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एक व्यक्ति प्रतिदिन संत तुकाराम का कीर्तन सुनने आता था, लेकिन साथ ही वह उनसे द्वेष भी रखता था। वह कहीं न कहीं तुकाराम को नीचा दिखाने का अवसर ढूंढता रहता था। जब किसी व्यक्ति का सम्मान बढ़ जाता है तो आस-पड़ोसियों का ईर्ष्या करना स्वाभाविक है। वह व्यक्ति ऐसी ही प्रवृति का था।
एक दिन तुकाराम की भैंस उस व्यक्ति के बगीचे में चर आई। यह बात जब उस व्यक्ति को पता चली तो वह तुकाराम से लड़ने उनके घर पहुंच गया और उन्हें भद्दी गालियां देने लगा। इतने पर भी तुकाराम शांति से सुनते रहे कोई विरोध व्यक्त नहीं किया तो गुस्से में आकर उसने कांटों वाली छड़ी लेकर तुकाराम को अच्छे से पीट दिया।
फिर भी उन्होंने न तो क्रोध किया न ही कोई प्रतिरोध। वे व्यक्ति द्वारा दी गई गालियों और पिटाई को शांति से सहन करते रहे। हमेशा की तरह उस दिन जब संध्या के समय वह व्यक्ति भजन कीर्तन में नहीं आया, तुकाराम जी को दुख हुआ कि उनकी वजह से वह व्यक्ति, भगवान के कीर्तन से भी विमुख हो गया।
तुकाराम स्वयं उसके घर गए और भैंस की गलती के लिए क्षमा मांगते हुए कीर्तन में चलने का आग्रह करने लगे। संत तुकाराम की ऐसी सरलता और महानता को देखकर वह व्यक्ति भावाभिभूत होकर उनके चरणों में गिर पड़ा और अपने किए के लिए क्षमा याचना करने लगा।
संत तुकाराम ने उसे उठाकर गले लगा किया। अब उसे भी समझ आ गया कि संत तुकाराम ऐसे ही महान नहीं, बल्कि उनकी अपनी महानता के कारण महान है। उसके उपरांत उस व्यक्ति ने तुकाराम जी कभी भी ईर्ष्या या द्वेष नहीं रखा।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा
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