कहां तो अनेक सदाशयी उम्मीद कर रहे थे कि हिंदुत्व के पैरोकार भले ही बहुसंख्यकों की असुरक्षा ग्रंथि को पाल-पोस व बड़ी करने के रास्ते पर चलकर सत्ता में आए हैं, अपने सत्ताकाल में उसे कम करने में लगेंगे, ताकि उसे अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर सकें और कहां हिंदुत्ववादी अपनी सत्ता में भी इस ग्रंथि को लगातार बढ़ाते ही जा रहे हैं। शायद उन्हें लगता है कि उन्होंने इस ग्रंथि को ही खत्म कर दिया तो उनके पास अपनी सत्ता की उम्र लम्बी करने या बेदखली के बाद उस पर फिर से कब्जा करने का कोई ‘अवलम्ब’ ही नहीं रह जायेगा। यही कारण है कि भाजपा समेत आरएसएस परिवार के प्राय: सारे आनुषंगिक संगठन अभी भी हिंदुओं में यह विश्वास जगाने के बजाय कि ‘मोदीराज में उनका धर्म पूरी तरह सुरक्षित है’, जब-तब उसकी रक्षा के नाम पर बवाल करते रहते हैं। अलबत्ता, भाजपाशासित राज्यों में ज्यादा और विपक्षशासित राज्यों में थोड़ा कम।
गत रविवार को भोपाल में बहुचर्चित वेब सीरीज ‘आश्रम-3’ की शूटिंग के दौरान बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने उसके सेट पर पहुंचकर नारेबाजी, मारपीट व तोड़फोड़ समेत हंगामा बरपा करते हुए उसके निर्माता प्रकाश झा पर जैसी अभद्रता से स्याही फेंकी, उसे महज इसी रूप में देखा जा सकता है।
याद करते हुए कि 2017 में करणी सेना द्वारा फिल्मकार संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग के दौरान ऐसी ही बदसलूकी की गई थी। तब मोदी सरकार को आए तीन साल ही हुए थे और सदाशयी लोगों में उम्मीद बची हुई थी कि ऐसे बेबात हंगामे आगे चलकर दाल-रोटी के सवालों के आगे शांत हो जाएंगे? आखिर कब तक लोग ऐसी कट्टरताओं को बढ़ावा देते रहेंगे?
लेकिन अब सात साल से अधिक हो गए हैं और ऐसे हंगामे खत्म होने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। भोपाल की भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर चेतावनी दे रही हैं कि फिल्मकारों को सनातन धर्म के साथ खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा। इसके लिए साधु-संतों का अलग विभाग बनाया जाएगा, जो कोई भी फिल्म के बनने से उसकी स्क्रिप्ट पढ़ेगा और संतुष्ट होने पर ही उसे बनाने की अनुमति देगा।
यानी हिन्दुत्व के स्वयंभू रक्षक अब सेंसर बोर्ड का काम भी खुद करेंगे, ताकि धर्म की आड़ में होने वाले उनके गलत कामों का जिक्र तक न हो सके।
जाहिर है कि उन्हें फिल्मकारों की संविधानप्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा में कोई दिलचस्पी नहीं है, न ही अपने हुड़दंगियों से उसकी रक्षा में। तभी तो मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा उलटे फिल्मकारों से पूछ रहे हैं कि हमेशा हमारी यानी हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाले दृश्य ही क्यों फिल्माते हो?
हिम्मत है तो दूसरे धर्म की भावनाओं को आहत करने वाले दृश्य फिल्माकर दिखाओ।’ गृहमंत्री होने के नाते उन्हें राज्य में कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने पर बात करनी चाहिए थी, लेकिन वे बेशर्मी से कह रहे हैं कि खुद प्रकाश झा को भी विचार करना चाहिए कि आखिर उनके साथ ऐसा सलूक क्यों हुआ?
