जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: आज 23 मई, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में कहा कि मातृत्व अवकाश केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि महिलाओं के प्रजनन अधिकारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत मिलने वाला अवकाश महिलाओं के अधिकारों में शामिल है और किसी भी महिला को इससे वंचित नहीं किया जा सकता।
ये है मामला
यह ऐतिहासिक फैसला तमिलनाडु की एक महिला सरकारी शिक्षिका की याचिका पर आया, जिसे दूसरी शादी से हुए बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश देने से मना कर दिया गया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसका यह अधिकार उसके मातृत्व से जुड़ा है, न कि विवाह की प्रकृति से।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “मातृत्व अवकाश न केवल कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए समानता सुनिश्चित करता है, बल्कि यह उनके स्वास्थ्य, बच्चे की देखभाल और संपूर्ण पारिवारिक जीवन की गुणवत्ता से भी जुड़ा हुआ है।”
सभी सरकारी और निजी संस्थान इस अधिकार का सम्मान करें
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सभी सरकारी और निजी संस्थान इस अधिकार का सम्मान करें और किसी भी महिला कर्मचारी को विवाह या पारिवारिक स्थिति के आधार पर मातृत्व अवकाश देने से इनकार न करें।
यह फैसला न केवल याचिकाकर्ता के लिए राहत लेकर आया, बल्कि देशभर में लाखों कामकाजी महिलाओं के लिए भी एक मिसाल कायम की है।