कई मामलों में देखा जाता है मानव जीवन की अप्राकृतिक हानि होती है, जिसको हम आम भाषा में यह भी कह देते हैं कि बेमौत मारा जाना। ऐसा ही स्थिति हाल ही में देशभर के तमाम हाईवे पर देखी जा रही है, जिसमें आवारा पशुओं की वजह से हर रोज कई लोगों की जान जा रही है और इसके बचाव लिए सरकारों के पास कोई भी प्लान नही हैं। रात होते ही आवारा पशुओं से छुटकारा पाने के लिए पशुओं को गांववासी गांव की सीमा से दूर खदेड़ देते हैं और अंधेरे का फायदा उठाकर लोग पशुओं के झुंड को सड़कों पर ही छोड़कर चले जाते हैं, जबकि वो इस बात से भली-भांति अवगत होते हैं कि इन पशुओं की वजह से हर रोज कई लोगों की जानें जाती हैं। बीते दिनों दिल्ली-जयपुर हाईवे पर बैल से टरकाने से एक बड़ा एक्सीडेंट हुआ, जिसमें तीन कारें एक साथ भिड़ीं, जिसमें 7 सात लोगों की मौत हो गई। यह तो मात्र एक घटना का जिक्र है। ऐसी हजारों घटनाएं देशभर में होती हैं। भारत सरकार हाईवे के मामले में हर रोज नए कीर्तिमान बना रही है। बीते दिनों भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने पांच दिनों से भी कम समय में एनएच-53 राजमार्ग पर लगातार एक ही लेन में 75 किलोमीटर सड़क बनाने का नया रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया है। एनएचएआई को यह रिकॉर्ड महाराष्ट्र के अकोला से अमरावती के बीच चल रहे निर्माण कार्य के लिए मिला है। इस मार्ग पर प्राधिकरण ने 105 घंटे 33 मिनट के रिकॉर्ड समय 75 किलोमीटर हाईवे का निर्माण किया है लेकिन यह तरक्की अधूरी इसलिए लगती है चूंकि जिस वजह से आप से देश के नागरिकों को सुविधा दे रहे हो और उस ही वजह से उनकी जान पर बात बन जाए तो क्या फायदा।
आवारा पशुओं से हो रही दुर्घटना को लेकर भी नितिन गडकरी को नीति बनानी चाहिए। जो लोग आवारा पशुओं को हाईवे पर छोड़ देते हैं उनके लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए और इसके लिए एक नया विभाग बनाकर पूरे मामले पर निगाह भी बनाए रखनी होगी चूंकि हमारे देश में कोई भी आसानी व आराम से मानता कहां हैं।
दरअसल, शहर के मार्गों पर हादसों के साथ-साथ आवारा पशु ट्रैफिक जाम का कारण भी बनते हैं, हाईवे पर वाहन तेज रफ्तार होते हैं वाहन चालक हाईवे पर निश्चित तौर बहुत अधिक स्पीड में होते हैं और अचानक सामने पशु या अन्य जानवर आ जाते हैं, जिससे भयंकर एक्सीडेंट होना स्वाभाविक हो जाता है। एक बड़े हादसे की भयावहता का जिक्र करें तो राजस्थान सराधना वाले सिक्स लेन हाईवे पर बाइक और सांड की टक्कर हुई थी जिसमें इसमें बाइक सवार दो युवक और सांड की मौत हो गई थी। ऐसे मामलों पर प्रशासन से बात की जाती है तो अधिकारी एक-दूसरे पर आरोप थोपते हैं। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि हाईवे पर सुरक्षा और आवारा जानवरों की आवाजाही पर रोक की जिम्मेदारी नेशनल हाईवे अथॉरिटी की होती है। टोल प्रशासन का कहना है कि हाईवे पर पशुओं को हटाने के लिए दल नियुक्त किया जाता है, जिसमें पशुओं से होने वाले हादसों के लिए पशु मालिक ही जिम्मेदार माना जाता हैं और लावारिस जानवरों को गश्त करने वाला दल हटाने की कार्रवाई करता है लेकिन स्थिति यह है कि सभी विभाग एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं।
दरअसल मामला यह है कि आवारा पशुओं को पकड़ा भी जाता है, लेकिन इनको रखने का कोई स्थायी समाधान नहीं होता। चूंकि नगर निगम की ओर से पशुओं को पकड़ा जाता है, लेकिन उन्हें फिर छोड़ देता है, क्योंकि विभाग के पास पशुओं को रखने की पर्याप्त जगह और चारा नहीं होता। ऐसा नहीं कि इसके लिए बजट की कमी होती है, लेकिन इस क्षेत्र में गंभीरता से काम नहीं किया जा रहा। इसके अलावा आवारा जानवरों से फसलें बचाने के लिए किसान उन्हें खेत से भगाते हैं, जिससे जानवर खेत से नजदीक हाईवे पर आ जाते हैं। यहां एनएचआई के गश्ती दल की नजर अगर इन पर पड़ती है तो वे हाइवे से इन्हें हटा देते हैं, जिससे जानवर रेलवे ट्रैक पर आ जाते हैं, जिससे सालाना हजारों पशु ट्रेन की चपेट में आकर मर जाते हैं।
मानव जीवन की अप्राकृतिक हानि होने पर संबंधित विभागों पर कड़ी कार्यवाही की जरूरत है चूंकि किसी भी इंसान की बेवजह मौत पर मन में बहुत तकलीफ होती है। जब सरकारें देश को अग्रसर करने के लिए हाईवे व अन्य सुविधाएं दे रही हैं, तो आवारा पशुओं को व्यवस्थित करने के लिए कुछ गंभीरता दिखाए। इसके लिए निवारण की जरूरत है। आवारा पशुओं के लिए लिए लावारिस गोवंश को रखने के लिए हर पंचायत समिति क्षेत्र में गौशाला खोलने होने की अनिवार्यता करनी चाहिए और यह बाकी कार्यों के लिए संवेदनशील तरीके से करना होगा तभी बात बन पाएगी।
यदि उत्तर प्रदेश की परिवेश में बात करें तो राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते दिनों लावारिस गायों व अन्य पशुओं के लिए योजना बनाई जो कारगर भी सिद्ध हो रही है। सरकार इस दिशा में बेहतर काम कर रही है जिससे यूपी में हादसों में कुछ कमी दिखी। इस मामले को लेकर गौ रक्षा के नाम पर उन्हें विभाग से छुड़वा देते हैं और उसके वह गाय व अन्य पशु छुड़वा तो देते हैं, लेकिन बाद में उनकी देखरेख नहीं करते और स्थिति वही हो जाती है। हालांकि कुछ गौ रक्षक दल इस पर बेहतर कार्य कर रहे हैं, लेकिन अधिकतर मात्र अपने व अपनी राजनीति को चमकाने के लिए ही दिखावा करते हैं। हम लेख के माध्यम से शासन-प्रशासन से गुहार लगाते हैं कि इस ओर ध्यान दिया जाए क्योंकि जब किसी भी परिवार का कोई भी सदस्य इस तरह बिना वजह मौत के आगोश में समा जाता है तो वह जिंदगीभर कुंठित रहता है।