जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: जन जन के आराध्य ठाकुर श्रीबांकेबिहारीजी महाराज वृंदावन ही नहीं उनके कई मंदिर और बेशुमार संपत्ति भारत के अनेक शहरों के साथ-साथ पाकिस्तान तक में मौजूद है लेकिन सामाजिक बिखराव के चलते इनका उचित संरक्षण नहीं हो पा रहा है।
बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत एवं इतिहासकार आचार्य प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी के अनुसार मंदिर प्रबंध कमेटी द्वारा वर्ष 1957 में प्रकाशित श्रीस्वामी हरिदास अभिनंदन ग्रंथ में वर्णित है कि हरिदासजी के पितामह श्रीगजाधरजी महाराज ने 1485 में मुल्तान (अब पाकिस्तान) के तत्कालीन शासक द्वारा मारे गए शेर को जीवित कर दिया था।
इस चमत्कारिक घटना से प्रभावित होकर मुल्तान राजा ने गजाधरजी को गुरु मानते हुए पांच गांव का माफी पट्टा उनकी सेवार्थ भेंट किया और श्रीराधामाधव मंदिर की स्थापना कराई। 1507 में श्रीगजाधरजी एवं उनके सुपुत्र श्रीआशुधीरजी सपरिवार ब्रज की सीमा पर स्थित हरीगढ़ (अलीगढ़) में आकर बस गए थे।
यहीं पर सन 1512 में स्वामी हरिदासजी जन्म हुआ था। वर्ष 1525 में हरिगढ़ के तत्कालीन शासक के पुत्र को प्राणदान देने पर राजा ने पांच गांव दान में दिए, जिनमें शामिल स्वामीजी की जन्म स्थली हरिदासपुर के नाम से जानी जाती है। इनके साथ मुल्तान से आए श्रीराधामाधव अभी भी अलीगढ़ के ऊपरकोट मोहल्ले में विराजित हैं।
वर्ष 1537 ईसवीं में वृंदावन पधारे हरिदासजी द्वारा वर्ष 1543 में संगीत साधना के चरमोत्कर्ष पर ठाकुर बांके बिहारी महाराज का प्रागट्य होने के बाद जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह प्रथम ने लगभग तीन एकड़ भूमि ठाकुरजी की सेवार्थ दान की थी, जो अब निधिवनराज के नाम से प्रसिद्ध है। उसी दौर में हरिदासजी के आशीर्वाद से जन्मे बिहारिन देवजी के पिता मित्रसेन कायस्थ ने बिहारीजी की सेवार्थ अपनी भूमि दी थी, जिसे अब बिहारिनदेव टीले के नाम से जानते हैं।
बिहारीजी के लिए पुन: जयपुर के महाराजा सवाई ईस्वरी सिंहजी ने वृंदावन के दुसायत मोहल्ले में वर्ष 1748 में 1.15 एकड़ भूमि दान दी। इसके उपरांत करौली रियासत ने वृंदावन में स्थित मोहनबाग, भरतपुर रियासत ने सतीहरिमतिजी और रूपानंदजी के समाधिस्थल, किशोरपुरा भूखंड एवं रामनिवास ने अपना भवन ठाकुरजी की सेवा में दिए। ये सभी स्थान बिहारीजी मंदिर के अधिकार क्षेत्र में हैं।