Wednesday, June 18, 2025
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गन्ने के कीट, रोग की करें रोकथाम

  • किसानों को प्रमुख कीटों के बारे में पादप रोग विज्ञान विभाग प्रशांत अहलावत ने दी जानकारी

जनवाणी संवाददाता |

मोदीपुरम: वेस्ट यूपी में गन्ने की पैदावार अधिक होती है। ऐसे में किसानों को गन्ने की फसल में लगने वाले कीट एवं रोगों से बचाव के लिए विभिन्न जानकारी दी गई है। कीट रोगों के बारे में जानकारी देते हुए प्रशांत अहलावत, पादप रोग विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, कैंपस मेरठ एवं ललित कुमार, फसल प्रणाली अनुसंधान संस्थान का कहना है कि किसान अपनी फसल को बचाने के लिए बेहद गंभीरता पूर्वक खेती करे।

प्रमुख कीट

1-दीमक: बोये गये गन्ने के दोनो सिरों से घुस कर अन्दर का मुलायम भाग खाकर उसमें मिट्टी भर देता है। ग्रसित पौधों की बाहरी पत्तियां पहले सूखती है तथा बाद में पूरा गन्ना नष्ट हो जाता है। ऐसे पौधों से दुर्गन्ध नही आती तथा पौधा आसानी से खिचने पर मिट्टी से उखड़ आता है।

रोकथाम: बुवाई से पूर्व खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हे. की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है।

बुवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 60-75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक का नियंत्रण हो जाता है।

रासायनिक नियंत्रण

रासायनिक नियंत्रण के लिए निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए। कूड़ों में फेनवलरेट 0.4 प्रतिशतधूल 25 किग्रा की दर से बुरकाव करना चाहिए। खड़ी फसल में प्रकोप की स्थित में निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए। इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 एसएल 350 मिली अथवा क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशतईसी 2.5 ली प्रति हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए।

2-सफेद गिडार: वयस्क कीट मानसून की पहली वर्षा के बाद से पत्तियाँ को खाकर क्षति पहुंचाते है। कीट के गिडार सफेद मटमैले रंग की होते है जो पौधे की जड़ को खाकर क्षति पहुंचाते है। फलस्वरूप गन्ने का थान जड़ से सूखकर गिर जाता है।

रोकथाम- रासायनिक नियंत्रण: रसायनिक नियंत्रण के लिए निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग व्यस्क कीट के नियंत्रण के लिए करना चाहिए। क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1.5 लीटर प्रति हे. 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। कार्बोफ्यूरान तीन प्रतिशत सीजी 25-30 किग्रा प्रति हे. अथवा फेनवलरेट 10 प्रतिशत सीजी 25 किग्रा की दर से बुरकाव करना चाहिए।

3-जड़ बेधक (रूट बोर): इस कीट की सूड़ी का प्रकोप छोटे बड़े दोनों ही पौधोंपर पाया जाता है। सूड़ी जमीन से लगे हुए गन्ने के भाग में छिद्र बनाकर घुस जाती है तथा डेड हार्ट बनाती है इनसे कोई दुर्गन्ध नहीं निकलती है तथा इसे आसानी से निकाला नहीं जा सकता है।

रोकथाम: कीट के अंड समूहों को इकट्ठा करके तथा प्रभावित तनों को जमीन से काट कर नष्ट कर देना चाहिए।
4-अंकुल बेधक: उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में अंकुरण से चार माह तक इसका प्रकोप रहता है। इसके लारवा वृद्धि बिन्दुओं को बेधकर मृत केन्द्र बनाते है जिसमें से सिरके जैसी बदबू आती है।

रोकथाम: अंकुल बेधक के प्रकोप से ग्रस्त गन्नों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए अथवा मेटाराइजियम एनिसोप्ली की 2.5 किग्रा मात्रा प्रति हे. की दर से 75 किग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।

रसायनिक नियंत्रण: रसायनिक नियंत्रण के लिए निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए। क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1.5 लीटर प्रति हे. 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए कार्बोफ्यूरान तीन प्रतिशत सीजी 30 किग्रा प्रति हे. की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत जीआर के 2.5 किग्रा प्रति हे. की दर से अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सीजी 30 किग्रा प्रति हे. की दर से बुरकाव करना चाहिए। अंड समूहों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। फसल वातावरण में पायरिला कीट के परजीवी एपीरिकेनिया मेलोनोल्यूका को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। परजीवी कीट की पर्याप्त उपस्थित में कीट की स्वत: रोकथाम हो जाती है।

प्रमुख रोग

1-कडुआ रोग: रोग ग्रस्त गन्ने की पत्तियां पतली, नुकीली तथा पोरिया लम्बी हो जाती है। प्रभावित गन्नों में छोटे या लम्बे काले कोडे निकल आते हैं। जिन पर कवक के असंख्य वीजाणु स्थित होते हैं। इस रोग का प्रभाव पेडी गन्ने में अत्यधिक होता है।

रोकथाम: रसायनिक नियंत्रण: बोने से पूर्व गन्ने के 50 कुन्तल बीज सेट को एमईएमसी छह प्रतिशत 830 ग्राम प्रति हे. प्रति की दर से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए।

2-लाल सड़न (काना रोग) (जुलाई से फसल के अन्त तक): ऊपर से तीसरी तथा चौथी पत्ती सूखने लगती है साथ ही पत्ती के बीच की मोटी नस में लाल या भूरे रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं। गन्ने को बीच की चीरने पर गूदा मटमैला लाल दिखाई पड़ता है। जिसमें से सिरके जैसी गंध आती हैं। गन्ने की पिथ में सफेद अथवा भूरी रंग की फफूंदी भी विकसित हो जाती है।

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