पिछले साल भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 1.55 लाख से अधिक लोगों की जान चली गई। इसका मतलब है कि औसत रोजाना 426 लोगों की या हर घंटे 18 लोगों की मौत हुई। यह किसी कैलेंडर वर्ष में अब तक दर्ज दुर्घटनाओं में मौत के सर्वाधिक मामले हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ‘भारत में दुर्घटनाओं में मृत्यु तथा आत्महत्या के मामले-2021’ मद के तहत आंकड़ों के अनुसार पिछले साल पूरे देश में 4.03 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 3.71 लाख लोग घायल हो गए। गृह मंत्रालय के तहत कार्यरत एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल सड़क दुर्घटनाओं में मौत के सर्वाधिक मामले आए थे, वहीं सड़क दुर्घटनाओं और घायल हुए लोगों की संख्या इससे पहले के सालों के मुकाबले कम हुई है। भारत ही नहीं विश्व भर में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या बहुत ज्यादा है। भारत जैसे देश में खराब सड़क, यातायात के नियमों का पालन न करना और शराब पीकर वाहन चलाना सड़क दुर्घटना का प्रमुख कारण है। सड़क दुर्घटनाओं पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं। कुछ समय पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा लोग भारत में मरते हैं। हमारे बाद चीन का नंबर है। सरकारी और गैर सरकारी सर्वे बता रहे हैं कि प्रति वर्ष सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसा नहीं है कि ट्रैफिक को नियंत्रित-व्यवस्थित करने के लिए कानून की कमी है। असल समस्या है कानून के प्रति सम्मान का अभाव और हर स्तर पर संवेदनशीलता की कमी।
लाइसेंसिंग प्रणाली में घोर अनियमितता तथा व्यक्तिगत स्वच्छंदता एवं अनुशासनहीनता। यह सब सत्ता में विराजे हमारे माननीयों को सम्भालना होता है, देखना होता है लेकिन उन्हें अगर देश की तरक्की उर्फ विकास से फुरसत मिले तब न। कानून व्यवस्था, अपराध और दुर्घटनाएं हमारी चिंता का विषय ही नहीं हैं।
प्रश्न यह है कि क्या सड़क दुर्घटनाएं भारतीय नागरिकों की सहज नियति है? सड़कों पर तेज गति से भागती हुई लंबी कारें किसी की परवाह किए बिना दौड़ रही हैं। किसी चौराहे पर लाल बत्ती को धता बताकर रोड पार कर जाना या सामाान्यत: कुछ ट्रैफिक पुलिसकर्मियों का मुस्तैदी से काम करने की बजाय नियम तोड़ने वालों से खुलेआम घूस लेना समाज की सोच को ही दिखाता है। गलत तरीके से ओवरटेकिंग, बेवजह हार्न बजाना, निर्धारित लेन में न चलना और तेज गति से गाड़ी चलाकर ट्रैफिक कानूनों की अवहेलना, आज के नवधनाढ्य लोगों का शगल बन गया है।
नवदौलतियों की बेलगाम गाड़ियां कभी फुटपाथ पर सो रहे प्रवासी मजदूरों को कुचल देती हैं तो कभी किसी झुग्गी में घुसकर दो चार जानें लेने के बाद आगे बढ़ जाती हैं। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि कानून के लंबे हाथ भी प्राय: इनके गिरेबां तक नहीं पहुंच पाते हैं। सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ जिस सड़क संस्कृति की जरूरत होती है वह हमारे देश में अभी तक नहीं बन पाई है।
सड़कों की अराजकता आज हमारे समाज की अराजकता को ही दिखाती है। एक बार देश के पूर्व गृह सचिव जी के पिल्लै ने कहा था कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल एक लाख अड़तीस हजार लोग मारे जाते हैं, अब यह संख्या डेढ़ लाख के करीब पहुंच गई है, यानि करीब बारह हजार लोग प्रति माह दुर्घटना में मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। जबकि चरमपंथी हमलों में हर साल लगभग दो हजार लोग मारे जाते हैं। साफ है कि ये सौ गुना ज्यादा बड़ी समस्या है लिहाजा केंद्रीय गृह मंत्रालय को सड़क दुर्घटनाओं के बारे में चिंता करनी चाहिए।
सड़क दुर्घटनाओं में हर साल लगभग 30 लाख जख्मी होते हैं। उनमें से कई की नौकरी चली जाती है। फिर बीमा की रकम देनी पड़ती है। पिल्लै के अनुसार देश की आर्थिक स्थिति पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। एक आकलन के मुताबिक कुल मिलाकर इन दुर्घटनाओं से देश को सालाना 20 अरब डॉलर का नुकसान होता है। पर इन सब चीजों को नजरअंदाज कर सड़कों पर रोज-रोज कारें उतारी जा रही हैं। अकेले दिल्ली में हर साल अड़तीस हजार नई कारें सड़कों पर आती हैं, ऐसे में चाहे जितनी भी सड़कें या फ्लाईओवर बन जाएं यातायात की समस्या कम नहीं होगी। केंद्र सरकार का कहना है कि सड़क दुर्घटनाओं पर नियंत्रण पाने के लिए वह मोटर वाहन अधिनियम को सख्त बनाने में जुटी हुई है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री गडकरी ने कहा कि देश में हर दिन सड़क दुर्घटनाओं में 415 लोगों की मौत हो जाती है। उन्होंने कहा कि लोगों की जान बचाने के काम में तेजी लाने की जरूरत है। गड़करी ने कहा कि देश में हर दिन सड़क दुर्घटनाओं में 415 लोगों की मौत हो जाती है। उन्होंने कहा कि लोगों की जान बचाने के काम में तेजी लाने की जरूरत है। सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए बड़े पैमाने पर कदम उठाने होंगे। जैसे शहरों में पैदल चलने वाले लोगों के लिए फुटपाथ बनाना और बनाए गए फुटपाथों को अतिक्रमण से बचाना। इसी तरह सड़क सुरक्षा के लिहाज से बनाए गए जरूरी नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई किया जाना भी महत्वपूर्ण है। आज कई संगठन दुर्घटना रोकने के लिए तकनीकी शोध कर रहे हैं। जैसे तमिलनाडु के कोयम्बटूर स्थित अन्ना यूनिवर्सिटी आॅफ टेक्नोलॉजी के शोधार्थियों ने ऐसी तकनीक ईजाद की है जो गाड़ी चलाते वक्त फोन आने पर मोबाइल को जाम कर देगी। ऐसी तकनीकें भी अहम हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है लोगों की सोच को बदलना। शायद ऐसे हादसों के बाद हमारे प्रतिनिधि कुछ समाज हित में सोच सकें।