Thursday, May 8, 2025
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Tag: कबीरदास

संकुचित महत्वाकांक्षाओं की उपज है ‘इंडिया’

डॉ. वेदप्रकाश |कबीरदास का दोहा है-  जाका गुरु है आँधरा, चेला खरा निरंध। अंधा अंधा ठेलिया, दोन्यूं कूप पड़ंत। यहाँ आंधरा अथवा अंधा उस अज्ञानी के...

भक्ति का समय

एक बार कबीर कपड़ा बुनने में लीन थे। वहां से गुजरते हुए एक व्यक्ति को जिज्ञासा हुई कबीर से पूछने की, क्योंकि उसने सुन...

समाज को कहां ले जाएगी ऐसी हिंसक सोच?

भारतीय समाज में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हिंसक गतिविधियां अत्यंत चिंता का विषय हैं। इन पर नियंत्रण पाने के लिए समाज के ही...
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