बहुत लोग समाज में ऐसे हैं, जिनके सामाजिक हित आपस में बहुत जुड़े होते हैं। कई बार दूसरों के हित की उपेक्षा कर अपने हितों को नुकसान पहुंचा लिया जाता है।
हालांकि कई बार यह जानबूझकर नहीं किया जाता, अनजाने में हो जाता है। दो मित्र थे। उनमें से एक माली था और दूसरा कुम्हार।
उनकी मित्रता का आधार सिर्फ स्वार्थों का एक समझौता था। एक दिन वे दोनों ऊंट पर अपना-अपना सामान रखकर अपने गांव से शहर में जा रहे थे।
ऊंट पर माली की सब्जी और कुम्हार के घड़े लदे हुए थे। ऊंट की नकेल माली के हाथ में थी। माली आगे-आगे चल रहा था और कुम्हार पीछे चल रहा था।
रास्ते में चलते-चलते ऊंट ने अपनी गर्दन घुमाई और सब्जी खाने लगा। कुम्हार ने ऊंट को सब्जी खाते देखा, पर उसे रोका नहीं। कुम्हार ने सोचा, ऊंट अगर सब्जी खा रहा है, तो इसमें मेरा क्या बिगड़ता है। मेरा क्या जाता है। माली ने मुड़कर देखा नहीं। वह तो अपनी धुन में चला जा रहा था।
उसे भरोसा था कि मेरा दोस्त साथ है, तो कुछ नुकसान नहीं होगा। कुम्हार सोच रहा था कि मेरे घड़े तो सुरक्षित हैं। घड़ों के चारों ओर सब्जी बंधी हुई थी।
ऊंट के खाने से सब्जी का भार कम हो गया और संतुलन बिगड़ गया। सब घड़े नीचे आकर गिरे और फूट गए। अब देखिए, माली तो कुम्हार के हित की रक्षा कर रहा था।
कुम्हार ने अपना हित तो साधा लेकिन माली के हित की उपेक्षा की थी, किंतु कुम्हार ने जानबूझकर ऐसा नहीं किया था। इसका क्या परिणाम होगा, वह उसे समझ नहीं सका अथवा समझना ही नहीं चाहा।
कुम्हार की प्रवृत्ति मूर्खतापूर्ण नहीं, किन्तु अवांछनीय है। इतिहास में ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं। हमें एक-दूसरे के हितों का ध्यान रखना चाहिए, तभी खुशहाली संभव है।