- गैस चेंबर से बाहर निकलने को लोग परेशान, कक्षा 12वीं तक के स्कूल रहे बंद, आॅनलाइन क्लास हुर्इं
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: एनसीआर में मेरठ में भी प्रदूषण का स्तर पाकिस्तान के लाहौर का मुकाबला कर रहा है। यहां मंगलवार को घर के अंदर तक प्रदूषण का स्तर लगभग एक हजार पहुंच गया। गैस चेंबर बने महानगर में लोगों का दम घुटने लगा है। लोगों को खांसी, आंखों में जलन, सीने में दर्द की शिकायत हो रही है। महानगर में प्रदूषण की रोकथाम के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद डीएम के आदेश पर मंगलवार से कक्षा 12 तक के स्कूलों की छुट्टी घोषित कर दी गई। अधिकांश स्कूलों ने आॅन लाइन क्लसेस करके बच्चों को पढ़ाया।
मंगलवार की सुबह भी जब आसमान पर धुंध छाई रही। लोग इसे धुंध समझ रहे थे, लेकिन यह स्मॉग था। आधे दिन महानगर में जबर्दस्त प्रदूषण छाया रहा। प्रदूषण का स्तर घर के अंदर तक 999 तक पहुंच गया। जहरीरी हवा ने लोगों को बीमार करना शुरू कर दिया। खांसी, सीने में दर्द, आंखों में जलन के मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा होने लगा है। लोगों के शरीर में आॅक्सीजन की कमी होने लगी है। ऐसे में दिल, छाती, दमे, के मरीजों की जान पर बन आई।
मंगलवार को जिला अस्पताल में करीब 20 मरीजों को भर्ती किया गया। प्रदूषण की रोकथाम के लिए न तो प्रदूषण विभाग ने कोई ठोस कदम उठाए और न ही नगर निगम व अन्य विभागों ने कोई पहल की। कोई कूड़े में आग लगा रहा है तो कहीं कूड़ा खुले में पड़ा है या बिना ढके वाहनों में ले जाया जा रहा है। नगर निगम ने दो वॉटर स्प्रिकलिंग, एंटी-स्मॉग गन से पानी बोछार कराई, लेकिन यह नाकाफी है।
कोहरा, धूल के कण हवा को बना रहे जहरीला: अनुप्रिया
मेरठ के प्रदूषण पर शोध कर रही अनुप्रिया शर्मा ने बताया कि सर्दियों में घर को गर्म बनाने के लिए घरों को बन्द डब्बा बना देते हैं जिससे घर में प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती हैं। साथ ही दीवारों पर हुआ पेंट, सौंदर्य प्रसाधनों से वापसशील कार्बनिक यौगिक, डिओड्रेंट जिसमें प्रापेन और ब्यूटेन का उपयोग होता ह,ै इनसे घर का प्रदूषण विस्फोटक स्तर पर पहुंच जाता है। उनके शोध में सामने आया कि मंगलवार दोपहर को घर के अंदर प्रदूषण का स्तर 999 तक पहुंच गया। कार में 597, एनएएस इंटर कालेज के बाहर 721, क्लास रूम में 759, डीआईओएस आॅफिस में 512, बच्चा पार्क पर 440, हापुड़ अड्डा पर 400, विश्वविद्यालय रोड पर 203 रहा।
अंगीठी से खत्म हो जाती है कमरे की आक्सीजन
विज्ञान क्लब के जिला समन्वयक दीपक शर्मा ने बताया कि हर साल घरों को गर्म करने के लिए जलाई गई अंगीठी से कमरे की आॅक्सीजन खत्म हो जाती है, जिससे कमरे में सोने वाले लोगों की जान चली जाती है।
बच्चों के स्वास्थ्य के लिए वायु प्रदूषण खतरनाक: डा. राजीव
बाल रोग विशेषज्ञ डा. राजीव प्रकाश का कहना है कि बच्चों में वायु प्रदूषण गले, सांस, फेफड़ों की बीमारियां फैला देता है। इससे दिमागी ट्यूमर भी हो जाता है। ऐेसे में बच्चों को वायु प्रदूषण से बचाने की जरूरत है। बच्चों को घर से बाहर न निकलने दें। घर के बाहर मास्क लगाकर जाएं।
वायु प्रदूषण व सिगरेट का धुआं फेफड़ों का सबसे बड़ा दुश्मन: डा. तोमर
विश्व सीओपीडी दिवस के अवसर पर प्रसिद्ध छाती, सांस एवं टीबी रोग विशेषज्ञ डा. वीरोत्तम तोमर ने इस वर्ष की थीम के अनुरूप फेफड़ों के स्वास्थ्य को जानने और समझने के महत्व पर जोर दिया। इस वर्ष का नारा है अपने फेफड़ों की कार्यप्रणाली को जाने। महत्वपूर्ण बात ये है कि गैर-संचारी रोग वैश्विक मौतों का 74% हिस्सा हैं, सीओपीडी जैसी पुरानी श्वसन संबंधी बीमारियां विशेष रूप से भारत में स्वास्थ्य परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं।
