Friday, July 5, 2024
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महज 500 रुपये के लिए मरीज की जान जोखिम में

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  • अच्छे और सस्ते इलाज के लालच में मरीज फंस जाता झोलाझापों के महंगे इलाज की दलदल में
  • शहर के कुछ नर्सिंग होम मेडिकल के मरीजों से हैं गुलजार

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: इंसानियत को शर्मसार करने वाले दलाल महज हजार 500 रुपये के लालच में मरीजों को कई बार झोलाझाप डाक्टरों के महंगे इलाज की दलदल में फंसा देते हैं, जब तक मरीज और उसके तीमारदार हकीकत से रूबरू होते हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है। या तो मरीज की जान चली जाती है या फिर उसका केस बुरी तरह बिगड़ चुका होता है।
एलएलआरएम मेडिकल में केवल मेरठ के मरीज ही नहीं आते। यहां बड़ी संख्या में उत्तराखंड और वेस्ट यूपी के दूरदराज के इलाकों के अलावा कई बार दूसरे राज्यों के भी मरीज आते हैं।

मरीज आमतौर पर एम्बुलेंस में लाए जाते हैं। ऐसे ही मरीजों की तलाश प्राइवेट अस्पतालों या कहें नर्सिंगहोम संचालाकों के दलालो को रहती है। बाहर से मरीज आने की खबर मरीज के मेडिकल पहुचने से पहले दलाल को लग जाती है। और यह काम उस एम्बुलेंस का चालक करता है जिसकी एम्बुलेंस में मरीज को लाया जा रहा होता है। जानकारों की मानें तो दरअसल, प्राइवेट अस्पतालों के दलालों का कनेक्शन बाहर से मरीजों को लाने वाली एम्बुलेंसों से होता है। मरीजों के साथ जो ये खेल होता है उसके लिए मेडिकल का चिकित्सा सिस्टम भी कम कसूरवार नहीं है।

दरअसल, होता यह है कि मेडिकल इमरजेंसी में जब भी कोई मरीज दूरदराज से लाया जाता है तो लापरवाही के चलते उसको एडमिट करने में कई बार देरी होती है। मेडिकल इमरजेंसी में वही मरीज लाया जाता है जिसकी हालत नाजुक होती है। ऐसे मरीज के परिजन पूरी घबराहट में होते हैं। उनकी इसी घबराहट और मरीज की नाजुक दिशा का फायदा प्राइवेट नर्सिंगहोमों के दलाल उठाते हैं। होता यह है कि बाहरी मरीज के मेडिकल पहुंचते ही दलाल उस शिकंजा कसना शुरू कर देते हैं।

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सरकारी इलाज की तमाम खामियां गिनाते हुए मरीज के परिजनों को समझाते हैं कि शहर में कई ऐसे नर्सिंगहोम है जहां मेडिकल से भी सस्ता और अच्छा इलाज मिल जाएगा। घबराहट में लोग इनके झांसे में आ जाते हैं। इसी बीच ये मरीज को उठाकर अपनी एम्बुलेंस में डाल लेते हैं सीधे पहुंच जाते हैं। उस नर्सिंगहोम जहां से मरीज लाने की एवज में हजार या 500 रुपये मात्र मिलते हैं।

दलाल बन गए संविदा स्टाफ

मेडिकल इमरजेंसी के बाहर कभी मरीजों को पहुंचाने की दलाली करने वाले दो लोग जिनमें से एक अपनी एम्बुलेंस चलाता है दलाली करते मेडिकल में संविदा पर नौकरी पाने में सफल हो गए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेडिकल इमरजेंसी से मरीजों को उठाकर ले जाने वालों के कनेक्शन या पहुंच कितनी ऊपर तक है। इनकी पहुंच की बात की जाए तो यहां तक दाबा किया जाता है कि ये मेदांता तक मरीज पहुंचा देते हैं।

संदीप मित्तल ने करायी थी पिटाई

मरीजों को पहुंचाने की दलाली करने वाले एक शख्स जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह संविदा पर नौकरी पाने में सफल हो गया बताया जाता है कि साल 2016 में मेडिकल के तत्कालीन प्राचार्य पर जब लगातार शिकायते आने लगी तो उन्होंने जाल बिछा कर उसे पकड़ लिया था। उसकी कारगुजारियों के चलते इमरजेंसी में तब जमकर पिटाई की गयी थी, लेकिन वह कुछ समय गायब रहा और बाद में फिर मैदान में आ डटा।

काबलियत नहीं, फिर भी ईसीजी का चार्ज

जिस शख्स की बात की जा रही है उस पर किसी प्रकार की तकनीकि काबलियत की डिग्री न होने की भी जानकारी दी गयी है, लेकिन संविदा पर भर्ती वह पूर्व दलाल या कहें एम्बुलेंस संचालक इन दिनों मेडिकल में मरीजों का ईसीजी कर रहा है। नियमानुसार ईसीजी करने के लिए एक खास कोर्स करना पड़ता है। उसके लिए कठिन पढ़ाई होती है। कई टेस्ट देने होते हैं तब कहीं जाकर ईसीजी करने की काबलियत हासिल होती है, लेकिन सांठगांठ के चलते वह ईसीजी का चार्ज संभाल रहा है।

नौकरी के साथ-धंधा भी

कर्मचारी के बारे में सुनने में आया है कि ड्यूटी के साथ साथ वह जिस एम्बुलेंस में कभी मरीजों को ढोता था, उसी एम्बुलेंस में अब मेडिकल व चिकित्सा संबंधित सामान लेकर आता है। दिन भर उसकी एम्बुलेंस चिकित्सकीय सामान से भरी मेडिकल परिसर में खड़ी रहती है। नौकरी के करने के साथ साथ वह मरीजों को सामान व दवाएं आदि भी बेचता है। इस पूरे खेल में स्टाफ के लोगों की पूरी मिली भगत होती है। उनके बगैर यह संभव नहीं। इसकी सीधी चोट मरीज व उसके तीमारदारों पर पड़ती है।

इमरजेंसी में सुरक्षा के है पुख्ता इंतजाम

मेडिकल प्राचार्य डा. आरसी गुप्ता का कहना है कि इमरजेंसी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम है। आउटर की वहां एंट्री नहीं, यदि तीमारदार ही खुद मरीज को डिस्चार्ज कराना चाहते हैं तो उन्हें रोका नहीं जा सकता।

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