Thursday, March 28, 2024
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प्लास्टिकोसिस की जद में पक्षियों का जीवन

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SAMVAD


38 5एक हालिया अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है कि प्लास्टिक के कारण समुद्री पक्षियों का पाचन तंत्र खराब हो रहा है। बता दें कि पहली बार प्लास्टिक से होने वाली बीमारी का पता चला है। वैज्ञानिकों ने इसका नाम प्लास्टिकोसिस रखा है। फिलहाल यह बीमारी समुद्री पक्षियों को हो रही है। लेकिन भविष्य में यह कई प्रजातियों के जीवों में फैल सकती है। इस बात की आशंका वैज्ञानिकों ने जताई है। प्लास्टिकोसिस उन पक्षियों को हो रहा है जो समुद्र में अपना शिकार ढूंढते हैं। शिकार के साथ ही उनके शरीर में छोटे और बड़े आकार के प्लास्टिक चले जाते हैं। जिनसे उनके शरीर को नुकसान होने लगता है।

धीरे-धीरे वे बीमार होकर मर जाते हैं। वैज्ञानिकों ने प्लास्टिकोसिस की वजह से शरीर पर पड़ने वाले असर को भी रिकॉर्ड किया है। जानकारी के लिए बता दें कि यह शोध हैजर्डस मैटेरियल्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोध के मुताबिक, प्लास्टिक प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि विभिन्न उम्र के पक्षियों में प्लास्टिक के निशान पाए गए हैं। शोधकतार्ओं ने आॅस्ट्रेलिया में शियरवाटर्स पक्षी का अध्ययन करने के बाद यह जानकारी दी है। अध्ययन में बताया गया है कि प्रोवेन्ट्रिकुलस में ट्यूबलर ग्रंथियों के क्रमिक टूटने के कारण यह रोग होता है। इन ग्रंथियों की कमी से पक्षी संक्रमण और परजीवियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं। ये भोजन को पचाने की उनकी क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।

आज हकीकत यही है कि प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा नासूर बन चुका है। प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण समूचे पारिस्थितिकी तंत्र को बड़े स्तर पर प्रभावित कर रहा हूं। आज यह कहना पड़ रहा है कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक बैगों, बर्तनों और अन्य प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं ने हमारे स्वच्छ पर्यावरण को बिगाड़ने का काम किया है। प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से इसके कचरे में भारी मात्रा में वृद्धि हुई है। जिसके चलते प्लास्टिक प्रदूषण जैसी भीषण वैश्विक समस्या उत्पन्न हो गई है। दिनों-दिन प्लास्टिक से उत्पन्न होने वाला कचरा कई प्रकार की परेशानियों का सबब बन रहा हैं। उल्लेखनीय है कि प्लास्टिक एक ऐसा नॉन-बायोडिग्रेडबल पदार्थ है जो जल और भूमि में विघटित नही होता है। यह वातावरण में कचरे के ढेर के रूप में निरंतर बढ़ता चला जाता है। इस कारण से यह भूमि, जल और वायु प्रदूषण का कारण बनता है

प्लास्टिक ने हमारी जीवन शैली को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। प्लास्टिक ने हमारे जीवन पर जोखिम को बढ़ाने का भी कार्य किया है। इसे समझने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि प्लास्टिक एक नॉन-बायोडिग्रेडबल अपशिष्ट पदार्थ है जो लंबे समय तक वायु, मृदा व जल के संपर्क में रहने पर हानिकारक विषैले पदार्थ उत्सर्जित करने लगता है। आज प्लास्टिक कचरा मानव से लेकर पशु-पक्षियों के लिए बेहद घातक सिद्ध हो रहा है। असल में प्लास्टिक पेट्रोलियम आधारित उत्पाद माना जाता है, इससे हानिकारक विषैले पदार्थ घुलकर जल के स्रोतों तक पहुंच जाते हैं। ऐसे में यह लोगों में विभिन्न प्रकार की बीमारियों को फैलाने का काम करता है। प्लास्टिक कचरा न केवल जल को दूषित करता है बल्कि यह जमीन की उर्वरा शक्ति को भी क्षीण करता है।

एक शोध से पता चला है कि प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहने से खून में थेलेटस की मात्रा बढ़ जाती है इससे गर्भवती महिलाओं के शिशु का विकास रुक जाता है और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचता है। प्लास्टिक उत्पादों में प्रयोग होने वाला बिस्फेनाल रसायन शरीर में मधुमेह और लिवर एंजाइम को असंतुलित कर देता है। इसके साथ-साथ प्लास्टिक कचरा जलाने से कार्बन-डाई-आॅक्साइड, कार्बन-मोनो-आॅक्साइड और डाई-आॅक्सींस जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनसे श्वसन, त्वचा और आंखों आदि से संबंधित बीमारियां होने की आंशका बढ़ जाती है।

ऐसे में बड़ा सवाल कि आखिर प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम कैसे संभव है? दरअसल प्लास्टिक प्रदूषण से इस धरा को बचाया जाना समय की मांग है। आज आवश्यकता प्लास्टिक के खतरों के प्रति आम आदमी में जागरूकता और चेतना पैदा करने की है। इसके साथ ही साथ सरकारी प्रयासों को गति देने की आवश्यकता है। इसमें आम-आदमी की सहभागिता को सुनिश्चित किया जाना भी जरूरी है। इसके बिना प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण संभव नहीं हो सकेगा। हमें जन-जागरूकता की दिशा में अभियानों को पुरजोर तरीके से चलाने की जरूरत है। सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तरह से खत्म करने और प्लास्टिक का इस्तेमाल जहां तक संभव हो कम से कम करने की कोशिशें बढ़ानी होंगी।


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