आज पूरा एक वर्ष हो गया रूस-यूक्रेन के युद्ध को चलते हुए। युद्ध किसी समस्या को सुलझाने का विकल्प नहीं हो सकता। ये ऐसी हनन और जिद है जो सिर्फ बर्बादी और तबाही देती है। वैश्विक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, आपसी संबंधों और आर्थिक मोर्चे को रूस-यूक्रेन के जंग ने बर्बादी की गहरी खाई में कितना नीचे धकेल दिया है, जिसकी फिलहाल कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। नुकसान की समीक्षा होगी, लेकिन युद्ध रुकने के बाद। पर जंग के दुष्परिणामों को समूची दुनिया ने अभी झेलना शुरू कर दिया है। युद्ध रुकवाने को कई मुल्कों ने ईमानदारी से प्रयास किए। दरअसल, युद्ध की समकालीन तासीर कल्पनाओं से अलहदा हैं। कुछ ऐसे कारण हैं जिनमें कई मुल्कां को सामुहिक प्रयास करने होंगे? तभी बात बन सकती है। वरना, स्थिति और बिगड़ेगी।
पिछले वर्ष जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तो रूसी सरकार का पहला अधिकारिक बयान आया कि अगले 24 घंटे में वो यूक्रेन को हरा देंगे। लेकिन साल बीत गया, पर दोनों मुल्कों के बीच जारी जंग एक दिन भी नहीं रुकी। रुकेगी भी या नहीं, इसकी भी कोई संभावना फिलहाल दिखती नजर नहीं आती। दरअसल, इस लड़ाई को रूस ने नाक की लड़ाई बना लिया है। उन्हें डर है कि कहीं उनकी हनक, आर्थिक मोर्चे पर मुल्क का प्रभाव, साथ ही समूचे संसार में बढ़ती उनकी ताकत कम ना हो जाए? खुदा ना खास्ता अगर ऐसा हुआ तो विश्व बिरादरी में नाक कट जाएगी कि एक छोटे से मुल्क को नहीं हरा पाए और हार मान ली। इसलिए रूस को बर्बाद होना गवारा है, पर हारना नहीं? युद्व अगर यूं ही चलता रहा है तो रूस की यही जिद उन्हें कहीं की नहीं छोड़ेगी, तबाही कर देगी। जारी जंग में दोनों मुल्कों में ना कोई झुकने को राजी है और ना हार मानने को? इसलिए तत्कालिक तस्वीरें कुछ ऐसी ही दिखती हैं कि जंग फिलहाल किसी नतीजे पर पहुंचती नहीं दिखती।
अमेरिकी राष्टृपति का दौरा भी पिछले सप्ताह यूक्रेन में हुआ, तब उम्मीद जगी कि वो मध्यस्ता करके युद्व को रूकवाएंगे, लेकिन वो यूक्रेन की पीठ थपथपाकर यह कहते हुए चले गए कि अमेरिका तुम्हारे साथ है, लड़ो हम साथ है, जितने भी सैन्य हथियारों की जरूरत होगी, अमेरिका मुहैया कराएंगा। युद्ध को एक साल बीत गया है लेकिन प्रयास अब भी जारी हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को उम्मीद थी कि यूक्रेन पर हमले से पश्चिमी संसार बंट जाएगा और नाटो कमजोर पड़ेगा, वैसा हुआ कतई नहीं? पर तत्काल नतीजे उनके सोच से विपरीत दिख रहे हैं। परिणाम कुछ ऐसे दिखते हैं युद्ध के बाद पश्चिमी देशों का गठजोड़ और मजबूत हुआ है। युद्ध के बाद रूस चौतरफा घिरा है, दुनिया का एक तिहाई हिस्सा उनसे अलग हो चुका है।
27 देशों वाले यूरोपीय संघ ने सख्त प्रतिबंध लगा दिए हैं। जबकि वो सभी मिलकर यूक्रेन को अनगिनत धन की मदद भेज रहे हैं। इसके अलावा नाटो सदस्य मुल्क लगातार हथियार मुहैया करा रहे हैं। इसलिए ये युद्ध अभी लंबा खिंचेगा। यूक्रेन के सहयोग में अमेरिका अब खुलकर सामने आ गया है। उनकी भूमिका थोड़ी सी अब संदिग्ध दिखती है, जबकि अगर ईमानदारी से पहल करता तो युद्व रुक भी सकता था। अमेरिका की पहचान से दुनिया वाकिफ है। फिलहाल, साल भी से जारी रूस-यूक्रेन युद्व ने निश्चित रूप से अर्थव्यवस्थाओं के स्वरूप को बदला है। समूची दुनिया में युद्ध ने आर्थिक मोर्चे पर बड़ा प्रभाव डाला है।
युद्ध से पूर्व तमाम यूरोपीय संघीय देशों का प्राकृतिक गैस का आधा हिस्सा और पेट्रोलियम का एक तिहाई हिस्सा रूस पर ही निर्भर हुआ करता था। लेकिन वर्ष भर में युद्ध ने स्थिति को एकदम बदल दिया है। स्थिति अब कुछ ऐसी बनती जा रही है जिससे पश्चिमी देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए नए विकल्प तलाशने में लग गए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध से वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता का दौर भी शुरू हो गया है। जंग से ना सिर्फ आम यूक्रेनी नागरिक प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि अन्य देश भी इसकी चपेट में आ चुके हैं। यूक्रेन में भारत से असंख्य मात्रा में छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते थे। जंग के बाद उनकी पढ़ाई भी अधर में अटक गई। अब रूस ने परमाणु युद्ध की धमकी दी है। अगर ऐसा हुआ तो समूचे विश्व में शीत युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी। आज के समय में परमाणु हमले के संबंध में सोचना भी घोर चिंता का विषय है।
बहरहाल, युद्ध के चलते रूस के अंदरूनी हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं। बेरोजगारी और महंगाई की समस्या दिनों दिन बढ़ रही है। इसका प्रमुख कारण उन पर लगा आर्थिक प्रतिबंध है। ज्यादातर मुल्कों ने रूस के साथ आयात-निर्यात करना बंद कर दिया है। सिर्फ भारत एक ऐसा देश है जो जारी रखे हुए है। रूस ने अंतरराष्ट्रीय दाम से बेहद कम कीमत पर कच्चा तेल बेचने का आॅफर हिंदुस्तान को दिया हुआ है। भारत ने उसे स्वीकारा भी है। यही वजह है कि उनकी अर्थव्यवस्था का एक मात्र सहारा इस वक्त भारत है। रूस सस्ते दाम में कच्चा तेल भारत को दे रहा है। बीते दस महीनों से हिंदुस्तान की तेल कंपनियां सस्ते दामों पर वहां से कच्चा तेल खरीद रही हैं।
इससे भारत को जबरदस्त मुनाफा हो रहा है। क्योंकि एक वक्त ऐसा था, जब भारत कच्चे तेल खरीदने में सऊदी अरब, इराक व दूसरे खाड़ी देशों पर निर्भर रहता था। मौजूदा वक्त में रूस हमारा सबसे बड़ा आॅयल ट्रेडिंग पार्टनर है, कच्चे तेल की कुल हिस्सेदारी 26 फीसदी है। लेकिन फिर भी भारत युद्व का पक्षधर नहीं है, चाहता है ये जंग बिना देर करे रुके, लेकिन ऐसा होगा, उसकी तस्वीर फिलहाल नहीं दिखती। अमेरिका इस युद्व की आड़ में रूस को कमजोर करना चाहता है।