रूपा एक बड़ी कोठी में काम पाकर बहुत खुश हुई। बड़े लोगों का बड़ा महलनुमा घर, ढेर सारे सामानों से भरे कमरे। वह खुश थी कि इस घर की तो बची बचायी चीजों से ही हमारा घर चलता रहेगा। पुराने कपड़े, बचा खाना, घर के टूटे-फूटे सामान हमें ही तो मिलेंगे, यह सोचकर रूपा बड़ी मेहनत से मन लगाकर घर का सारा काम करती, पर कभी भी अपनी बंधी हुई पगार से अलग कुछ भी नहीं पाती। जबकि मालकिन को कारोबार की बढ़ोतरी के लिए ढेरों फल, मेवा, पुआ पकवान रोज मंदिरों में चढ़ाते देखती। पुजारियों को नए कपड़े, दक्षिणा में नोटों की गड्ड़िया बांटते देखकर सोचती क्या पता हम गरीब पर भी कुछ दया कर दें, पर हमेशा निराशा ही हाथ लगती।
एक दिन रूपा ने हिम्मत जुटाकर मालकिन से अपनी बात कही कि घर का बचा-खुचा सामान हमें दे दिया करें, जिससे हमारी मुश्किलें कुछ कम हो जाएंगी।
मालकिन ने यह कहते हुए साफ मना कर दिया कि यह पुराना सामान सब ओएलएक्स पर बिक जाता है। कुछ भी बेकार या बचा हुआ नहीं है। रूपा समझ गई ये बड़े लोग बहुत ही छोटे दिल वाले हैं।
वीना सिंह