Monday, July 1, 2024
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विकास में महिलाओं की भूमिका

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DR VISHESH GUPTAअभी हाल ही में विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक लैंगिक अतंराल रिपोर्ट -2023 प्रकाशित हुई है। इस बार की रिपोर्ट में भारत वैेश्विक लैंगिक सूचकांक में आठ अंकों का सुधार करते हुए 146 देशों में से 127वें स्थान पर पहुंच गया है। पिछली बार से भारत की स्थिति में 1.4 फीसदी अंकों का सुधार हुआ है। गौरतलब है कि विश्व आर्थिक मंच ने 2022 में अपने वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक में भारत को 146 में से 135वें स्थान पर रखा था। इस सूचकांक में पाकिस्तान का 142वां, बांग्लादेश का 59वां, चीन का 107वां, नेपाल का 116वां, श्रीलंका का 115वां और भूटान का 103वां स्थान रहा है। इसी के साथ-साथ 91.2 फीसदी के लैंगिक अंतर स्कोर के साथ आइसलैंड ने लगातार 14वें वर्ष में सबसे अधिक लैंगिक क्षमता वाले देश के रुप में अपनी स्थिति बरकरार रखी है।

कहने की आवश्यकता नहीं कि यह ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स यानि वेैश्विक लैंगिक अन्तराल सूचकांक पुरुषों और महिलाओं के बीच उनके सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सशक्तिकरण व उपलब्धियों तथा विकास के संदर्भ में असमानता के स्तर का आंकलन करता है।

यह सूचकांक 2006 में विश्व आर्थिक मंच(वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम) द्वारा जारी बेंचमार्क इंडेक्स है, जो विश्व स्तर पर लैंगिक समानता को मापने के लिए विकसित किया गया है। इस सूचकांक से जुड़ी रिपोर्ट दुनियाभर की 130 अर्थव्यवस्थाओं में विश्व की 93 फीसदी आबादी में पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता के चार समग्र क्षेत्रों की जांच करती है।

इसमें पहले स्तर पर आर्थिक भागीदारी और अवसर की समानता, दूसरे स्तर पर शैक्षिक प्राप्ति, तीसरे स्तर पर राजनीतिक सशक्तिकरण और चौथे स्तर पर स्वास्थ्य और उत्तरजीविता को रखकर महिला-पुरुष समानता की गणना की गई है।

साथ ही साथ इस सूचकांक को बनाने के लिए उपयोग किए गए चौदह में से तेरह अंतरराष्ट्रीय संगठनों-जैसे अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम व विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यों का विश्लेषण करके लैंगिक अंतराल सूचकांक तैयार किया गया है।

इस रिपोर्ट का आंकलन बताता है भारत में शिक्षा के सभी स्तरों पर पंजीकरण में लैंगिक समानता बढ़ी है तथा इसने 64.3 फीसदी लैंगिक अतंराल को कम किया है। रिपोर्ट से पता लगता है कि आर्थिक सहभागिता और अवसरों के मामले में भारत 36.7 फीसदी समानता के स्तर पर पहुंचा है।

महिलाओं के वेतन और आय के मामले में इसमें मामूली वृद्धि हुई है। भारत के लिए उत्साहजनक बात यह है कि इसने राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में पहली बार 25.3 फीसदी समानता हासिल की है। निश्चित ही यह स्कोर 2006 में पहली बार आई रिपोर्ट के बाद सबसे अधिक रहा है।

इसी के साथ ही साथ यहां यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि 2006 के बाद से ही यहां महिला सांसदों की संख्या 15.1 फीसदी रहकर सर्वाधिक रही है। तुलनात्मक आधार पर देखें तो ज्ञात होता है कि इस रिपोर्ट में लैंगिक समानता के मामले में नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश ओर भूटान को भारत से बेहतर स्थिति में दर्शाया गया है।

सही बात यह है कि रिपोर्ट के इस पक्ष पर पक्षपाती दृष्टिकोण साफ झलकता नजर आता है। दृढ़ता के साथ कहा जा सकता है कि इन देशों की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति भारत से बेहतर कतई नहीं कही जा सकती है।

भारत में आज सशक्त लोकतंत्र है, भारत आज विश्व की पांचवीं सशक्त अर्थव्यवस्था बन गया है। चिकित्सा, शिक्षा, रक्षा, अंतरिक्ष विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इत्यादि में भारत का आज कोई मुकाबला नहीं है। राजनीतिक और कारोबारी रूप से महिलाएं आज सफलता की कहानी गढ़ रही हैं।

वार्षिक परीक्षाओें से लेकर देश की प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं में लड़कियां लड़कों के मुकाबले श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहीं हैं। यह निश्चित ही माता-पिता की बदलती सोच और उनकी उदारता का ही परिणाम है कि आज लड़कियां पढ़ाई-लिखाई से लेकर खेल, कारोबार, सेना, अंतरिक्ष इत्यादि में कामयाबी की नई ईबारत लिख रही हैं।

भारत सरकार के प्रकाशित हालिया आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की अस्मिता, सुरक्षा और प्रतिष्ठा से जुड़ा महिला शौचालयों का निर्माण, देश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने, स्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़ाने, स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या कम करने, शिक्षा के अधिकार कानून को लागू कराने हेतु बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के अंतर्गत 57 करोड़ से अधिक के बजट के आवंटन से सेवा व स्वरोजगार के क्षेत्र में भारत की महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के अनेक अवसर प्राप्त हुए हैं।

पिछले दिनों वैश्विक स्तर पर जो रिपोर्ट प्रकाशित हुर्इं, उनमें से अधिकांश रिपोर्ट में या तो भारत को कमतर आंकने का प्रयास किया गया अथवा भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया। इस संदर्भ में ऐसा अनुभव होता है कि यह भारत के विकासशील देश के विकसित राष्ट्र बनने के संक्रमण काल की वैश्विक प्रतिस्पर्धा अधिक दिखाई पड़ती है।

आज भारत अपने चहुंमुखी विकास की जो यात्रा तय कर रहा है, उससे एक नए भारत का निर्माण भी हो रहा है। आज भारत की जनसंख्या में आधी आबादी महिलाओं की है। भारत में महिलाओं को कमतर आंकने की बात अब धीरे-धीरे पृष्ठभूमि में जा रही है।

भारत में लैंगिक समानता यहां के सतत विकास से जुड़ने के साथ-साथ यहां मानवाधिकारों को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण है। भारत में लैंगिक समानता का प्राथमिक उद्देश्य यहां एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें महिला और पुरुष जीवन के सभी चरणों में समान अवसरों और दायित्वों का निष्पक्षता के साथ निर्वहन करें।

यह बात बिल्कुल सच है कि जिस राष्ट्र ने अपने यहां लैंगिक समानता का संरक्षण किया है, उसने विकसित राष्ट्र के स्वप्न को भी साकार किया है। भारत अब विकसित राष्ट्र की यात्रा तय करने की ओर अग्रसर है। ऐसे में मैकेन्जे ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि भारत में लैंगिक समानता के प्रयास तेज करने से वैश्विक विकास में 12 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि होने की संभावनाएं हैं।

साथ ही महिलाओं की श्रम शक्ति में दस फीसदी की भागीदारी बढ़ाने से 2025 तक भारत की जीडीपी में 700 अरब डालर की बढ़ोतरी हो सकती है। इस तथ्य के पुख्ता प्रमाण हैं कि एक समृद्ध समाज और राष्ट्र बनाने के लिए महिलाओं को समानता के आधार पर विकसित करना अपरिहार्य है। वर्तमान की यह वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक रिपोर्ट भी इसी ओर संकेत करती है।


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