सभी धर्म ग्रंथों में लिखा है कि जो जैसा करता है, उसे वैसा ही उसी जन्म में भोगना पड़ता है, क्योंकि इतिहास खुद को दोहराता है। रविवार को महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स में यह बात सच साबित होती दिखाई दी। सत्ता की चाहत बहुत बेरहम होती है। इसमें रिश्ते बौने पड़ जाते हैं। भतीजे अजित पवार के हाथों राजनीति के दंगल में चित हुए शरद पवार से बेहतर भला इसके बारे में कौन जानता होगा। रविवार को शरद पवार के साथ जो हुआ उसने उन्हें 1978 की याद जरूर दिलाई होगी। शायद यही वजह है कि उन्होंने कहा कि बगावत उनके लिए नई चीज नहीं है। वह पार्टी को दोबारा खड़ा कर देंगे। रविवार को बगावत का बिगुल बजाने वाले उनके भतीजे अजित पवार थे लेकिन, तब शरद पवार ने बड़ा उलटफेर किया था। रविवार को पूरे घटनाक्रम ने महाराष्ट्र में 1978 में वसंत दादा पाटिल सरकार के खिलाफ शरद पवार की बगावत की याद ताजा कर दी।
पवार ने 18 जुलाई 1978 को प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। शरद पवार ने 40 विधायकों को तोड़ दिया और सुशील कुमार शिंदे समेत कई मंत्री उनके साथ निकल लिए। इसके बाद वसंतदादा पाटिल की सरकार अल्पमत में आ गई और उनके इस्तीफे के बाद शरद पवार मुख्यमंत्री बने।
उन्होंने ‘समाजवादी कांग्रेस’ नाम से एक नई पार्टी का निर्माण कर दिया। शुरू से जोड़तोड़ में दक्ष रहे शरद पवार ने फिर जनता पार्टी, वामपंथी दलों और ‘शेतकरी कामगार पक्ष’ के साथ मिल कर ‘प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटक फ्रंट’ गठबंधन बनाया और मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 18 महीने चलने के बाद उनकी सरकार को बरखास्त कर दिया गया था। आज यही शरद पवार अपने भतीजे को बगावत करने पर नसीहत दे रहे हैं।
शरद पवार ने मात्र 4 महीने चली वसंतदादा पाटिल की सरकार को गिरा दिया था। शरद पवार के पिता गोविंद राव बारामती किसान सहकारी बैंक में कार्यरत थे। उनकी मां खेती-किसानी के काम में लगी हुई थी। शरद पवार ने पुणे में कॉलेज में एडमिशन लिया और छात्र संघ के महासचिव के रूप में राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।
1967 में मात्र 26 वर्ष की उम्र में वो बारामती से विधायक बन गए थे। जब उन्होंने सरकार गिराई, तब खुद वसंतदादा पाटिल ने कहा था कि शरद पवार ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा है। वसंतदादा पाटिल की सरकार के समय इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस के शिवराज पाटिल विधानसभा अध्यक्ष थे।
तब जनता पार्टी के कद्दावर नेता चंद्रशेखर हुआ करते थे जिनसे शरद पवार की नजदीकी थी और सरकार गिराने का कारण भी यही बना। शरद पवार की सरकार में शिवराज पाटिल को हटा कर प्राणलाल वोरा को स्पीकर का पद मिला।
शरद पवार ने कोआॅपरेटिव की राजनीति और चीनी मिलों के जरिए अपना एक नेटवर्क तैयार किया जिससे उन्हें मानव संसाधन भी मिला और वित्त भी। ये भी आपको मालूम होगा कि आपातकाल के कारण लोकप्रियता खो चुकीं इंदिरा गाँधी को हरा कर बनी जनता पार्टी की सरकार टिक नहीं पाई थीं और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई सबको एक साथ लेकर चलने में नाकाम रहे थे।
अत: 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए और इंदिरा गांधी ने सत्ता में आते ही 9 राज्यों की गैर-कांग्रेसी सरकार को बरखास्त कर दिया। 1985 में शरद पवार की कांग्रेस (समाजवादी) को 54 सीटें मिलीं और वो नेता प्रतिपक्ष बने। 1987 में राजीव गांधी के आॅफर के बाद शरद पवार फिर कांग्रेस में लौटे।