व्यावसायिक कंपनियां अपने विज्ञापन आमतौर पर अपने स्वार्थों के तहत तैयार कराती हैं-किसी भी तरह के वैचारिक हस्तक्षेप की आकांक्षा के बगैर, महज अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए। लेकिन हिंदुत्ववादी उन्हें निशाना बनाने के लिए अब उनमें भी ‘बहुसंख्यकविरोधी’ तत्व ढूंढ़ ले रहे हैं।
पिछले दिनों उन्होंने टाटा संस की कंपनी तनिष्क ज्वैलरी के एक विज्ञापन को लेकर इसलिए वितंड़ा खड़ा कर दिया था कि उसमें विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के एक साथ आकर जश्न मनाने का ‘सेकुलर’ आइडिया था।
‘नये’ भारत के नाम पर देश और देशवासियों को हजारों साल पीछे ले जाने में लगे हिंदुत्ववादियों की आंखों ने इस आइडिये के पीछे भी वह ‘लव जेहाद’ ढूंढ़ निकाला था, जिसकी बाबत मोदी सरकार लोकसभा को बता चुकी है कि न ऐसा कोई शब्द कानून में परिभाषित है और न ऐसा कोई मामला उसकी एजेंसियों के संज्ञान में ही आया है।
इसके बाद तनिष्क ज्वैलरी को अपने कर्मचारियों, पार्टनरों और स्टोर स्टाफ की भलाई के लिए ‘जिनकी भावनाओं को ठेस पहुंची’ उनसे खेद जताना और विज्ञापन को वापस ले लेना पड़ा था। वह करती भी क्या, विघ्नसंतोषियों ने इससे पहले ही न सिर्फ सोशल मीडिया पर उसके बहिष्कार की मुहिम चलानी शुरू कर दी थी, बल्कि गुजरात के कच्छ जिले में उसके स्टोरों पर हमलेकर वहां के मैनेजर से जबरन माफीनामा लिखवा लिया था कि ’हम सेकुलर ऐड दिखाकर हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने के लिए कच्छ जिले को लोगों से माफी मांगते हैं।’
इससे पहले होली के अवसर पर आए सर्फ एक्सेल के एक विज्ञापन के साथ भी उन्होंने ऐसा ही सलूक किया था, जिसकी टैगलाइन थी : अपनेपन के रंग से औरों को रंगने में दाग लग जाएं तो दाग अच्छे हैं।’ सर्फ एक्सेल भी अपना उक्त विज्ञापन वापस ले लेना पड़ा था।
तब कुछ लोगों ने इन विज्ञापनवापसियों को उक्त कंपनियों की कमजोरी बताया था और कुछ लोगों ने संवैधानिक मूल्यों के दुर्दिन का स्यापा शुरू कर दिया था, लेकिन हिंदुओं की असुरक्षा ग्रंथियां बढ़ाने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि फिलहाल, उनके सैंया कोतवाल हैं और उनके रहते उन्हें किसी का डर नहीं है। हाल में फैब इंडिया को जश्ने-रिवाज और डाबर को समलैंगिक करवा चौथ वाले विज्ञापन वापस लेने और माफी मांगने को मजबूर करके उन्होंने यही सिद्ध किया है।
इस सिलसिले में संतोष की बात इतनी ही है कि अगर उनसे हारकर पांव पीछे खींच लेने और अपनी असलियत दर्शाने वाली सर्फ एक्सेल, तनिष्क, फैब इंडिया और डॉबर जैसी कम्पनियां हैं, तो पारले-जी और बजाज जैसी कंपनियां भी हैं, जो अपने मूल्यों के लिए नफरत फैलाने वाले चैनलों पर विज्ञापन देने से इंकार की हिम्मत दिखा सकती हैं।
फूड डिलीवरी ऐप जोमैटो को भूल जाना भी वाजिब नहीं होगा, जिसने मुस्लिम डिलीवरी ब्वॉय से खाने की डिलीवरी न लेकर सोशलमीडिया पर अपनी बीमार श्रेष्ठता ग्रंथियों और अहं को तुष्टकर प्रचार पाने में लगे अपने ग्राहक को बुरी तरह झिड़क दिया था।
लेकिन देश में लगातार बढ़ाए जा रहे अंधेरे कोनों में उजाले की ऐसी छिटपुट किरणें उजालों के व्यापक होने की उम्मीदों को तभी कायम सकेंगी, जब ‘हम भारत के लोग’ उनके पक्ष में मुखर होकर सामने आएगे।
फिलहाल इस मुखरता का कोई विकल्प नहीं है। इस बात को विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल करने वाले उन सारे कलाकारों, फिल्मकारों और पत्रकारों वगैरह को भी समझ लेना चाहिए, जो देश की बहुलवादी संस्कृति की खूबसूरती से वाकिफ हैं और उसकी पैरोकारी करते हैं।