Saturday, June 29, 2024
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संत कौन

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Amritvani


एक बार कबीर नगर में एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा आए। वे रोज शाम को दो घंटे का प्रवचन करते। काफी दूर-दूर से लोग महात्माजी का प्रवचन सुनने के लिए आते थे। लोग अपनी जिज्ञासा के अनुसार सवाल करते और महात्मा जी उसका जवाब देकर प्रश्नकर्ता को संतुष्ट करने कि कोशिश करते थे। कभी-कभी तो महात्माजी के जवाब से लोग चकित रह जाते, पर जब महात्मा अपनी कही हुई बात का विश्लेषण करते, तब लोग तालियों के साथ उनकी जयजयकार भी करने लगते।

यह मान जाते कि यह महात्मा वाकई में बहुत ज्ञानी हैं और हर सवाल का जवाब एकदम सटीक देते हैं। जवाब भी तर्कपूर्ण होता है, जिसकी कोई काट नहीं होती। ऐसी ही एक शाम जब महात्मा जी का प्रवचन चल रहा था तो एक भक्त ने प्रश्न किया, ‘महाराज, संत किसे कहते हैं?’ इसके पहले कि महात्मा जी कुछ जवाब देते, गांव के पंडित ने खड़े होकर कहा,‘अरे, यह कौन-सा प्रश्न है? जब मिला तो खा लिया, न मिला तो भगवान भजन करने वाले को ही संत कहते हैं। क्यों महाराज? सही कहा न मैंने?’

पुजारी की बात सुनकर महात्मा जी मुस्कुराए और बोले,‘नहीं, ऐसे आदमी को संत नहीं कहते हैं। संत तो वो होता है, जिसे मिले तो सब के साथ बांटकर खा ले और न मिले तो भी ईश्वर में अपनी आस्था कम न होने दे।’ महात्माजी की बात सुनकर सभी लोग उनकी जयजयकार करने लगे।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की हमें सब के साथ मिल बांटकर ही भौतिक वस्तुओं का उपभोग करना चाहिए। किसे ने लिखा भी है,‘मिलजुलकर एक साथ रहें सब, जीवन इसी का नाम जाना एक दिन सब को है, मिटना तन का काम’। दुर्भाग्य से आजकल ऐसे संतों क कमी हो गई है।


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