बाद में सोनिया गांधी का विरोध करते हुए उन्होंने कांग्रेस तोड़ कर राकांपा बना ली। ये अलग बाद है कि फिर यूपीए में शामिल होकर इसी कांग्रेस की सरकार में कृषि मंत्री बने। शरद पवार खुद जोड़तोड़ और सौदेबाजी वाले नेता रहे हैं। 2019 में भी जब अजित पवार ने बगावत की थी तब वसंतदादा पाटिल की विधवा शालिनिताई पाटिल ने शरद पवार को उनके करतूतों की याद दिलाई थी।
उन्होंने इसे ‘कर्मा’ बताते हुए कहा कि अब शरद पवार को पता चलेगा कि कैसा लगता है। आज उस शरद पवार को लेकर अगर कोई नैतिकता के दावे करता है तो उसे पहले शरद पवार का इतिहास ही देख लेना चाहिए।
शरद पवार ने वसंतदादा पाटिल के साथ जो किया, 41 वर्ष बाद भी उनकी विधवा ये भूली नहीं हैं। अजित पवार वही तो कर रहे हैं, जो उन्होंने घर में रह कर अपने चाचा से सीखा है। शरद पवार पुत्रीमोह में फंसे रह गए और इधर पार्टी और परिवार दोनों टूट गए। शरद पवार को 1978 को याद करना चाहिए और पार्टी के भविष्य को स्वीकार कर लेना चाहिए।
इतनी उथल पुथल होने के बाद भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार अपने भतीजे अजित पवार द्वारा रविवार को पार्टी तोड़ने के बाद शांत नजर आए. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘धन्यवाद’ दिया और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को आज के घटनाक्रम के लिए ‘दोषी’ ठहराया।
राकांपा के संस्थापक 83 वर्षीय पवार ने मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि अभी हाल ही में मोदी ने कांग्रेस-एनसीपी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा, ‘आज उनकी पार्टी ने उन्हीं लोगों से हाथ मिलाया है और उसी पार्टी (राकांपा) के कुछ लोगों को मंत्री के रूप में शपथ दिलाई है, जिनके खिलाफ मोदी ने उंगली उठाई थी। इसका मतलब है कि मोदी के आरोप बेबुनियाद थे और अब हम सभी आरोपों से ‘मुक्त’ हैं।’
पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना-यूबीटी के विपरीत पवार ने कहा कि वह ‘विभाजन’ को कानूनी चुनौती नहीं देंगे और कोई भी जो भी आरोप लगाए, वह जनता की अदालत में जाएंगे और अपना पक्ष रखेंगे। उन्होंने राकांपा के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और महासचिव सुनील तटकरे पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से पूरा नहीं किया जिसके कारण विभाजन हुआ।
दोनों को राकांपा अध्यक्ष ने 10 जून को नई जिम्मेदारी सौंपी थी लेकिन दोनों अजित पवार के पक्ष में चले गए। एक सवाल के जवाब में पवार ने कहा कि आज का घटनाक्रम उनके लिए ‘कोई नई बात नहीं’ है और याद किया कि कैसे 1986 में कई नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया था और उनके पास केवल पांच लोग बचे थे, जिनके साथ उन्होंने पूरी पार्टी का पुनर्निर्माण किया था।
हम अब पार्टी का पुनर्निर्माण करेंगे…अब कोई दूसरा रास्ता नहीं है। आप जल्द ही पार्टी में नए नेताओं को सामने आते देखेंगे जो राज्य और देश के बारे में चिंतित हैं। पवार ने यह भी कहा कि उनके पास देश भर से फोन कॉल्स की बाढ़ आ गई है।
कॉल करने वालों में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष तथा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हैं, जो अपनी चिंताएं व्यक्त कर रहे हैं।
एक सवाल के जवाब में एनसीपी सुप्रीमो ने कहा कि रविवार की उथल-पुथल ‘पवार कबीले में फूट’ का संकेत नहीं देती है और यह परिवार के दायरे से बाहर की राजनीति है।
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