- स्कूली पढ़ाई के प्रेशर के कारण तनाव में रहते हैं बच्चे
जनवाणी संवाददाता |
शामली: परीक्षा के दिनों में बच्चे अधिक तनाव में रहते हैं। कोरोना काल के चलते बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर हुआ है। पढ़ाई के दबाव के कारण बच्चे तनाव में रहते हैं। ऐसे में अभिभावकों का कर्तव्य है कि बच्चों का तनाव कम करने के लिए उनकी समस्याएं साझा करें।
मनोवैज्ञानिक अरूणिमा मिश्रा ने बताया कि आधुनिकता की दौड़ में बच्चे उन सब चीजों से दूर हो रहे हैं, जो उन्हें अंदर से मजबूत बनाती हैं और परिस्थतियों से लड़ना सिखाती हैं। क्रिया विहीन आनलाइन क्लासेज, सोशल मीडिया की लत, मोबाइल पर ज्यादा समय बीत जाना और पढ़ाई का दबाव बनते चले जाना।साथ ही, खुद को कटघरे में खड़ा पाना आदि ने नहीं चाहते हुए भी बच्चों को परिवार और समाज से काट दिया है।
असल में बच्चों को तनाव से बचने के तरीके नहीं पता होते, उनसे उनके मन की बात जानने के बजाय उन्हें दोषी करार देने में वयस्क ज्यादा लग जाते हैं। माता-पिता भी अब ज्यादा समय सोशल मीडिया को देते हैं, वे अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चो से तो करते हैं। अप्रत्यक्ष दबाव बनाए रहते हैं। परंतु उन्हें तनाव से निपटने के लिए तैयार नहीं करते। लिहाजा वह अपनी समस्याएं भी साझा नहीं कर पाते।
सोशल मीडिया ने बच्चो से फिजिकल खेलकूद भी छीन लिया है। मनोरंजन खेलकूद से तनाव कम होता है लेकिन मोबाइल व सोशल मीडिया ने बच्चों से खेलकूद व मनोरंजन छीन लिया है। इन सबका असर है कि बच्चे परिस्थितियों से लड़ने की जगह तनाव का शिकार हो रहे हैं। परिवार, समाज, स्कूल व मित्र सभी के सामूहिक प्रयास से ही इस तरह की घटनाओं में कमी लाई जा सकती है।
दबाव बनाने के बजाए बच्चों की रूचि को समझे। माता-पिता बच्चों पर दबाव बनाने की बजाय उनकी रुचि, अभिरुचि व काबिलियत को समझते हुए उनका साथ दें और उन्हें राह दिखाए। इसी के साथ अंत में कहा की स्कूल-कॉलेजों में बच्चों की स्क्रीनिंग की जानी चाहिए। जिससे यह पता चले कि कौन सा बच्चा डिप्रेशन में है। बच्चे की इन हरकतों को गंभीरता से लें। बात में चिड़चिड़ापन, चुपचाप रहना डिप्रेशन की निशानी है। अकेले रहना, जिद करना और अचानक खाना-पीना कम कर देना भी लक्षण है।