आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में स्टैम सेल रिसर्च एक ऐसा कॅरियर है जो परंपरागत कॅरियर से बिल्कुल अलग है। जो लोग मेडिकल साइंस में कुछ विशिष्ट किस्म का वर्क आॅपशन चाहते हैं, उनके लिए इसमें कई संभावनाएं हैं। स्टैम सेल हमारे शरीर के अंगों के उत्तकों, रक्त तथा रोग प्रतिरोधक प्रणाली में मौजूद होते हैं। इनकी कोशिकाएं अलग तरह की विशिष्टता लिए होती हैं। स्टैम सेल शरीर के अंगों में मौजूद वे विशिष्ट कोशिकाएं होती हैं जिनका आजकल नई चिकित्सा प्रणाली में उपयोग किया जा रहा है।
स्टेम सेल थेरेपी है क्या
स्टैम सेल थेरेपी को रिजेनरेटिव मेडिसिन भी कहा जाता है। शरीर के खराब अंग या जिनकी कार्यप्रणाली में रूकावट हो, उनके क्षतिग्रस्त तंतुओं की चिकित्सा के लिए स्टैम सेल का इस्तेमाल किया जाता है। यह अंगों के ट्रांसप्लाटेंशन से अधिक आधुनिक चिकित्सा प्रणाली है जिसमें शरीर के भीतर अंगों को बदलने की बजाय स्टैम सेल के इस्तेमाल द्वारा उन्हें स्वस्थ व सही किया जाता है।
अनुसंधान द्वारा स्टैम सेल को प्रयोगशाला में उत्पादित किया जाता है और इन्हें बदलकर विशिष्ट प्रकार की स्टैम सेल के भीतर प्रविष्ट कराया जाता है जैसे- हृदय, रक्त और तंत्रिका तंत्र की सेल्स में। विशिष्ट प्रकार के इन स्टैम सेल को रोगी के शरीर में इम्प्लांट किया जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति हृदय रोग से पीड़ित है तो उसके हृदय की मांसपेशियों में इन्हें इंजेक्ट किया जाता है।
इसके उपरांत यह स्वस्थ ट्रांसप्लांटेड यानी प्रत्यारोपित हृदय काशिकाएं पुरानी और क्षतिग्रस्त हृदय की मांसपेशियों को रिपेयर यानी स्वस्थ या दुरूस्त करने में मदद करती हैं। ऐसे में यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि स्टैम सेल रिसर्च का मतलब क्या है?
रोचक और अनुसंधान का क्षेत्र है स्टेम सेल
दरअसल यह एक आधुनिक स्तर की वैज्ञानिक खोज है जिस से जुड़े शोधकार्य के लिए विज्ञान विषय की पढ़ाई जरूरी है। इस अनुसंधान कार्य में विभिन्न बीमारियों में स्टैम सेल का उपयोग कैसा किया जा सकता है और उन्हें प्रयोगशाला में कैसे विकसित किया जाए इसकी खोज की जाती है।
स्टैम सेल थेरेपी का तात्पर्य है कि नयी स्टैम सेल्स की खोज जो शरीर के क्षतिग्रस्त अंगों के तंतुओं को चिकित्सा द्वारा सही कर सके। उदाहरण के लिए बोनमेरो यानी अस्थि मज्जा से लिए गए स्टैम सेल के द्वारा कई असाध्य बीमारियों जैसे न्यूरोलॉजिकल, आॅथोर्पेडिक्स, किडनी, फेफड़ों, लीवर, आंखों, इंफर्टिलेटी, हड्डियों से संबंधित बीमारियों, तंत्रिका तंत्र, कार्डियोलॉजी, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर का इलाज किया जाता है।
स्टैम सेल द्वारा टाइप वन डायबिटीज, आर्थ्राइटस , पाकिंर्संस और कई तरह के कैंसर में इसका उपयोग किया जा सकता है। जो लोग मेडिकल के पुराने पेश से हटकर कुछ अलग तरह का कॅरिअर बनाने की चाह रखते हैं यह उनके लिए एक उपयुक्त कॅरियर है।
बायोलॉजी की बैकग्राऊंड होना जरूरी
आमतौर पर यह माना जाता है कि जो लोग मेडिकल की शिक्षा ले रहे हैं केवल वे ही स्टैम सेल थैरेपी के क्षेत्र में काम कर सकते हैं, ऐसा नहीं है। इस स्पेस्लिाइज़ड प्रोफेशन में आगे बढ़ने के लिए जीव विज्ञान आपके सब्जेक्टस में से एक होना अनिवार्य है। स्टैम सेल रिसर्च और थेरेपी के लिए बीएससी स्तर पर जीव विज्ञान विषय होना चाहिए। इसके अलावा एमबीबीएस, बीफार्मा, बीडीएस, बीवीएससी या बीई बायोटेक्नोलॉजी के स्टूडैंट भी इस क्षेत्र में कॅरियर बना सकते हैं।
भारत में बढ़ रही है स्टेम सेल को लेकर रूचि व जागरूकता
भारत में लगातार स्टैम सेल बैंक और डिपोजिटर्स की मांग बढ़ रही है। स्टैम सेल अनुसंधान के क्षेत्र में खुलेपन की नीति और सरकारी प्रोत्साहन के चलते आज भारत का स्टैम सेल थैरेपी बाजार 2013 में जो एक बिलियन रुपये का था, उम्मीद है 2018 तक यह बढ़कर दो बिलियन का हो जाएगा। अभी कुछ साल पहले स्टैम सेल बैंक से कोई परिचित नहीं था। न्यूरोलॉजिकल कंडीशन में आज की तारीख में यह एक ऐसी वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में विकसित हो चुकी है जो रोगी के लिए कम पीड़ादायक साबित हो रही है।