सीओपीडी ने 55 मिलियन भारतीयों को ग्रसित कर रखा है और ग्लोबल बर्डन आॅफ डिजीज स्टडी 2016 के अनुसार देश में मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है। क्रॉनिक आॅब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) फेफड़ों की वह बीमारी है, जो वायु प्रदूषण तथा सिगरेट के धुएं के कारण होती है। जिससे वायुमार्ग में अपरिवर्तनीय सूजन और सांस लेने में कठिनाई होती है। सामान्य लक्षणों में बलगम के साथ लगातार खांसी, सांस फूलना और थकान शामिल हैं।
फेफड़ों के कार्य परीक्षण जिसे स्पायरोमीरी के महत्व को बताते हुए डा. तोमर ने कहा कि सीओपीडी बीमारी के प्रभावी इलाज और आगे की जटिलताओं को रोकने के लिए प्रारंभिक निदान और उपचार महत्वपूर्ण है। स्पिरोमेट्री, एक फेफड़े का कार्य परीक्षण है, जो फेफड़ों की क्षमता को मापता है। फेफड़े कितनी हवा अंदर ले सकते हैं और आप कितनी तेजी से सांस छोड़ सकते हैं,
यह सीओपीडी का शीघ्र निदान करने के लिए महत्वपूर्ण है, इससे पहले कि स्थिति की गंभीरता और बढ़ जाए, दुर्भाग्य से भारत में कई लोग सीओपीडी के लक्षणों को केवल एक परिवार में ही पहचान पाते हैं। उपलब्ध उपचार विकल्पों के बारे में जागरूकता बढ़ाना यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि अधिक रोगियों को उपचार मिले साथ ही उचित देखभाल और सहायता से अंतत: बेहतर परिणाम और फेफड़ों के स्वास्थ्य में सुधार हो।
कैंसर को तेजी से बढ़ा रहा वायु प्रदूषण: डा. उमंग
वायु प्रदूषण कैंसर में वृद्धि का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण है। सबसे अधिक प्रभावित फेफड़ों का कैंसर होता है, लेकिन पीएम 2.5, विशेष रूप से यूएफपी (अल्ट्रा फाइन पार्टिकल्स) और नाइट्रोजन आॅक्साइड्स रक्त प्रवाह में अवशोषित होकर स्तन, मूत्राशय, गुर्दा, कोलन और रक्त निर्माण करने वाले कैंसर जैसे ल्यूकेमिया और लिम्फोमा के मामलों को बढ़ाते हैं। यह बच्चों में कैंसर के मामलों में भी वृद्धि करता है। ये कहना है वरिष्ठ चिकित्सक एवं कैंसर विशेषज्ञ डा. उमंग मित्तल का।
खासकर मस्तिष्क ट्यूमर, रेटिनोब्लास्टोमा, न्यूरोब्लास्टोमा और नेफ्रोब्लास्टोमा के साथ-साथ ल्यूकेमिया और लिम्फोमा। गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे तिमाही के दौरान वायु प्रदूषण एएलएल (एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया), रेटिनोब्लास्टोमा, पीएनईटी (प्रिमिटिव न्यूरोएक्टोडर्मल ट्यूमर) और मेडुलोब्लास्टोमा के मामलों में वृद्धि करता है। वायु प्रदूषक, विशेष रूप से पीएम 2.5 और उससे छोटे, साथ ही एनओ 2, एनओ, एनओएक्स, एसओ 2 और पॉली एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स, डीएनए को सीधे नुकसान पहुंचाते हैं और हाइपरमेथाइलेशन के माध्यम से आॅन्कोजीन में म्यूटेशन और टीपी 53 जैसे ट्यूमर सप्रेसर जीन को निष्क्रिय कर देते हैं।
ये इंटरल्यूकिन के माध्यम से सूजन बढ़ाते हैं और आॅक्सीडेटिव तनाव पैदा करते हैं, जिससे फ्री रेडिकल्स की मात्रा बढ़ जाती है और एंटीआॅक्सिडेंट जैसे ग्लूटाथियोन और एस्कॉर्बेट की कमी हो जाती है। वायु प्रदूषण के कारण फेफड़ों के कैंसर और ल्यूकेमिया की घटनाओं और मृत्यु दर में लगभग 14% की वृद्धि होती है और अन्य कैंसरों की घटनाओं और मृत्यु दर में 8-10% की वृद्धि होती है। डा. मित्तल ने कहा कि हमें सभी को मिलकर जीवाश्म ईंधन और बायोफ्यूल के जलने को कम करने के लिए काम करना चाहिए।