बात महाभारत युद्ध की है, जब कर्ण के रथ का पहिया जमीन में फंस गया तो वह रथ से उतरकर उसे ठीक करने लगा। वह उस समय बिना हथियार के था…भगवान कृष्ण ने तुरंत अर्जुन को बाण से कर्ण को मारने का आदेश दिया। अर्जुन ने भगवान के आदेश को मान कर कर्ण को निशाना बनाया और एक के बाद एक कई बाण चलाए। जो कर्ण के शरीर को बिंधते हुए निकल गए कर्ण लहूलुहान हो जमीन पर गिर पड़ा।
कर्ण को दुख इस बात का था कि उसे निहत्था देख वार किया गया। कर्ण, जो अपनी मृत्यु से पहले जमीन पर गिर गया था, उसने भगवान कृष्ण से पूछा, क्या यह तुम ही हो, भगवान? क्या आप दयालु हैं? क्या एक बिना हथियार के व्यक्ति को मारने का आदेश देना आपका न्यायसंगत निर्णय है? भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराए और उत्तर दिया, अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु भी चक्रव्यूह में निहत्था हो गया था, जब उन सभी ने मिलकर उसे बेरहमी से मार डाला था, आप भी उसमें थे। तब कर्ण तुम्हारा यह ज्ञान कहां था? यह तुम्हारे ही कर्मों का प्रतिफल है और यह मेरा न्याय है। सोच समझकर काम करें।
अगर आज आप किसी को आहात करते हैं, उसका तिरस्कार करते हैं, किसी की कमजोरी का फायदा उठाते हैं। भविष्य में वही कर्म आपकी प्रतीक्षा कर रहा होगा। आप भी उसी तरह के व्यवहार के लिए तैयार रहें, क्योंकि इस मृत्युलोक में हर क्रिया की प्रतिक्रिया और प्रतिफल का शाश्वत सिद्धांत है। शायद वह स्वयं आपको प्रतिफल देगा। यही ईश्वर का न्याय होता है। जो कई बार प्रत्यक्ष नजर आता है और कई बार मात्र अनुभव किया जा सकता है।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा