Thursday, May 8, 2025
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सर छोटूराम कॉलेज की लें सुध

Samvad 52


PK MALIKहिंदुस्तान शहीदों और वीर क्रांतिकारियों की विरासत को समेटकर रखने वाला देश है। लेकिन कितने ही ऐसे क्रांतिकारी हैं, जिनकी विरासत इसलिए नहीं संभल पाई क्योंकि हम हिंदुस्तानी उनके बलिदान को भूल गए या फिर उस विरासत के कई दावेदार अलग-अलग होकर अपने-अपने तरीके से उनकी संपत्ति पर दावेदारी करने लगे। स्वतंत्रता सेनानी चौधरी छोटूराम, जिन्हें सर छोटूराम के नाम से भी जाना जाता है, के नाम पर मुजफ्फरनगर में बने इंटर कॉलेज और डिग्री कॉलेज के बीच जमीन को लेकर है। यह विवाद 34 एकड़ जमीन को लेकर है। और ये मामला भू राजस्व विभाग से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंच चुका है। एक तरफ इसकी शिकायत चौधरी छोटूराम इंटर कॉलेज, मुजफ्फरनगर के प्रधानाचार्य नरेश प्रताप सिंह ने दर्ज कराई है, तो दूसरी ओर प्रभारी-जिला लेखा परीक्षा अधिकारी, मुजफ्फरनगर के उप निदेशक अनिल कुमार जैन ने दर्ज कराई है। चौधरी छोटूराम इंडर कॉलेज की ओर से दावा किया गया है कि उसकी 34 एकड़ कृषि भूमि, जो कि साल 1977 में चौधरी छोटूराम डिग्री कॉलेज, मुजफ्फरनगर को प्रबंध समिति ने दे दी थी और आज इस जमीन से इस तथाकथित प्रबंध समिति को हर साल करीब 60 लाख रुपए सालाना की आमदनी हो रही है, जिसे प्रबंध समिति मनमाने तरीके से खर्च करती है, जबकि इस आमदनी के असली हकदार चौधरी छोटूराम इंडर कॉलेज को कुछ नहीं मिलता है। आरोप है कि साल 1977 के बाद से प्रबंध समिति द्वारा चौधरी छोटूराम इंटर कॉलेज को किसी भी प्रकार की कोई धनराशि नहीं दी गई है, जबकि आज की तारीख में इस अरबों की कृषि भूमि से प्रधंध समिति अब तक करोड़ों का मुनाफा कमा चुकी है।

चौधरी छोटूराम इंडर कॉलेज के प्राधानाचार्य नरेश प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे अपने शिकायती पत्र में कहा है कि इस इंटर कॉलेज की स्थापना साल 1935 में हुई थी और उस दौरान इंटर कॉलेज के पास 34 एकड़ कृषि भूमि और 3 एकड़ कॉलेज के इस्तेमाल के लिए भूमि थी। कृषि भूमि डिग्री कॉलेज को हस्तांतरित होने से अब लंबे समय से प्रबंधन चौधरी छोटूराम इंडर कॉलेज की 24 दुकानों से होने वाली आमदनी को भी हजम कर जाता है।

इन दुकानों से हर महीने 50 हजार रुपए की आमदनी प्रबंध समिति को होती है और वो इस पैसे को इंटर कॉलेज को नहीं देती और उस पैसे को खुर्द-बुर्द कर दिया जाता है। माननीय हाई कोर्ट इलाहाबाद के आदेश के मुताबिक साल 1996 से इंटर कॉलेज में एक प्रबंध सहायक नियुक्त है, लेकिन किसी भी प्रकार से इंटर कॉलेज की संपत्ति का उपयोग कॉलेज के हित में नहीं होने दिया जा रहा है। द यूपी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (प्रवीजन आफ डिसिपेशन आफ एसेट्स) एक्ट, 1974 के अनुसार इंटर कॉलेज की मान्यता के दौरान ये साफ लिखा गया है कि इंटर कॉलेज की संपत्ति को किसी संस्था या किसी दूसरे कॉलेज के नाम नहीं किया जा सकता है और न ही किसी और संस्था या कॉलेज की मान्यता हेतू उसका उपयोग किया जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद चौधरी छोटूराम इंटर कॉलेज की 34 एकड़ भूमि पर प्रबंध समिति ने चालाकी से कब्जा करके उसकी सारी कमाई को हड़पने का नियम सा बना लिया है और आज इंटर कॉलेज के पास एक इंच भी कृषि भूमि नहीं बची है।

