Wednesday, April 9, 2025
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का बाल पोर्नोग्राफी को लेकर बड़ा फैसला, कहा-डाउनलोड,फोन में रखना और देखना अपराध

जनवाणी ब्यूरो |

नई​ दिल्ली: आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुना दिया है, जिसमें कहा गया है कि केवल बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना पॉक्सो अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध नहीं है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, बाल पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना, फोन में रखना और देखना पॉक्सो और आईटी एक्ट के तहत अपराध है।

चाइल्ड यौन शोषण और अपमानजनक सामग्री’ से बदल दिया जाए

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने आज इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि, चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े फोटो-वीडियो का स्टोर करना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत अपराध है। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने संसद को पॉक्सो अधिनियम में संशोधन के लिए कानून लाने का सुझाव दिया। जिसमें ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द को ‘चाइल्ड यौन शोषण और अपमानजनक सामग्री’ से बदल दिया जाए।

शेयर, देखना और बनाना सभी दंडनीय अपराध

वहीं, आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को बहाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज साफतौर पर कहा कि बाल पोर्नोग्राफी को शेयर, देखना, बनाना और डाउनलोड करना सभी दंडनीय अपराध हैं।

क्या कहा था मद्रास हाईकोर्ट ने?

दरअसल, हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि बाल पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पॉक्सो) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के तहत अपराध नहीं है।

हाईकोर्ट ने 11 जनवरी के अपने फैसले में 28 साल के व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही भी रद्द कर दी थी, जिसके खिलाफ अपने मोबाइल पर बाल पोर्नोग्राफी सामग्री को डाउनलोड करने का आरोप था। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि आजकल बच्चे पोर्नोग्राफी देखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और समाज को उन्हें दंडित करने के बजाय उन्हें शिक्षित करने के लिए परिपक्व होना चाहिए।

67बी के तहत अपराध नहीं बनता

मद्रास हाईकोर्ट ने एस हरीश के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम, 2012 और आईटी अधिनियम, 2000 के तहत आपराधिक मामला रद्द कर दिया था। आईटी अधिनियम की धारा 67 बी के तहत अपराध गठित करने के लिए, एक आरोपी को यौन-स्पष्ट कार्य या आचरण में बच्चों को चित्रित करने वाली सामग्री प्रकाशित, प्रसारित या बनाई जानी चाहिए, यह कहा गया था। उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘इस प्रावधान को ध्यान से पढ़ने से बाल पोर्नोग्राफी देखना, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67बी के तहत अपराध नहीं बनता है।’

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