गुरु गेहूं के एक खेत के समीप खड़े थे, तब उनका शिष्य एक समस्या लेकर उपस्थित हुआ। वह गुरु से अपनी समस्या का समाधान चाहता था, लेकिन न जाने कुछ सोचकर चुप ही रहा। गुरु ने कहा, लगता है, तुम्हारे दिमाग में कुछ चल रहा है? कोई सवाल है, जिसका उत्तर चाहते हो।
नि:संकोच कहो, तुम्हारी समस्या का निदान करने की हर संभव कोशिश करूंगा। शिष्य की हिम्मत बढ़ी और बोला, ‘सत्य की प्राप्ति की ओर ले जानेवाला मार्ग कौन-सा है? मैं उसकी खोज कैसे करूं? यह सवाल मेरे दिमाग में बहुत दिन से घूम रहा है।’ गुरु ने उसे ध्यान से देखा और पूछा, ‘तुम अपने दाएं हाथ में कौन-सी अंगूठी पहने हो?’ ‘यह मेरे पिता की निशानी है जो उन्होंने निधन से पहले मुझे सौंपी थी’, शिष्य ने कहा। ‘इसे मुझे देना’, गुरू ने कहा।
शिष्य उनकी इस बात का आशय नहीं समझ पाया, लेकिन उसने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए अंगूठी गुरु के हाथों में सौंप दी। गुरु ने एक भी क्षण गंवाए बिना अंगूठी को खेत के बीच में गेहू की बालियों की ओर उछाल दिया। अंगूठी बालियों में कहीं गुम हो गई। शिष्य पहले तो समझ ही नहीं पाया कि ऐसा क्यों किया गुरु ने? जब वह थोड़ा संभला तो अचरज मिश्रित भय से चिल्ला पड़ा, ‘यह आपने क्या किया?
अब मुझे सब कुछ छोड़कर अंगूठी की खोज में जुटना पड़ेगा! वह मेरे लिए बहुमूल्य है गुरु जी!’ गुरु ने बहुत ही शांत स्वर में कहा, ‘अंगूठी तो तुम्हें मिल ही जाएगी, लेकिन उसे पा लेने पर तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा। सत्य का पथ भी ऐसा ही होता है, वह अन्य सभी पथों से अधिक मूल्यवान और महत्वपूर्ण है।’ सच कहा गुरु ने सत्य का पथ सबसे मुश्किल और मूल्यवान है। जिसे इसने पा लिया समझो, सब कुछ पा लिया।