आॅडिट विभाग ने भी अपनी आॅडिट रिपोर्ट में पृष्ठ संख्या 3 पर बिंदू नंब-4 में इंटर कॉलेज की संपत्ति से होने वाली आमदनी को प्रबंध समिति द्वारा इंटर कॉलेज को न देने पर आपत्ति दर्ज की है। सवाल ये है कि जिस इंटर कॉलेज के पास अरबों की संपत्ति है, उसे तो दुनिया का नंबर वन का इंटर कॉलेज होना चाहिए, क्योंकि उसके पास सुविधाओं की कमी ही नहीं होनी चाहिए और वो भी तब जब कॉलेज में सभी पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा बिल्कुल मुफ्त हो, तब भी कॉलेज को घाटा नहीं होना चाहिए। लेकिन हैरानी की बात है कि प्रबंध समिति की कमियों और सारी आमदनी को हड़प करने की नीति के चलते देश की विरासत और आजादी से पहले का बना हुआ ये इंटर कॉलेज, जो कि वहां पढ़ने वालों को ही नहीं, बल्कि हर मुजफ्फरनगर के निवासी को महान क्रांतिकारी चौधरी छोटूराम की याद दिलाता है, आज दयनीय हालत में है।

इंटर कॉलेज की बिल्डिंग भी बहुत खराब हालत में है और वहां पढ़ाई के लिए जो सुविधाएं छात्रों को मिलनी चाहिए, वो नहीं मिल पा रही हैं। बड़ा दुख होता है, जब कोई विरासत इस तरह आंखों के सामने धरासाई होती है और हम कुछ नहीं कर पाते। लेकिन कलम का सिपाही होने के नाते मेरा अपना फर्ज बनता है कि मैं इस मुद्दे को जनता और सरकार के सामने लाऊं। जिस प्रकार से इस स्कूल के पास अरबों की संपत्ति है, लेकिन चंद ठेकेदार बने बैठे लोग, इसकी संपत्ति से होने वाली आमदनी डकार रहे हैं, उसी प्रकार देश की कई विरासतों पर ऐसे ही धन-पिपासू लोगों का अवैध कब्जा है, जिस पर केंद्र सरकार के साथ-साथ हर प्रदेश की सरकार को ध्यान देना चाहिए और विरासत को बचाने के साथ-साथ संस्थाओं की संपत्ति को संस्थाओं को सौंपकर उनकी माली हालत में सुधार करने का काम करना चाहिए। मेरे ख्याल से ऐसी संस्थाओं की प्रबंध समितियों में न सिर्फ ईमानदार और तनख्वाह पर लोग रखने चाहिए, बल्कि उनकी संपत्तियों से होने वाली आमदनी का हिसाब रखने के लिए ईमानदार अफसरों को भी तैनात करना चाहिए, जिस मकसद से संस्था काम कर रही हो, वो पूरा हो सके।

चौधरी छोटूराम ने कॉलेज की स्थापना उस जमाने में की, जब अंग्रेजी हुकूमत देश में थी। इस कॉलेज का स्थापित करने का उनका मकसद देश के बच्चों को शिक्षित करके आगे ही बढ़ाना रहा होगा, और इसकी गवाह इंटर कॉलेज के नाम की गई इतनी बड़ी संपत्ति है। लेकिन अफसोस की बात है कि आज इसी इंटर कॉलेज की कोई आमदनी न होने के चलते इसमें पढ़ने वाले बच्चों के लिए आधुनिक शिक्षा के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं मिल पा रही है। प्रबंध समिति की नीयत में खोट होने के चलते इतनी बड़ी संपत्ति का मालिक होने के बावजूद चौधरी छोटूराम इंटर कॉलेज आज कई समस्याओं से जूझ रहा है। सरकार को चाहिए कि इस कॉलेज की संपत्ति से होने वाली आमदनी के खर्च की जानकारी जांच के जरिए इकट्ठी करे कि आखिर इतनी मोटी आमदनी वाले इंटर कॉलेज का पैसा जाता कहां है और इंटर कॉलेज की पूरी की पूरी जमीन और दुकानों का अधिकार चौधरी छोटूराम इंटर कॉलेज को दिलाए, जिससे कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों को और भी बेहतर शिक्षा दी जा सके।


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