Monday, July 1, 2024
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उत्तम भक्ति

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वृन्दावन की दो गोपियां, जिन्होंने कभी भगवान के दर्शन नहीं किए थे, दही मक्खन बेचती और अपनी गृहस्थी में मगन रहतीं। दोनो गोपियों ने यह सुना था कि साधु संतों के पास झोली में भगवान रहते है। एक दिन दोनों अपना दही बेचकर यमुना के किनारे से जा रहीं थीं। वहां देखा कि एक साधु अपनी झोली रखकर स्नान करने गए है। झोली एक वृक्ष के नीचे रखी है। जिज्ञासा वश झोली मे भगवान कैसे हैं? इस दृष्टि से दोनों ने चुपके से झोली उठाई और उसको को खोलकर देखने लगी, पर भगवान नही मिले। तभी उनकी नजर एक डिब्बे पर पड़ी। डिब्बा खोला तो लड्डू गोपाल को डिब्बे में बंद पाया। एक सखी बोली, यही भगवान हैं। दूसरी बोली, कितना निष्ठुर है ये साधु, भगवान को बंद करके रखा है। पहली सखी, देखो बेचारे भगवान के हाथ पैर भी टेढे हो गए हैं।

दूसरी, बेचारे बंद जो रहते हैं। हाथ पैर हिलाने की जगह भी नहीं है। अब दोनों ने लड्डू गोपाल को उठाया बोली भगवान जी अब परेशान न हो अपने हाथ पैर सीधे कर लो। दोनों ने भगवान की मूर्ति को सीधा करना शुरू किया। लड्डू गोपाल की मूर्ति सीधी हो गई। भगवान सीधे खड़े गए। दोनों ने भगवान को नहलाया और दही खिलाया फिर बोली, अब लेटो आराम करो। वह सीधी मूर्ति डिब्बे में नहीं जा रही थी।

तब तक वह महात्मा जी आ गए दोनों डरकर भागी। महात्मा जी उनके पीछे दौडे, लेकिन उन तक पहुंच नहीं पाए। लौटकर झोली देखी तो हतप्रभ रह गए। भगवान लड्डू गोपाल खड़े हंस रहे थे। महात्मा सारी बात समझ गए। वह भगवान के चरणों मे गिर कर रोने लगे। वह खोजते हुए उन गोपियों के घर गए उनके भी चरण पकड़कर रोने लगे। धन्य हो तुम दोनों आज तुम्हारे कारण भगवान के दर्शन हो गए। प्रभु भक्ति की सरलता पर रिझते हैं, जो हम अपने जीवन में ला नहीं पाते हैं।
                                                                                             प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा


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