वर्तमान में प्लास्टिक कचरा बढ़ने से जिस प्रकार से प्राकृतिक हवाओं में प्रदूषण बढ़ रहा है, वह मानव जीवन के लिए तो अहितकर है ही, साथ ही हमारे स्वच्छ पर्यावरण के लिए भी विपरीत स्थितियां पैदा कर रहा है। हालांकि इसके लिए समय-समय पर सरकार और सरकारी सहयोग लेकर चलने वाली गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जागरण अभियान भी चलाए जा रहे हैं, परंतु परिणाम उस गति से मिलता दिखाई नहीं देता। ऐसे में प्रश्न यह आता है कि गैर सरकारी संस्थाओं के यह अभियान अपेक्षित परिणाम क्यों नहीं दे पा रहे हैं, जबकि कागजी प्रमाण इसकी सफलता बता रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह भी लगता है कि भारत में कागजों में काम होने की बीमारी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में कहा जा सकता है कि प्लास्टिक मुक्ति का अभियान गैर सरकारी संस्थाओं ने बलि चढ़ा दिया। अगर प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ने की यही गति बरकरार रही तो एक दिन हमें शुद्ध हवा से वंचित होना पड़ सकता है।
कोई भी सरकारी योजना तभी सफल हो सकती है, जब उसमें जनता की सकारात्मक भागीदारी होती है। कहा जाता है कि जिस देश की जनता अपने देश के प्रति जागरूक रहती है, वह देश और समाज लगातार प्रगति पथ पर गमन करता है। आम समाज सरकार की योजनाओं का ही ठीक तरीके से पालन कर ले, तो भी एक सुखद परिवर्तन का वातावरण बनने लगेगा।
जो मानव समाज के लिए भी हितकर होगा। हम जानते हैं कि वर्तमान में प्लास्टिक के कारण हो रहे वायु प्रदूषण के चलते हमारे शरीर में कई प्रकार के विषैले कीटाणु प्रवेश कर रहे हैं, जो हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं और नई-नई बीमारियां जन्म ले रही हैं। यह भी एक बड़ा सच है कि भारत में कई बीमारियां केवल गंदगी के कारण हो रही हैं, चाहे वह प्लास्टिक कचरे से उत्पन्न गंदगी हो या फिर इसके कारण जाम नालियों के गंदे पानी से प्रदूषण से पैदा होने वाली गंदगी हो।
हम यह भी जानते हैं कि प्लास्टिक की पॉलीथिन में बहुत से लोग घर का कचरा भरकर बाहर फेंक रहे हैं, जिसे गायें खाती हैं और हम जाने-अनजाने में गौहत्या का पाप कर रहे हैं। इसके साथ ही बहुत बड़ा सच यह भी है कि प्लास्टिक पॉलीथिन और खाद्य सामग्री में उपयोग आने वाले प्लास्टिक के सामान रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल के कारण हमें जहर भरे खाना खाने के लिए विवश कर रहे हैं। इसके कारण हमारा स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है।
हालांकि हमारे देश में स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि प्लास्टिक कचरा स्वच्छ भारत अभियान की दिशा में बहुत बड़ा अवरोधक बनकर सामने आया है। प्लास्टिक कचरे से मुक्ति पाने के लिए केंद्र सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाया है। हालांकि कई स्थानों पर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध भी लगा है और व्यक्ति भी इस प्रतिबंध का पालन गंभीरता से कर रहे हैं।
यहां तक कि कई विवाह समारोह और अन्य कार्यक्रमों में भी अब प्लास्टिक से निर्मित सामग्री और खाद्य पदार्थों के लिए उपयोग में लाई जाने वाली डिस्पोजल वस्तुओं पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया है। प्लास्टिक कचरे के बारे में यह सबसे बड़ा सच है कि यह वास्तव में आयातित कचरा है। हमारे देश में बहुत पहले से कागज और कपड़े के बैग ही प्रचलन में रहते थे, लेकिन विदेशियों की नकल करने के कारण हम भी प्लास्टिक का उपयोग करने की ओर प्रवृत होते चले गए।
यही प्रवृति आज हमारे देश की सबसे विकराल समस्या बनकर उभर रही है। हमने एक कहावत भी सुनी है कि अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता, यह सोच किसी प्रकार से भारतीय संस्कृति का संवाहक नहीं हो सकता। यह सोच विदेशों की नकल है। आज प्लास्टिक कचरे का उपयोग भी कुछ इसी तर्ज पर किया जा रहा है। लोग अपना काम बनाने के लिए प्लास्टिक के सामानों का प्रयोग कर रहे हैं, और बाद में यही सामान कचरा बन जाता है, जो जनता के लिए गंभीर समस्याओं को पैदा कर रहा है।
कचरा फेंकने वाले लोगों को इतना नहीं मालूम कि यह कचरा हमारे लिए भी समस्या बन रहा है। इसे रोकने के लिए क्या सरकार के कदम उठाने मात्र से यह सफल हो सकेगा। इसके लिए जनता की भागीदारी भी बहुत मायने रखती है। जिस देश की जनता अपने देश के प्रति तादात्म्य स्थापित करते हुए कार्य करती है, वह बहुत स्वच्छ होता है। हमारे आचरण और कार्य में भारतीय संस्कृति का प्रदर्शन होना चाहिए।
देश में वातावरणीय समस्याओं का प्रादुर्भाव हमारी अपनी देन है, जो जाने या अनजाने में हमने ही पैदा की हैं। स्वच्छ हवा प्रदान करने वाले पेड़ पौधे भी प्रदूषित वातावरण का शिकार हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमें ताजी हवा कैसे मिल सकती है। हमें चैतन्य शक्ति का जागरण करके देश को स्वच्छ वातावरण देने के लिए प्लास्टिक कचरे से मुक्ति पाना है। हम ऐसा कर सके तो यह तय है कि हमारा देश फिर से तरो ताजा हवा प्रदान करने वाला देश बन जाएगा। इसके लिए सरकार की योजना में हमें भी पूरी तरह से सहभागी बनना होगा।
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