Saturday, August 23, 2025
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भक्त के दास


भक्त नामदेवजी एक प्रसिद्ध संत हुए हैं। धार्मिक विचारों के  माता-पिता निरंतर भगवान के नाम का गुणगान किया करते थे। माता-पिता की धार्मिक प्रवृत्ति और सानिध्य का प्रभाव भक्त नामदेव पर भी पड़ा। नामदेवजी भी भगवान की महिमा सुन सुनकर विट्ठलमय हो गए। बालक नामदेव ने एक बार सरल हृदय से विट्ठल की पूजा की और भोग के लिए कटोरे में भगवान को दूध दिया।

कुछ देर बाद नेत्र खोलकर देखा, दूध वैसा ही था। नामदेव सोचने लगे, शायद मेरी किसी गलती की वजह से विट्ठल जी दूध नहीं पी रहे हैं। तो वो रो-रोकर प्रार्थना करने लगे और बोले, बिठल जी, आज यदि तुमने दूध नहीं पिया, तो मैं जिंदगी भर दूध नहीं पिऊंगा। बालक नामदेव के लिए वो मूर्ति नहीं, बल्कि साक्षात पांडुरंग थे। जो रूठकर दूध नहीं पी रहे थे। बच्चे की प्रतिज्ञा सुनकर विठ्ठल जी प्रकट हुए और दूध पिया।

तभी से यह विठ्ठल जी की नामदेव के हाथ से वे रोज दूध पीने की दिनचर्या बन गई। एक बार संत श्री ज्ञानेश्वर महाराज, नामदेवजी के साथ भगवदचर्चा करते हुए यात्रा पर निकले। रास्ते में दोनों को प्यास लगी। पास एक सूखा कुआं था। संत ज्ञानेश्वर ने योग-सिद्धि के बल पर कुएं के भीतर जमीन में जाकर पानी पिया और नामदेवजी के लिए थोड़ा जल ऊपर लेकर आ गए। नामदेवजी ने वो जल नहीं पिया।

वो बोले मेरे विट्ठल को क्या मेरी चिंता नहीं है! देखते ही देखते क्षण कुआं जल से भर गया, फिर नामदेवजी ने जल पिया। प्रभु भी भक्त के दास हो जाते है, जब भक्त अपना सर्वस्व अपने इष्ट को समर्पित कर देता है। संत नामदेव जी ने अपने विठ्ठल जी को अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था। ऐसी थी भक्त की भक्ति।
                                                                                                प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा


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