तेजी से उभरने वाले इस कॅरियर में अनुसंधान कार्य के लिए स्किल्ड और ट्रेंड अनुसंधानकतार्ओं की जरूरत बढ़ रही है। आने वाले दिनों में वे छात्र छात्राएं जो पोस्ट ग्रेजुएट कर चुकी हैं, उनके लिए इसमें कॅरिअर के नए रास्ते खुल रहे हैं। एशियाई देशों में भारत एक ऐसा देश है जिसमें बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में निरंतर विकास हो रहा है। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित यूरोपियन मॉलिकुलर बायोलॉजी आॅरगेनाइजेशन में यूरोप से बाहर के दो देशों को ही इसकी सदस्यता मिली है जिसमें भारत एक है।
जाहिर है भारत में इस फील्ड में शानदार अवसर तैयार हो रहे हैं। हमारे देश में स्टैम सेल बैंकिंग से जुड़े कार्य के लिए कर्नाटक में बंगलुरु और तेलंगाना में हैदराबाद मेन वर्किंग कैपिटल या हब हैं जिनकी विश्व भर में धाक है। आज यूरोप, आॅस्ट्रेलिया और अमेरिका के अलावा भारत में भी स्टैम सेल रिसर्च कॅरियर में काफी संभावनाएं हैं।
सब्जेक्टस और स्पेशिएलाइजेशन
इस क्षेत्र में डवलपमेंट बायोलॉजी, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, सैल बायोलॉजी, नैनो टेक्नोलॉजी, क्लीनिकल रिसर्च और स्टैम सैल बायोलॉजी जैसे विषयों में अध्ययन एवं अनुसंधान कार्य करने का विकल्प चुना जा सकता है। इसके अलावा बेसिक बायोलॉजी और एप्लीकेटिव ट्रांसलेशनल फील्ड में हायर स्टडीज की जा सकती है। साइंस ग्रेजुएट के लिए इसमें अपार संभावनाएं हैं। वे डॉक्टर से लेकर लैब असिस्टेंट के तौर पर काम कर सकते हैं।
इसमें एमएससी इन बायोटेक्नोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री, जेनेटिक्स, ज्योलॉजी, बायोफिजिक्स, माइक्रोबायोलॉजी एंड लाइफ साइंसेज, एमएससी इन रिजेनरेटिव मेडिसिन जैसे विषयों में पढ़ाई कर सकते हैं।
स्कोप एंड फ्यूचर
आजकल कई फार्मास्यूटिकल, बायोटेक्नोलॉजी कंपनियां और स्टैम सेल इंस्टीट्यूट्स, स्टैम सेल थैरेपी के अनुसंधान कार्य से जुड़े हैं जिनमें कॅरियर के लिए काफी संभावनाएं हैं। स्टेम सेल रिसर्च व टेक्नोलॉजी से संबंधित कोर्स पूरा करने के बाद क्वॉलिटी, आरएंडडी प्रोडक्शन, क्लीनिकल रिसर्च जैसे क्षेत्रों में खुद का अनुसंधान कार्य भी किया जा सकता है। इसमें शुरूआती तौर पर 30-50 हजार रुपये एक पोस्ट ग्रेजुएट आसानी से कमा सकते हैं। पीएचडी डिग्री लेने के उपरांत सैलरी पैकेज में और तेजी से इजाफा हो सकता है। पीएचडी करने के बाद विदेश में भी अनुसंधान कार्य के कई मौके होते हैं।
प्रतिष्ठित संस्थान
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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलुरु
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नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस, बंगलुरु
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नेशनल सेंटर फॉर सैल साइंस, पुणे
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नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडेक्टिव हेल्थ, मुंबई
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मनिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ रिजेनरेटिव मेडिसिन, बंगलुरु
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सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉल्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद
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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चेन्नई
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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशियन
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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी
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