अंजन मुनि अपने आश्रम में अनेक शिष्यों को शिक्षा देते थे। एक दिन वह अपने शिष्यों से बोले, आज मैं तुम्हें बताऊंगा कि खुशी आसानी से किस तरह मिल सकती है? सभी शिष्य बोले, गुरुजी, जल्दी बताइए। मुनि शिष्यों को एक कमरे में ले गए। वहां ढेर सारी एक जैसी पतंगें रखी हुई थीं। मुनि शिष्यों से बोले, इन पतंगों में से एक-एक उठाकर सभी अपना नाम लिखकर वापस वहीं रख दो।
सभी शिष्यों ने एक-एक पतंग पर अपना नाम लिखा और वापस वहीं रख दिया। कुछ देर बाद मुनि बोले, अब सभी अपने नाम की पतंग लेकर मेरे पास आओ। यह सुनकर शिष्यों में भगदड़ मच गई और अपने नाम की पतंग लेने के चक्कर में सारी पतंगें फट गई। किसी को अपने ना की पतंग नहीं मिल सकी। इसके बाद मुनि उन्हें दूसरे कमरे में ले गए। वहां भी ढेरों पतंगें रखीं थीं। उन्होंने सब शिष्यों को एक-एक पतंग पर अपना नाम लिखने के लिए कहा। इसके बाद वह बोले, अब, तुम सभी इनमें से कोई भी पतंग उठा लो।
सभी शिष्यों ने बिना कोई जल्दबाजी किए आराम से एक-एक पतंग उठा ली। गुरुजी बोले, अब तुम एक-दूसरे से अपने नाम वाली पतंग प्राप्त कर लो। सभी शिष्यों ने बगैर खींचतान किए और बगैर पतंगें फाड़े अपने-अपने नाम की पतंग प्राप्त कर ली। गुरुजी बोले, हम खुशी की तलाश इधर-उधर करते हैं, जबकि हमारी खुशी दूसरों की खुशी में छिपी है। जब तुमने केवल अपने नाम की पतंग तलाशनी चाही तो आपाधापी में सारी पतंगें फट गई। दूसरी बार तुमने आराम से पतंग उठाकर दूसरे के नाम की पतंग उसे सौंप दी। इस तरह उसे भी खुशी मिल गई और तुम्हें भी अपने नाम की पतंग मिल गई। असल खुशी दूसरों की मदद कर उन्हें खुशी देने में है।