- बरसात के मौसम में पशुओं की बीमारियों का पता लगाने के लिए खून की जांच जरूरी
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: बरसात के दौरान मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों से बचाव के लिए पशुपालकों को विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है। मक्खी, चीचड़ी से फैलने वाली बीमारी के लिए पशुपालकों को जागरूक किया जा रहा है। उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डा. एसपी पांडेय का कहना है कि इन दिनों मेरठ जनपद के कई इलाकों में चार प्रकार के रोग पशुओं में देखने को मिल रहे हैं।
इनमें ट्रीपेनोसोमिएसिस (सर्रा) रोग से ग्रस्त पशु घूमने लगता है और चक्कर आकर गिर जाता है। ऐसा होने पर तत्काल पशु को चिकित्सक से संपर्क करके उपचार कराना चाहिए। बाबेसीओसिस या रेड वाटर डिजीज में पेशाब लाल हो जाता है। ऐनाप्लाजमोसिस रोग में बुखार लगातर बना रहता है। पेशाब में हल्का पीलापन बन जाता है। वहीं थिलेरियोसिस रोग चिचड़ी से फैलता है। इस बीमारी से ग्रस्त जानवर खाना-पीना बंद नहीं करता।
हांफता रहता है, समय रहते उपचार न मिलने की स्थिति में उसका हीमोग्लोबिन 5-6 रह जाता है। तत्काल ब्लड जांच कराने की जरूरत होती है। उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डा. एसपी पांडेय का कहना है कि एक जैसे लक्षण होने के कारण हर बीमारी का एकदम से पता लगा पाना चिकित्सकों के लिए भी आसान नहीं रह जाता है। इसका पता लगाने के लिए खून की जांच कराया जाना बेहद जरूरी है। जिससे सही बीमारी का पता लगने पर सही दवाइयां दी जा सकती हैं।
छह लाख पशुओं को लगाए टीके
जनपद में छह लाख आठ हजार वैक्सीन प्राप्त हुई, जिसमें से अधिकतर लगाई जा चुकी है। डा. एसपी पांडेय का कहना है कि आम तौर पर अवशेष पशुओं का टीका लगाने के लिए पशुपालक तैयार नहीं होते। टीकाकरण को लेकर कुछ भ्रांतियां अभी भी चली आ रही हैं। जिन को दूर करने के लिए सामाजिक स्तर पर जागरूकता की आवश्यकता है। टीकाकरण होने उपरांत बुखार हो जाना एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है।
अगर टीकाकरण के बाद किसी पशु को ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं, तो उसका उपचार पेरासिटामोल की गोलियों से होता है। टीकाकरण एक महत्वपूर्ण अभियान है, जिसमें सभी की सहभागिता आवश्यक होती है। टीकाकरण का सुरक्षा चक्र टूटने से बचाने के लिए शत-प्रतिशत टीकाकरण कराने में विभाग को सहयोग किया जाना अपेक्षित है।
गर्मी से बरसात की ओर जैसे ही मौसम का रुझान होता है, कई घातक बीमारियां पशुओं को अपनी चपेट में लेने लगती हैं। इनके लक्षण इतने मिलते-जुलते हैं कि चिकित्सकों के लिए इनमें फर्क कर पाना मुश्किल हो जाता है।
अलामती दवाइयों के प्रयोग से इतना विलंब हो जाता है, कि बीमार पशु की जान पर बन जाती है। रोग का पता लगाने के लिए सबसे सटीक यही है कि ब्लड की जांच कराकर वास्तविक रोग की पहचान की जाए। उसी के आधार पर बीमार पशुओं को दवा दी जाएं। -डा. एसपी पांडेय, उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी मेरठ