आनंद कुमार अनंत
इस पृथ्वी पर पक्षी तो अनेक हैं परंतु ‘राजधनेश’ अपने आप में पृथ्वी के अन्य पक्षियों से काफी विचित्र है। इस पक्षी की शारीरिक बनावट में गजब की विचित्रता मौजूद होती है। खासकर थोड़े जद्दोजहद के बाद चोंच के पीछे स्थित इसकी आंखें दिखाई देती हैं। आंखें बहुत पीछे स्थित रहने के कारण यह ऐसे देखता है मानो यह आधा अंधा हो।
राजधनेश की शारीरिक संरचना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके सिर पर स्थित एक टोपीनुमा आकार है, जिसका इसके शरीर के लिए कोई विशेष प्रयोजन नहीं होता। इसके इस टोपी के अगल बगल का हिस्सा तथा ऊपरी हिस्सा पीले रंग का होता है। इस टोपी के आगे का हिस्सा काले रंग का होता है।
इसकी चोंच लंबी होती है जो टोपी के आधे हिस्से तक मौजूद रहती है। ऊपरी चोंच आगे की ओर पतली होती हुई नीचे की ओर झुकी रहती है। चोंच की रंगत पीली होती है, निचली चोंच ऊपर की अपेक्षा पतली तथा छोटी होती है। राजधनेश की चोंच का यह हिस्सा मटमैले सफेद रंग का होता है। ऊपरी चोंच के सिर वाले हिस्से के पास काले फरों के बीच स्थित इसकी आंखें काली होती हैं। इसी कारण दूर से इसकी आंखें दिखाई नहीं देती।
राजधनेश ही एक ऐसा पक्षी है जिसकी आंखों पर पलकें होती हैं। इसकी गर्दन लंबी और फरों से शोभित होती है। इन फरों में गजब की चमक मौजूद होती है। इसकी आंखों के आसपास वाला हिस्सा तथा गालों की रंगत काली होती है। इसके वक्षस्थल के फर (पंख) बाल सरीखे तथा काले होते हैं। इसके पंखों पर कालापन लिए सफेद रंग होते हैं। इसके डैने का थोड़ा-सा आखिरी हिस्सा सफेद होता है। शेष डैने की रंगत काली होती है।
इसके पंखों में दोनों रंग घुले-मिले नहीं हैं बल्कि एक ज्योमितीय आकार-प्रकार वाले होते हैं। इसका शरीर देखने में जितना सुंदर है, उतने ही कुरूप इसके पैर होते हैं। यह पतली डाली पर भी बिना संतुलन खोये अपने कुरूप पैरों के बदौलत घंटों बैठे रहने की क्षमता रखता है।
अपने घोंसले की बनावट के लिए इस पक्षी का खास महत्त्व है परन्तु यह भी एक आश्चर्यजनक सत्य है कि यह अपना घोंसला स्वयं नहीं बनाता। पेड़ों के पुराने कोटरों में इसकी मादा अंडे देती है। मादा की सबसे बड़ी दिलचस्प बात यह होती है कि अंडा देने के समय से लेकर जब तक उसके बच्चे प्रसूति-गृह से निकलकर अपने पैरों पर खड़े होने लायक नहीं होते, तब तक वह पर्दानशीन बनी रहती है।
मादा राजधनेश वर्षा के मौसम में अंडे देती है। प्रसूत काल निकट आते ही वह किसी कोटर को अपना आश्रय बना लेती है। उस कोटर के मुंह को पत्तों के दीवार से बंद कर देती है, सिर्फ एक छोटा-सा छेद छोड़ देती है ताकि हवा आ-जा सके। पत्तों को कोटर के मुंह पर रखकर उस पर अपना बीट करती रहती है इससे वे पत्ते आपस में चिपककर दीवार का रूप ले लेते हैं। नर राजधनेश अपनी चोंच में मिट्टी भर-भरकर लाता है। मादा की बीट और नर द्वारा लाई गई मिट्टी से बना यह घोंसला बाहर से मांद जैसा दिखाई देता है।
घोंसले के सुराख से मुंह निकालकर नर द्वारा लाए गए भोज्य पदार्थों को मादा ग्रहण करती है। यह प्रक्रि या हफ्तों चलती रहती है। नर नित्य अपनी चोंच में खाने की चीजें यथा-कीड़े मकौड़े, गिरगिट और छिपकली तक लाकर मादा को सुराख से खिलाता रहता है। नर दिन में लगभग दस बार यह क्रि या करता है।
नर राजधनेश को लगभग डेढ़ माह तक इसी प्रकार नित्य अपनी मादा को खाद्य पदार्थ लाकर देना होता है। अठाइस दिन से इकत्तीस दिनों के आद अंड़ों से बच्चे निकलते हैं। मादा राजधनेश एक बार में अमूमन दो अंडे देती है।
पालतू राजधनेश सत्तू, भात, केला आदि भी बड़े चाव से खाता है। वन्य जीवन में बड़, पीपल, नीम आदि के छोटे-छोटे फल तथा टिड्डी, गिरगिट, छिपकली, कीट व बटबोज जैसे जीव-जंतु इसके प्रिय आहार होते हैं। आमतौर पर यह पेड़ों की डालियों पर ही बैठा रहता है। सिर्फ भोजन की तलाश में ही पेड़ों से उतरकर जमीन पर जाता है।
कोटर के अंदर अंडा देने के साथ ही मादा के सारे पर झड़ जाते हैं। उसकी चोंच का आकार भी छोटा हो जाता है मगर बंद घर में रहने के कारण इसका यह विकृत रूप कोई नहीं देखता है। जब बच्चे करीब दो ढाई माह के बाद उड?े लायक हो जाते हैं, तब कोटर का मुंह तोड़ा जाता है। सीमेन्ट की तरह मजबूत घोंसले को अंदर से मादा तथा बाहर से नर राजधनेश अपनी चोंच से तोड़ते हैं।
इस बीच मादा की देह पर फिर से नए पर उग आते हैं और जब वह कोटर से निकलती है, तब उसका सौंदर्य पहले से भी कहीं अधिक निखरा नजर आता है। बाहर आने पर राजधनेश के अन्य पक्षी बिरादरी के नवजात शिशुओं का स्वागत करते हैं और अपने समुदाय का सदस्य मानने लगते हैं।
राजधनेश को इसकी मजबूत चोंच के कारण ‘हार्नवील’ अर्थातसींग की तरह चोंच वाला पक्षी कहा जाता है। दुनिया भर में इस पक्षी की अनेक किस्में पायी जाती हैं। भारत में पंजाब के कुछ हिस्सों को छोडकर देश के प्राय: सभी राज्यों में पाया जाता है। यह अपने पंखों को हल्के रूप में फैला कर कूद-कूदकर चलता है। इसकी चाल में भी गजब की मोहकता दिखाई देती है।
यह पक्षी सफाई का पूरा ध्यान रखता है। मादा इतने दिनों तक कोटर में रहने पर भी कोटर को गंदा नहीं होने देती। कोटर की गंदगी को वह अपनी चोंच से उठाकर छेद से बाहर फेंकती रहती है। इस पक्षी से हमें सबक सीखना चाहिए।