
भारत के ज्यादातर शहरों में पार्किंगग के लिए जगह कम पड़ती जा रही है। इसके दुष्परिणाम भी दिखने लगे हैं। प्रदूषण बढ़ रहा है। गलियों में और फुटपाथों में जिस तरह बेतरतीब ढंग से गाड़ियां खड़ी की जाती हैं उससे सड़क पर और पैदल चलने के जगह कम पड़ रही है। पार्किंग की समस्या कमोबेश देश के सभी शहरों में देखी जा सकती है। अखबारों में आए दिन सुर्खियां बनती है कि गाड़ी पार्किंग को लेकर झड़प हुई। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के थाना रोरावर क्षेत्र से बीते 21 जून को खबर सामने आई थी कि ट्रैक्टर-ट्रॉली की पार्किंगग को लेकर दो पक्षों में विवाद हुआ। विवाद इतना बढ़ा कि दोनों पक्षों में लाठी-डंडों से मारपीट हो गई। इस घटना में 5 लोग घायल हुए। दिल्ली से एक खबर थी कि 22 मार्च को उत्तर पश्चिमी दिल्ली में मामूली पार्किंग विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। यहां पड़ोसियों के बीच स्कूटी पार्किंगग को लेकर झगड़ा हो गया। बात इतनी बढ़ गई कि मारपीट में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। शहरों में पार्किंग की समस्या के कारण हर दिन ऐसे विवाद सामने आ रहे हैं। ऐसे में यह सवाल मौजूं है कि आखिर विकराल रूप लेती पार्किंग की समस्या का समाधान की दिशा में सरकारें संवेदनशीलता का परिचय क्यों नहीं दे रही?
सितंबर 2021 में बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा है कि मुंबई और उपनगरों में पार्किंग की समस्या दिनोंदिन गंभीर होती जा रही है। सड़कों की लगभग चालीस फीसद जगह गाड़ी पार्किंग से सिकुड़ जाती है। इससे आम आदमी के लिए चलने की जगह नहीं रह जाती। पीठ ने सवाल उठाया है कि एक परिवार को चार से पांच गाड़ियां रखने की अनुमति क्यों दी जा रही है? पार्किंग को लेकर अब तक जो अध्ययन हुए हैं, उससे हालात की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। एक अध्ययन के मुताबिक सड़क किनारे पार्किंग की वजह से कोलकाता में सड़क की जगह में 35 प्रतिशत, दिल्ली में 14 प्रतिशत, जयपुर में 56 प्रतिशत और कानपुर में 45 प्रतिशत की कमी आई है। गुजरात के गोधरा जैसे छोटे शहर में भी सप्लाई की तुलना में पार्किंग स्पेस की मांग ढाई गुना ज्यादा है। यही हाल दूसरे शहरों का भी है। भारत के ज्यादातर शहरों में पार्किंग स्पेस की मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति आधी या उससे कम है।
दिल्ली जैसे महानगर में बढ़ती जनसंख्या और वाहनों की संख्या के कारण पार्किंग की समस्या एक गंभीर मुद्दा बन गया है। सीमित जगह और बढ़ती वाहनों की संख्या के कारण लोगों को पार्किंग के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। अवैध पार्किंग के कारण सड़कें जाम हो जाती हैं और यातायात व्यवस्था बिगड़ जाती है। दरअसल दिल्ली में लाखों वाहन रोज सड़कों पर दौड़ते हैं, लेकिन पर्याप्त पार्किंग स्पेस का अभाव इसे और भी परेशानी भरा बना देता है। देश की राजधानी दिल्ली के साथ एक बड़ी समस्या यह भी जुड़ी हुई है कि यहां पड़ोसी शहरों से भी प्रतिदिन लाखों की संख्या में गाड़ियां आती हैं। इन्हें भी आखिरकार कहीं ना कहीं जगह चाहिए। यही वजह है कि सड़क से लेकर बाजार तक बुरा हाल है। सरकारी रिपोर्ट्स और अध्ययन से ये सामने आया है कि शहर में पार्किंग स्पेस की कमी तेजी से बढ़ रही है, और इस समस्या से समाधान के लिए बड़ी प्लानिंग की जरूरत है। दिल्ली में आजकल कुल 1.5 लाख से ज्यादा पार्किंग स्पेस उपलब्ध हैं, जो खासतौर पर शहरी इलाकों और व्यावसायिक क्षेत्रों में मौजूद है. हालांकि, राजधानी में वाहनों की संख्या इस आंकड़े से कई गुना ज्यादा है। आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में करीब 1.4 करोड़ से ज्यादा वाहन हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। इसका परिणाम यह है कि कई जगहों पर वाहन सड़क किनारे या अवैध पार्किंग की समस्या पैदा कर रहे हैं, जिससे यातायात पर असर पड़ता है। कमोबेश दिल्ली जैसे हालात देश के हर छोटे बड़े शहर के हैं।
पार्किंग की समस्या को सुलझाने के लिए शहरी निकाय जिस तरह उन शहरों की जरूरतों के हिसाब से नीतियां बना रहा है, वो एक महत्वपूर्ण पहल तो है लेकिन चिंता की बात ये है कि ये नीतियां कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं। नीतियां बनाने और उनके क्रियान्वयन में संतुलन नहीं बैठ पा रहा है। यहां ये याद रखना भी जरूरी है कि सिर्फ नीतियां बनाना ही काफी नहीं है। नगर निगमों को चाहिए कि वो पार्किंग मैनेजमेंट कमेटी बनाए जो इन नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू कर सकें। कुछ लोग नो-पार्किंग जोन, नो-स्टॉपिंग जोन एवं कंट्रोल्ड पार्किंग के क्रियान्वयन में अपेक्षानुरूप सहयोग नहीं करते है, जिससे पार्किंग नियमों का समुचित क्रियान्वयन संभव नहीं हो पाता है। यह सही है कि पार्किंग नियमों का पालन तभी हो सकेगा, जब नागरिक पार्किंग के महत्त्व को समझें। पार्किंग की समस्या बहुत बड़ी परेशानी का सबब बनती नजर आएगी।
