खेती में प्रबंधन का अपना अलग महत्व है बुआई से निपटने के बाद कटाई के इस लंबे अंतराल में फसल का रखरखाव करना जरूरी बात होगी। खरपतवार इसके सबसे बड़े दुश्मन होते हैं जो अंकुरण के तुरंत बाद ही सक्रिय हो जाते हैं। इस कारण अंकुरण के 30-35 दिनों के भीतर ही दो कतारों के बीच के खरपतवारों को निकाल कर खाद के गड्ढों में डाल देना चाहिए। दो पौधों के बीच में छुपे खरपतवार को एक निंदाई हाथ से करके निकालना जरूरी होगा। खरपतवार भूमि से पोषक तत्वों का बंटवारा तो करते ही हैं भूमि में उपलब्ध कीमती नमी जो मुख्य फसल के द्वारा उपयोग में लाई जा सकती है, उसका पालन-पोषण तथा बढ़वार में सहायक हो सकती है। ये खरपतावर चट करके मुख्य फसल को बहुत हानि पहुंचाते हैं।
फसल जब बालों पर आने लगे तब 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव अवश्य रूप से किया जाए। दूसरी स्थिति होती है सीमित सिंचाई का गेहूं जिसमें भी खरपतवार निकालकर पहली सिंचाई बुआई के 30-35 दिन बाद की जाए और यूरिया की टाप ड्रेसिंग भी की जाए। सिंचाई पूर्व यूरिया को फेंकना उसकी उपयोगिता को कम करने के बराबर ही होगा, इस कारण सिंचाई उपरांत ही यूरिया डालें और भरपूर लाभ उठाएं।
तीसरी स्थिति होती है समय से बुआई के साथ भरपूर उर्वरक उपयोग कर भरपूर सिंचाई और सिफारिश का उर्वरक दोनों आदान आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं इस कारण इनका भी उपयोग पूर्ण विवेक तथा वैज्ञानिक सोच के आधार पर ही किया जाना चाहिए ताकि भरपूर उपयोगिता हो सके। इस परिस्थिति में भी खरपतवारों की छुट्टी बुआई के 30-35 दिनों के भीतर ही कर लें।
जब खरपतवारों की कोमल अवस्था में ही उसका छिड़काव कर दिया जाए, देरी करने से केवल मन का संतोष होगा खाना पूर्ति होगी लाभ नहीं हो पाएगा। इस परिस्थिति में फसल की क्रांतिक अवस्था में सिंचाई और उसके बाद यूरिया की टाप ड्रेसिंग का तभी पूरा-पूरा लाभ हो सकेगा।
चौथी स्थिति विलम्ब से गेहूं की बुआई, जिसके लिए एक सीमा वैज्ञानिक द्वारा निर्धारित है जो 25 दिसम्बर है इसके बाद प्रतिदिन की देरी से 30-35 किलो उत्पादन प्रतिदिन घटता जाएगा। गेहूं के लक्षित उत्पादन के लिए 90 शीत दिवस अनिवार्य होते हैं। विलम्ब से बोई जा रही फसल में सिफारिश की गई जाति का समावेश बहुत जरूरी होगा। बीज दर में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी और उर्वरक में 25 प्रतिशत की कमी करके उचित लाभ उठाएं।
रबी की अन्य फसल जैसे चना में साधारण भूमि में दो सिंचाई बुआई के 40-45 दिन बाद तथा दूसरी 60-65 दिनों बाद की जाए। तोरिया-सरसों की फसल में माहो के नियंत्रण की व्यवस्था पुख्ता हो ताकि फसल को हानि ना हो पाए। मटर की फसल को भभूतिया रोग का डर सबसे अधिक होता है यथासंभव उस पर अंकुश लगे।