को श्री महागौरी कहते हैं। इस स्वरूप में मां भगवती आठ वर्ष के उम्र की मानी जाती हैं। इस स्वरूप की पूजा करने से भक्तों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं तथा भक्त सुखमय जीवन बिताने में सफल हो जाते हैं।

श्री सिद्धरात्रि : नौंवा दिवस 

यह मां भगवती का नौवां स्वरूप है। वे संसार की सभी आठ सिद्धियां की अधिष्ठात्री देवी कहलाती हैं। भगवान भोले शंकर ने ये सभी आठों सिद्धियां महाशक्ति की घोर तपस्या से हासिल कर ली थीं। मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा देवी-देवताओं से लेकर ऋषि-मुनियों तथा साधु-मनीषियों से लेकर योगियों के द्वारा आठों सिद्धियों की प्राप्ति के लिए की जाती है।
मां भगवती की आराधना का दसवां दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है जो जीवन में अंतत: असत्य पर सत्य की जीत तथा बुराई पर अच्छाई की जीत के महात्म्य को दशार्ता है।
उत्तर भारत में मां भगवती की पूजा -आराधना का विशिष्ट महत्व है। यहां मां भगवती सोलहों श्रृंगारों से पूरित एक दुल्हन के रूप में पूजी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के अवसर पर मां भगवती अपने मैके आती हैं। नवरात्रि के आठ दिनों तक मैके में रहने के बाद जब वे यहां से नवमी को विदा लेती हैं, तो भक्त उन्हें अपनी बेटी के रूप में परम्परागत ढंग से विदा करते हैं।
पश्चिम बंगाल में दशमी के दिन स्त्रियां सिंदूर स्पर्श का पवित्र त्योहार मनाती हैं, जिसमें वे सिंदूर से आपस में खेलती हैं, मां भगवती को सिंदूर से सुसज्जित करती हैं, तथा उसी सिंदूर को अपने मांग में भरकर अपने सुहाग की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। पश्चिम बंगाल में सिंदूर से खेलने तथा अपने सुहाग की लंबी उम्र मांगने का यह त्योहार विजया भी कहलाता है।
-श्रीप्रकाश शर्मा

 

फीचर डेस्क Dainik Janwani

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